मज़बूर मज़दूर
मज़दूर मज़बूर है,
मज़बूर ही मज़दूर है।
पसीने का मोल नहीं,
ग़रीब होना क़सूर है।
सोचता हर बेक़सूर है,
क्यों सिस्टम मगरूर है?
फिर भी दिल में शुरूर है,
मेहनत में ही गुरूर है।
जुनून है, फितूर है,
रोटी ही हुज़ूर है।
काम में ही डूबे रहना,
प्रवासी का दस्तूर है।
सम्मान और उचित दाम,
चाहे किसान, जवान, मज़दूर।
दया नहीं, भीख नहीं,
हक़ माँगता हर मजबूर है।
पूँजीवाद का चलन है,
दोहन-शोषण भरपूर है।
एक दिन सब ठीक होगा,
दिल में सोच ये मशहूर है।-
हमारी तेरी नज़रों में
मसला पड़ा एक फूल क्या मैं तेरी नज़रों में
मैं सूखा खस्ता रस्ता हूँ तू रिमझिम बारिश है
तेरी हर बूंद अमृत है शहद है मेरी नज़रों में-
सोने की चिड़िया
सोने की चिड़िया "था" भारत!
चिड़िया क़ैद पिंजरों में
राजा महराजा मंत्री दीवान धनवान साहूकारों के!
ना कि जात पात धरम में बंटे घरों में भारतीयों के!
सोने की चिड़िया "है" भारत!
चिड़िया क़ैद पिंजरों में
राजा महराजा मंत्री दीवान धनवान साहूकारों के!
ना कि जात पात धरम में बंटे घरों में भारतीयों के!-
बालियां
एक चट्टान में साथ थे
एक ही तार से गढ़े थे
एक शोकेस में सजे
एक डिब्बी में बिके
कान की बालियां तुम और हम
एक कान सजे तुम दूजे में हम
इतने पास पास फिर भी इतने दूर दूर
न दीदार न छुवन न खनक न आलिंगन
इंतज़ार रहता है कब उतरेंगे कानों से
फिर से डिब्बी में मिलेंगे तुम और हम-
दूर घर जला
मेरा क्या
किसान का घर जला
मेरा क्या
जवान का घर जला
मेरा क्या
बेकाम का घर जला
मेरा क्या
विद्वान का घर जला
मेरा क्या
मेरा घर जला
औरों का क्या
पूरी रचना कैप्शन में-
वो बर्बाद होगा
हुक़ूमत से जो मिला वो आबाद होगा
सरफ़रोशों के बेदर्दी से सर होंगे कलम
बदनीयत गद्दारों का ही ज़िंदाबाद होगा
रिश्वतखोरों हरामखोरों का मरहबाद होगा
चोर लूटेरों के ज़ुबाँ पर फरियाद होगा
वज़ीर की इमदाद से शादाब कारोबारी
हरेक वासी प्रवासी बस तबाहबाद होगा
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सारी हदें पार है
बस व्यापारी और प्रधान के हाथों में लगाम
शेष पक्ष विपक्ष प्रशासन बुज़दिल बेजुबान
जनता मूक रुष्ट है बेरोजगार है निराहार है
आजकल इस देश में सारी हदें पार है
पूरी रचना कैप्शन में-
गे संसार के पालक होगे
कण कण में बसते होगे रग रग में बहते होगे
मैं बुद्धिहीन अंधा हूँ किन्तु बड़ा हठी बंदा हूँ
मैं तब तक न मानूँगा जब तक न दर्शन दोगे-
मेरे सपनों का भारत
हर चेहरे पे मुस्कान हो, हर हाथों को काम हो
ऊँचा स्वाभिमान हो, हर भारतीय कीर्तिमान हो
ज्ञान का सम्मान हो, विज्ञान का उत्थान हो
रोगों पे लगाम हो, भ्रष्टाचार का न निशान हो
वाणी में मिठास हो, सफलताओ की प्यास हो
आलस्य को अवकाश हो, अनगिनत प्रयास हो
कृषि का विकास हो, मंजिले आकाश हो
अज्ञानता का नाश हो, हृदय में प्रकाश हो
अन्न का भंडार हो, नित्य नूतन अविष्कार हो
शिक्षा का संचार हो, प्रगति का विचार हो
निष्ठा और लगन से लक्ष्य पे प्रहार हो
ग़रीबी भूख बेरोजगारी से जंग आरपार हो
आतंक का संहार हो, अहिंसा का व्यवहार हो
सबको सबसे प्यार हो, ऐसे संस्कार हो
मुख पे मोहक हर्ष हो, भीषण संघर्ष हो
सद्भाव सदाचार हो, किन्तु पराजय अस्वीकार हो
हर भारतीय आगे बढे, हर संभव यत्न हो
सौ बार हो विफल, एक और प्रयत्न हो
मिल के ये ले शपथ, चलेंगे हम प्रगति पथ
फिर ये स्वप्न साकार हो, और ऐसा चमत्कार हो-