त्रिवेदी मीरा प्रिया   (त्रिवेदीप्रिया)
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Joined 22 May 2018


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Joined 22 May 2018

कि राख को खाक में मिल जाने का भय अब कैसा..
तू मेरा होके मेरा बन ना सका अब रंज कैसा..

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और हुआ वहीं,
जिसका डर सताए जा रहा....
दिल लगाया वो तो ठीक..
पर अब चोट खाए जा रहा.....

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पिता को खोने जैसी चीज शायद ही कोई कल्पना भी कर सकता होगा... और ऐसी घटनाओं का घट जाना किसी त्रासदी से कम नहीं होता.....

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मेरी कलम का तुझे उकेरना
बातों में तेरा ही ज़िक्र होना
गाहे-बगाहे तेरी यादों में कैद होना
और....
तेरा मुझे अदना सा महसूस कराना !!

तेरे दिए गुलाब को सहेजना
तुझे याद कर मुस्काना
बालों को खुला ही छोड़ना
और....
तेरा मेरे दिए खतों को फाड़ना !!

तुझे सोचना ,तुझे सुनना
तुझे निहारना ,तुझे पहनना
तुझे मनाना ,तुझे हँसाना
और...
तू ,मुझे मेरे हिस्से का भी ना मिलना !!



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बालों को खुला ही छोड़ना....
ललाट पर छोटी बिंदी लगाना...
आँखों मे सुरमा सजाना ......
हाँ ,मुझे आता है उन्हें मनाना....

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पटाखों की शोर से ज़्यादा..
घरों में उजियारी हो...
उम्मीद है ऐसी ही
हम सबकी दीवाली हो..

Happy Diwali...

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तेरे बाद भी .....
तेरे साथ भी...
हमनें तो कुछ न माँगा था ,
तेरे सिवा.....

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खुशियां भर-भर के आई थी...
पर क्षणिक थी....
दुःख एक अकेला ही आया था...
अभी तक साथ है...

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लोग अपने थे.....?
तभी छोड़ गए.....!!

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बढ़ रही हूं आगे या हाँथ मेरे खींच रहा कोई...
हक़ीकत में जी रही या सपनें मेरे साथ बुन रहा कोई....
यूँ हर पल मुस्कुराए जा रही या आंसू मेरे पोछ रहा कोई......
महफ़िलों में दिल लगा रही या तन्हा मुझे कर रहा कोई...

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