खबरों ने अखबारों को भर दिया जहर से
कागज को कलम की आग ने जला दिया
सुकून और पैसे की बनती नहीं अब
लोगों ने फंदे से खुद गला जला दिया
इंसानियत की रोटी कच्ची रहती है
हवस ने नवजात चूल्हा जला दिया
शैतानों से डरने का दौर नहीं ये
आपसी आग ने पानी जला दिया-
झूठी मोहब्बत दिखती है आज, ये वो दौर है
है तो आपके साथ ही, परछाई कहीं और है-
आहट न हो दस्तक पे, ये वो दौर तो नहीं है।
घर किया तुम्हारे दिल में, कोई चोर तो नहीं है।
जमानें की साजिशें हैं, इसे यूँ तोड़ने की
प्यार की डोर, इतनी कमज़ोर तो नहीं है।
मर मिटा है कोई, तुम्हारी इन अदाओं पे
मुहल्ले में उड़ा, ऐसा कोई शोर तो नहीं है।
मेरी नाव की पतवार है, अब तेरे ही हाथों में
रोक दी कश्ती, इधर कोई छोर तो नहीं है।
दरकिनार करने लगे हो, मुझे खुद से "नवनीत"
"हमारे दरमियाँ", कहीं कोई और तो नहीं है।-
बदलते दौर के हर खेल खेलेंगे,
किसी रोज बच्चे खिलौने से नही,दिलों से खेलेंगे-
बदलावों में भी नहीं बदला वो इश्क़ ही कुछ और था
बात ये तब की है जब इबादतों का दौर था ।-
साहब
जहां सबकुछ बिकता है
सच बिकता है,झूठ बिकता है
जिस्म की चाहत में,प्यार बिकता है,
यहां पैसों के आगे अच्छे-अच्छों का
ईमान बिकता है..!-
अपने आप कमीजों के काजों से अब बटन खुल रहे हैं
बड़ी खूबसूरती से, घुटे-घुटे अब बदन खुल रहे हैं,
....मुस्कुरा कर, मुझसे कहता है आईना
जनाब, उम्र को कम करने के अब सारे जतन खुल रहे हैं,
हो गई होगी, गेंदे के फ़ूल सी शायद वो भी अब "कलिका"
....हृदय में फ़िर जिसकी स्मृतियों के चमन खुल रहे हैं,
फ़िर बात छिड़ी है, बेफिक्री-फुर्सतों की
भरे हुए फ़िर... पुराने, जख्म खुल रहे हैं,
यह उम्र के किस दौर से गुजर रहा हूँ "मैं" ज़िन्दगी
के रास्ते हो रहे हैं बंद, औऱ मेरे क़दम खुल रहे हैं...!!-
दिन और रात बीतते-बीतते दौर बीत गए।
तुझसे इश्क़ करने के वो माहौल बीत गए।-
जब हमारा वक़्त नही दौर आएगा
जाने कितनों के मुँह बन्द हो जाएंगे
उस दिन जब वक़्त करवट लेगा
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