कुँवर दीपेन्द्र "नादान"  
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Joined 4 December 2018


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Joined 4 December 2018

मत पूछ आज मेरी जद
बस तोड़ दे तू सारी हद


©कुँवर की क़लम से...✍️

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हमारी महफ़िल में भी छलकता जाम होता
ग़र उधर से प्यार भरा कोई पैगाम होता

©कुँवर की क़लम से....✍️

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लेखन के साथ शुरू से ही मुझे संगीत का शौक रहा हैं
जिस प्रकार लेखन सृजनात्मक शक्ति को सशक्त करता हैं उसी तरह संगीत हमें मानसिक तनाव से मुक्त कर एक ताज़गी का एहसास कराता हैं। कुछ गाने जो मैंने गाए हैं की श्रृंखला आपके साथ साझा कर रहा हूं उम्मीद करता हूं आप उस पर अपनी अमूल्य प्रतिक्रिया देखकर मुझे अनुग्रहित करेंगे। सुनने के लिए मेरे प्रोफाइल के Bio में दिए लिंक पर क्लिक करिए। आपकी प्रतिक्रिया और सुझावों का अभिलाषी।
सादर 🌹🙏🌹

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पहली बार ❤️
ख़्वाब बुने कई हजार
खूबसूरत एहसासों के घोल से बनाई
प्रेम से लबरेज़ स्याही
जो दे रहें थे मेरे हाल-ए-दिल की गवाही
जिसने उकेरे थे कई जज़्बात कोरे कागज पर
लेकिन नियति हँस रहीं थी मेरी क़िस्मत पर
लिफ़ाफा अभी बंद भी नहीं किया था
कि सामने से उनका इक ख़त आया
बेचैनी बढ़ी बेताबी से दिल घबराया
खोला तो कुछ ऐसा लिखा पाया
कि फिर कभी प्रेम पत्र ना लिखने का ख़याल आया
बड़ी शिद्दत से संभाल के रखा है आज भी कुछ सुखी पंखुड़ियों के संग
कि कोई तो आएगा जो इन सूखे गुलाबों की खुशबू को दिल की तह तक ले जायेगा....

कुँवर की क़लम से....✍️

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में "शक्ति स्वरूपा" हर घर फेर लगाती हैं
हम सब में विश्वास हैं धर ती
नई चेतना सब में जगाती हैं
सम्पूर्ण धरा का कल्याण वो करने
प्रस्फुटित हो नव अंकुरण में समाती हैं
फूल फल से धन धान्य हैं करती
सृष्टि की भूक मिटाती हैं
कलरव करते पक्षी सारे
आसमान भी गाता हैं
"नवसंवत्सर" भी इसी "शक्ति"से
उल्लास का दिन बन जाता हैं
आम नहीं बहुत खास हैं चैत्र माह
सब देव रमण को आते हैं
यूँ ही नहीं "श्री राम" के माथे "राजतिलक" कर जाते हैं...
©कुँवर की क़लम से...✍️

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💞 "तुम इश्क़ में हो " 💞

जब पूरा दिन उसकी एक झलक के इंतजार में ढले और
रात भी ख्वाबों के दीप संग जले
तो समझ लो तुम इश्क़ में हो....
जब आंखों को सिर्फ एक ही चेहरा नूरानी लगे और
वो सारी रात उस चेहरे संग जगे
तो समझ लो तुम इश्क़ में हो...

🔰पूरी रचना अनुशीर्षक में पढ़े 🔰

© कुँवर की क़लम से...✍️

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-------" तुम " ------

मेरी हर सुबह की पहली अजान हो "तुम"
मेरे नये ख़्वाबों की नई उड़ान हो "तुम"

पूरी रचना अनुशीर्षक में पढ़े🌹🙏

©कुँवर की क़लम से....✍️

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तुम कोई पहेली हो
या फिर मेरे ख्वाबों की सहेली हो...
ना समझा हूँ , ना समझता हूँ
फिर भी ख़्वाब तेरे ही बुनता हूँ
मन को रोकता हूँ , ख़ुद को टोकता हूँ
फिर भी ना जाने क्यों तुम्हें ही सोचता हूँ
तुम कोई पहेली हो
या फिर मेरे ख्वाबों की सहेली हो...
खट्टी मीठी यादों को कभी सहेजता हूँ, कभी मिटाता हूँ
फिर भी तेरे ही एहसासों में खुद को पाता हूँ
लोगों में झाँकता हूँ, ख़ुद से भागता हूँ
अपनों से बिगड़ता हूँ , ग़ैरों को सुनता हूँ
फिर भी ना जाने क्यों तुम्हें ही चुनता हूँ
तुम कोई पहेली हो
या फिर मेरे ख्वाबों की सहेली हो....

©कुँवर की क़लम से....✍️

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कि कौन रहता हैं तेरे कोने में
नाम आते ही जिसका
क्यों धड़क उठता हैं सीने में..
©कुँवर की क़लम से...✍️

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" तेरे जिस्म की जादूगरी में रात भी करवटें बदलती रही
मदहोशी ऐसी छाई कि प्यास भी बदन की सलवटों में
ढलती रही "

©कुँवर की क़लम से...✍️

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