कुछ सपने स्वाहा कल हुए हवन में,
सारी उम्मीदें बिखरी चलती पवन में,
जब काट परों को वे चिड़ियाँ से बोले,
अब उड़ जा बेटी इस उन्मुक्त गगन में।
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नम्रता द्विवेदी🖋 'नैन'
एकांत प्रेमी ❤
प्रिय "लेखक" और "लेखिका" अगर... read more
अंततः खिल जाती है
एक कली रेगिस्तान की
बंजर भूमि मे भी
बिना खाद, जल और बीज के,
इस अण्डाकार पृथ्वी पर
प्रेम के होने का
एक प्रमाण ये भी है,
प्रेम जटिल नहीं अपितु सरल है।
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स्त्री के दुःख
फूलों के जैसे होते है,
खिलना मुरझाना ही
उनका जीवन है..!!🌼❤
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विरह की कविताएँ
मन की पीड़ाओ का मौन है,
जो किसी से कहा न जा सका
उन्होंने कविताओं का रूप ले लिया।
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कमाई देखकर ब्याह देते है
लोग बेटियाँ आजकल,
सादा व्यवहार किसी को
जँचता नहीं है आजकल।
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तुम्हारे मौन से उदास हो जाती है
मेरी कविताएँ,
सुनो..!! तुम यूँ रूठा न करो हमसे।
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उसे न उड़ाओ कोई
श्रृंगार की चुनरी,
वो लड़की अपने दुपट्टे में
ज्यादा सुंदर लगती है।
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उन्हैं सुख मिले न मिले
मगर वो हमेशा
औरो को सुख देना जानती है,
यूँ ही नहीं स्त्रियों को
प्रकृति कह दिया है हमने।
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रेत, नदी, पहाड़,
सब बन चुकी है,
बेटियाँ
अब केवल आँगन की
तुलसी ही नहीं रही।
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वंशवाद की पुस्तक के
हर एक अध्याय मे
स्त्री वहाँ बुरी बन जाती है,
जहाँ वह.....
विरोधी है,
बाँझ है,
उन्मुक्त है,
क्रियाशील है,
इस पुस्तक मे
कानून, नियम, और कायदे
का बोझ उतारकर रख देने वाली
हर एक स्त्री बुरी ही है।-