चंद्रविद्या   (चंद्रविद्या)
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Joined 22 May 2019


Joined 22 May 2019

सरकारें गिरती और उठती है
मगर बदलती नहीं जनता
वो तब भी बिक जाती थी
एक बोतल और कुछ एक नोटो में
बिक जाते है वोट सारे आज भी
और नेता छप जाते है प्रथम पेज के फोटो में
इलेक्शन में जो घुमा करते
गली गली चौबारों में
हाथ जोड़े सफेद कुर्ते
और मोटे –मोटे मालों में
दिखते नहीं अब हमें
क्या गिनती करे तुम्हारी कर्जदारों में
तुम घुमा करते मुंह छुपाए
ए.सी.वाले कारों में
भ्रष्टाचारी जात तुम्हारी
उजले कुर्ते खद्दरधारी
शासन और शोषण है तुम्हारी खून में
मीठी बाते और गद्दारी है तुम्हारी हर एक बूंद में

✍️रिंकी ऊर्फ चंद्रविद्या

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मुस्कुराते होठों के करीब
गर्म चाय की चुस्कियां
तुम्हारी उंगलियों से लिपटी , और कप की कुंडिया
सुबह का नज़ारा
बस अब कुछ और नहीं
बहकते सूरज की किरणे,
चूमते तुम्हारे गालों को, कानों की बालियां
खिलखिलाती तुम्हारी नज़रे
और तुम्हारी नज़रों से लगी सुरमो की गुस्ताखियां
तुम्हारी नज़रों का नज़ारा बस अब कुछ और नहीं

-चंद्रविद्या चंद्र विद्या उर्फ़ रिंकी

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खंबो और कस्बों में जलती भूकभुकाती बल्ब
अटकी जीवन मध्य यार्थात और कल्प
अर्ध रात्रि स्वानो के स्वरों का विलाप
सुनाई देती सिर्फ झिंगुरों और सांसों की आबाज
पत्तो की सरसराहट
पवनो की थपथपाहट
है सन्नाटे में पसरा अंधेरा चारो ओर
मन की छटपटाहट
और छटपटाते मन के भीतर का शोर
एकांत मन का सवाल
कुछ टूटा कुछ बिखरा सा जवाब
अकेलेपन की घबराहट
मिटती नहीं अकुलाहट

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Dear day
You come out Evey day
With a new hope
Like a new rain drop 💧
Which falls from the sky
They don't know
Where come and why?
But they live
Every day feel
They feel the sunshine
Feel the hardness
Feel everywhere cruel
Feel the divine
They feel everything
And they say everything is fine

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हया के पर्दे के पीछे एक चेहरा ,
परदे की ओट से झांकता
जहां कुछ झिझक और
कुछ कहने की हिचकिचाहट
थरथराती उंगलियां
और उंगलियों की आपस में टकराहट
घबराहट के साथ तुम्हारी मीठी मुस्कुराहट
थी तुम कुछसबसे अलग
उठती गिरती शर्माती
न कह कर भी कहती थी
तुम्हारी वह पलक
मधुर स्वपन सी थी तुम्हारी पहली झलक

✍️रिंकी उर्फ चंद्रविद्य

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वो कहते है खुद को समाज
मुझे खेद है यहां समानता नहीं आज
कह रहे है धर्म और संस्कृति की हम रक्षा कर रहे ।
लेकिन सोचती हूं यह कैसी संस्कृति है ?
यह कैसा है धर्मराज ?
जहां इनके नाम पर हो रहा है मनुष्यता का हास ।
मणिपुर की त्रासदी , महिलाओं के साथ हुई घिनौनी वारदात
मैं पूछती हूं कौन है इसका जिम्मेदार ?
आह! यह पीड़ा
जहां मीडिया करती है मुर्खता
और गढ़ती है सीमा हैदर की कहानियां
और देखती है बेवकूफ जनता ।
नालायक सरकार की भ्रष्ट नेताओ का नंगा नाच
मैं कहती हूं कपड़े नहीं उतरे स्त्री के
यहां नंगी हुई है सरकार और नंगा हुआ समाज
मेरा रूदन ह्रदय कर रहा चीत्कार
कैसी थी मेरी धरती , और हो गई है कैसी आज ।

✍️ रिंकी ऊर्फ चंद्रविद्या

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आदमी नहीं रोता

मर्द हो , और मर्द को दर्द नही होता
तुम्हारे आंसू बह नहीं सकते
अपने दुःख को तुम कह नही सकते |
क्योकि तुम आदमी हो
और आदमी कभी नहीं रोता
म्रत्यु , भय ,शोक, पीड़ा और विदाई
यह भावनाए नहीं तुम्हारी
कठोरता तुम्हारा आवरण ,
वर्चस्वादी तुम्हे गई सिखाई |
वर्चस्वता स्त्रियों पर ,
क्रूरता और नियंत्रण लोगो पर |
तुम झुकते नहीं अधिपत्य तुम्हारा अधिकार बना
तुम्हारे लिए चूड़ियाँ कमजोरी की निशानी बनी
और औरते तुम्हारी विलासिता
तुम दिखाते हो तुम दर्द में नहीं
लेकिन मै समझती हूँ
तुमसे ज्यादा कोई पीड़ित नहीं
✍️रिंकी ऊर्फ चंद्रविद्या

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एक रोज़
किताबों की दुनिया ....
किताबों के पन्नो की सरसराहट ,
और उन सरसराहटों में सुकून ।
कुछ भूली बिसरी कहानियां ,
कहानियों में खुद का अहसास ,
कहानियों की शुरुआत ,
और कुछ आसपास ।
फिर दुनिया वर्तमान में नहीं ,
आंसू , खुशी , दुख , उत्साह और आनंदमयी ।
फिर जिंदगी मेरी नहीं ,
मैं – मैं नहीं ,
मैं जुड़ जाती हूं उस पात्र से ।

written by ✍️ चंद्रविद्या उर्फ रिंकी

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👇
यह भारत देश हमारा है

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राजू की मतरिया की जबान,
जवान की भांति मुख पर अड़ी ।
साड़ी का पल्लू कमर को कसी खड़ी,
भौंहे चटकती मटकती ऊपर नीचे उठ रही।
राजपुताने की तलवार उसकी मुख से निकला वार ।
जैसे हो बड़बोले नेता की सरकार ।
फिर वार पर वार , वार पर वार ,
नकचढ़ी नाक इधर उधर जाती।
होठ फड़फड़ाते ,
हाथ तमतमाते ।
न जाने कौन सा अश्रव्य गीत ,
पिटती छाती और गुनगुनाती ।

written by रिंकी उर्फ़ चंद्रविद्या

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