Stop War! ✋🕊️
I feel devastated, 💔
broken inside,
by violence, by war, ⚔️
by those who've died. ⚰️
People oppress, kill people, 😢
again & again,
Asia to Europe, 🌏
drowning in pain. 😞
Full poem in Caption!-
सिंदूर
मेरी रगों में बहे
उजड़ी माँग का मिटा सिंदूर,
टूटे कंगन, चूड़ियों की चीख,
बिखरे काजल, सूने तावीज़,
फीकी मेहंदी, सादे वस्त्र;
उन लाखों का जो खो गए-
नफरती दंगों की आग में,
नस्लवादी हिंसा के उन्माद में,
सीमा की रक्षा में, देश की सुरक्षा में,
आतंकी हमलों में, किसान आंदोलनों में,
नोटबंदी की कतारों में, कोविड की चीत्कारों में,
सड़कों और पुलों के भ्रष्टाचारों में,
धर्म, गौ, मांस के नाम हिंसा संहारों में,
सबका लहू बहे मेरी नसों में।
देखता हूँ, जानता हूँ, गौण हूँ, मौन हूँ।
पहचाना, मैं कौन हूँ?
मैं समय हूँ, मैं समय हूँ!-
धिक्कार है
एक सैनिक की नवी नवेली सधवा
बनी एक शहीद की विधवा
शोकाकुल परिजन, परिवार, मोहल्ला, शहर
भावमग्न, व्याकुल, अश्रुपूर्ण चहु-ओर हर नजर
उसके उलट, कुछ पथभ्रष्ट, भावहीन
विवेकहीन, विचारहीन, संवेदनाहीन
निर्लज्ज पशुओं, असुरों का व्यवहार
मानवता को कर रहा शर्मसार
ऐसे पाषाणहृदय, मानवता के परम कलंक
जो सोशल मीडिया की नालियों में पनपते हैं
अवांछित घृणा की आग में व्यर्थ धधकते हैं
धिक्कार है उनपर, धिक्कार है, धिक्कार है
जिन आतंकी हैवानों ने जघन्य हत्या को अंजाम दिया
वो उनके मालिक मददगार तो जलेंगे जहन्नुम की आग में
किन्तु उन कुत्सित विष उगलने वाले अमानुषों पर
धिक्कार है, धिक्कार है, धिक्कार है।-
मज़बूर मज़दूर
मज़दूर मज़बूर है,
मज़बूर ही मज़दूर है।
पसीने का मोल नहीं,
ग़रीब होना क़सूर है।
सोचता हर बेक़सूर है,
क्यों सिस्टम मगरूर है?
फिर भी दिल में शुरूर है,
मेहनत में ही गुरूर है।
जुनून है, फितूर है,
रोटी ही हुज़ूर है।
काम में ही डूबे रहना,
प्रवासी का दस्तूर है।
सम्मान और उचित दाम,
चाहे किसान, जवान, मज़दूर।
दया नहीं, भीख नहीं,
हक़ माँगता हर मजबूर है।
पूँजीवाद का चलन है,
दोहन-शोषण भरपूर है।
एक दिन सब ठीक होगा,
दिल में सोच ये मशहूर है।-
हमारी तेरी नज़रों में
मसला पड़ा एक फूल क्या मैं तेरी नज़रों में
मैं सूखा खस्ता रस्ता हूँ तू रिमझिम बारिश है
तेरी हर बूंद अमृत है शहद है मेरी नज़रों में-
सोने की चिड़िया
सोने की चिड़िया "था" भारत!
चिड़िया क़ैद पिंजरों में
राजा महराजा मंत्री दीवान धनवान साहूकारों के!
ना कि जात पात धरम में बंटे घरों में भारतीयों के!
सोने की चिड़िया "है" भारत!
चिड़िया क़ैद पिंजरों में
राजा महराजा मंत्री दीवान धनवान साहूकारों के!
ना कि जात पात धरम में बंटे घरों में भारतीयों के!-
बालियां
एक चट्टान में साथ थे
एक ही तार से गढ़े थे
एक शोकेस में सजे
एक डिब्बी में बिके
कान की बालियां तुम और हम
एक कान सजे तुम दूजे में हम
इतने पास पास फिर भी इतने दूर दूर
न दीदार न छुवन न खनक न आलिंगन
इंतज़ार रहता है कब उतरेंगे कानों से
फिर से डिब्बी में मिलेंगे तुम और हम-
दूर घर जला
मेरा क्या
किसान का घर जला
मेरा क्या
जवान का घर जला
मेरा क्या
बेकाम का घर जला
मेरा क्या
विद्वान का घर जला
मेरा क्या
मेरा घर जला
औरों का क्या
पूरी रचना कैप्शन में-
वो बर्बाद होगा
हुक़ूमत से जो मिला वो आबाद होगा
सरफ़रोशों के बेदर्दी से सर होंगे कलम
बदनीयत गद्दारों का ही ज़िंदाबाद होगा
रिश्वतखोरों हरामखोरों का मरहबाद होगा
चोर लूटेरों के ज़ुबाँ पर फरियाद होगा
वज़ीर की इमदाद से शादाब कारोबारी
हरेक वासी प्रवासी बस तबाहबाद होगा
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सारी हदें पार है
बस व्यापारी और प्रधान के हाथों में लगाम
शेष पक्ष विपक्ष प्रशासन बुज़दिल बेजुबान
जनता मूक रुष्ट है बेरोजगार है निराहार है
आजकल इस देश में सारी हदें पार है
पूरी रचना कैप्शन में-