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"निकाल कर जिस्म से
अपनी जान दे देता है
बड़ा ही मजबूत है वो पिता
जो कन्यादान देता है-
कन्या तुम्हें सौंपी हैं ,
किया नही कोई दान .....
अपने घर की लक्ष्मी ,
तुम्हें दी है ...दिया है ,
तुम्हें अपना गुमान ...
है ! स्वाभिमान ....
वो मेरे आंगन का ,
अनमोल खजाना ,
मेरे जीवन का ......
वो सांसो की पूंजी ,
तुम्हें अर्पण करता हूँ .....-
आज कल खिलखिलाहटों का शोर कम है वहाँ.....
सुना है , उस पिता ने कन्यादान किया है......
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जीने के लिए चाहिए रोटी, कपड़ा और मकान,
पर क्या हो जाता है बस इन तीनों से बेटी का "कन्यादान",
अब सोचिए जीना जायदा मुश्किल है या कन्यादान करना...????
अब मां बाप कैसे पैदा करे "जीने" से भी जायदा मुश्किल "बेटी" को....!!!
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हृदयाच्या तुकड्याचे दान करायचे
डोळ्यांत पाणी न आणता हसायचे
आठवणींच्या गर्द अरण्यात हरवायचे
"सुखी रहा", म्हणत दुःख दाबायचे
हृदयावर दगड ठेवून कन्यादान करायचे
कर्तव्य केले म्हणून काटेरी सुखात जगायचे-
उस नन्ही सी परी को गोंद में खिलाया होगा..
उस राजकुमारी को हाथ पकड़ कर चलना सिखाया होगा..
उस प्यारी की सपनों को करीने से संवारा होगा..
कितना लड़ना पड़ा होगा उस पिता को आपने आँसूओं से,
उस बेटी का जब उन्होंने कन्यादान किया होगा...-