बरसो साथ कि हस्ती थी, ख़ामोशी लफ्ज़ों को तरसती थी,
चाहत तब भी थी, अब भी है, एक मैं था और एक तू थी!-
शहर वालों जरा सिद्धत से पेश आया करो।
यहां पर जो बस्ती है गांव वालों की हस्ती है।-
तन्हाई की भी कुछ अलग ही हस्ती है
अपने पास हो तो अच्छी,
पर किसी अपने के पास हो तो बुरी लगती है!!-
जब भी कभी तेरी हँसी बेज़ार सी दिखती है
तो मेरी भी हस्ती यूँ बिखरने सी लगती है...-
जिंदगी गुमनाम रह जाये पर मौत मेरी इतिहास बन जाये
काम कर जाऊँ कुछ ऐसा या तो हस्ती मिट जाये या बनकर मोती चमक जाये ।।-
"निकला हूँ रेत के समन्दर में कश्ती चलाने को
मत ले मेरे हौसलें का इम्तिहान
मैं निकला हूँ तेरी हस्ती मिटाने को"
©कुँवर की कलम से...✍-
पता है सबके जीवन में कम बना हूं मैं
कम सही पर दर्द नही मरहम बना हूं मैं।-
बहुतों ने कोशिश की मेरी हस्ती जलाने की,
वे देखते रहे मैंने बसा दी बस्ती संदलों की।-
दुनिया की छोटी एक रीति है,
ये हर इंसान पे हंसती है,
इस हँसी को जो जयकार में बदले,
तुझे बनना अब वो हस्ती है।
एक बदरंगी माहौल में भी
वो ख़ास रंग का गुलाल तु बन।
दुःख दर्द को होलिका में अब जला,
आगे बढ़ती ललकार तु बन।
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तू ही राजी मेरी इस मस्ती में
मेरा राही सिर्फ तू इस हस्ती का,
एक तू ही साथी उजड़ी इस बस्ती में
मेरा मांझी सिर्फ तू डूबती कश्ती का।।
।।जय महाकाल।।
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