धैर्य की अंतिम सीमा क्या होती हैं
ख़ुद के धैर्य को आज़माना …… या
सामने वाले की हदों की सीमा रेखा को
परखना……
अपने आत्म सम्मान के लिए ,
ख़ामोश रहना ……. या
उस कीचड़ में पत्थर ना मारने का
धैर्य रखना ……..
अपनी खामोशी को वक़्त पर ,
निर्भर रखना …… या
वक़्त के सवाल और जवाब का
इंतज़ार करना …….
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आपका मर्यादित व्यवहार ही आपकी परवरिश की पहचान है 🙏🙏
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रूह से रूह तक का सफ़र तय कर गए ,
जन्म-जन्म के लिए पवित्र सूत्र मे बंध गए…..
हर खामोशी में तुमको हम समझ गए ,
तुम्हारी मुस्कुराहट पर हम कली बन बिखर गए …..-
मेरे अमर प्रेम में ,
मैं का मतलब....
केवल मैं और तुम हो ,
और जहां मैं और ....
तुम नहीं हो ,
वो सांसों का ....
कोई मोल ही नहीं ,
क्योंकि मैंने तो ....
जीना ही नहीं सीखा ,
तुम्हारे बिना !!!!-
मेरी लाश पर एतबार का कफ़न चढ़ा जाना ,
हुं केवल तुम्हारी रुह को मेरी सुकुन दे जाना ....-
ये स्त्रियां ,
सदैव ही ....
मन की कठोर ,
तन की निर्मल ...
रही हैं ....
और ....
ये ही स्त्रियां ,
मन की निर्मल ,
तन की कठोर ....
भी रही हैं .....
जाने क्यों ये ,
स्त्रियां सदैव ही ....
समाज के लिए ,
और खुद के लिए ...
पहेली ही रही हैं !
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बहुत दिन बाद लौटी हूं 😊 पर एक सवाल के साथ ..... आधुनिक होने का अभिप्राय ( मतलब ) क्या है ?
हमें अपनी सोच से आधुनिक होना चाहिए या अपने पहनावे से आधुनिक होना चाहिए ?
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ये तुम्हारा और मेरा प्रेम ,
इस संसार के सभी ....
नियम से परे होता जा रहा है
जहां जीवित रहने के लिए मुझे
तुम्हारी जरुरत है ,
जहां ये सांसे कम या ज्यादा
एक दुसरे के साथ ....
होने पर निर्भर करती है,
जहां कभी हम दो नही गिने जाते
जहां आईने में खड़े होकर मैं ,
सिर्फ तुम्हे देख पाती हूं .....
जहां ये ऋतुएं ,
सिर्फ और सिर्फ बदल जाती है ....
तुम्हारी आंखों में देखने से !!
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तुम्हारे और मेरे प्रेम के बीच ,
ये प्रेम के कौन से अध्याए जुड़ रहे हैं ....
जहां हम त्याग चुके हैं ,
अपने अहम को ....
जहां लड़ाई के बाद भी ,
एक दुसरे को मनाने का ....
कोई गुणा-भाग नहीं ,
प्रेम में कोई जोड़-घटाव नही ....
स्थिरता से खड़ा है वो ,
हम दोनों के बीच ....
जहां कोई सुत्र लागु नहीं होता ,
केवल एक के ....
पुर्ण समर्पणता के ,
और इस सुत्र को क्या ....
नाम देंगे हम दोनों ,
ये हम दोनों भी नहीं जानते ....
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