MD Bhuradia   ([©M D Bhuradia "बाग़ी"])
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Joined 13 March 2017


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Joined 13 March 2017
10 JUL 2020 AT 19:07

अपाहिज़ मज़हब को
ज़रूरत होती है दूसरे मज़हब की
जिसकी मुण्डी तोड़ कर
उसकी पीठ पर सवार हो सके
वो खुश होता है
दूसरे के बदन को
पैरों तले देख कर
बैशाखी कहना अपमानजनक है ना
ख़ैर
ऊपर होना किसे नहीं भाता
दूसरे को रौंदकर तो और भी ।।

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9 JUL 2020 AT 17:08

"पशु और औरत"

जानते हो पशुओं को "बांगरुँ" क्यूँ बोलने लगते है
क्यूँ अचानक से वो लगने लगते है आवारा
वो जब दूध देने से इन्कार कर देते है
इन्कार कर देते है हमारे बनाये कायदों पर चलने से
वो खूँटें पर बँधने के बजाय चुन लेते है आज़ादी
वो खुद घूमना चाहते है धरती की कोने से दरिया के किनारे तक
वो देखना चाहते है कि उनके पैर दौड़ना भूल तो नहीं गये
वो सींगों में उछालना चाहते है रेत आसमाँ की तरफ़
वो नाक में नकेल की जगह नथूने फुला कर दुश्मन को ललकारना चाहते है
अब वो चारदीवारी जो उसको हिफ़ाज़त के नाम पर दी गई थी
लांघ लेना चाहते है
अपने चारे और पानी का वक़्त वो खुद तय करना चाहते है

और उसकी ये समाज की रवायतों से अलग चलने की चाहतें हमें हज़म नहीं होती
करार दे दिया जाता है उन्हें बांगरुँ का
ठीक वैसे ही
जैसे आज़ादी पसंद औरत को करार दे दिया जाता है
"बदचलन" होने का .......

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7 OCT 2018 AT 9:55

वो अल्हड़ प्रेम में समर्पण को कुछ ऐसे दर्शाती है
मुझ से, मेरी माँ को अपनी माँ कह लड़ जाती है !

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1 OCT 2018 AT 14:36

वो डट कर लड़ता जा रहा था हालातों से तो कभी अपनों से और हद तो तब हुई जब लड़ना पड़ा अपने आप से भी ! ख़ुद से जंग मुश्किल है पार पाना और भी , गर पार पा भी गये तो मियां बचोगे कितना पता नहीं !वो भी इसी जद्दोजहद में लड़ता जा रहा था , निचोड़ रहा था अपने अंदर छिपे साहस के कतरे कतरे को ताकि जीत जाये ! पर इन्सान और किस्मत में जब ठन जाये तो लड़ना ही दुश्वार हो जाता है जीत की बात बाद में ! वो दुनिया से दूर निकलता है जिस्मानी साथ हो कर भी ! फिर वो लड़ता है अपनी उड़ती नींदों से , गहराते अँधेरों से , अकेलेपन से , नाराज़गी तो कभी अपने ही गुस्से से ! और फिर शुरू होता है विचारों का अन्धाधुंध प्रहार उसके कोमल मन पर , जो जरूरी भी है आखिर सख्त बनाना है , तैयार करना है उसे वक्त के आगे आने वाले थपेड़ों से बचाने के लिए ! जब पार कर लेता है हर इम्तिहान वक्त का और जला लेता है कतरा कतरा लहू का , उम्मीदों को , तब फिर.....
जन्म होता है इक शाइर का !

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12 MAR 2018 AT 21:39

यारों, अब और मुझ से उसका इंतज़ार होता नहीं
देखो, खबर मिली है याद में मेरी वो भी सोता नहीं

मुद्दतों से लगाये है जमाने ने पहरे इश्क पर कई
आशिक मगर वो भी सच्चा है, सब्र खोता नहीं

मौसम की बेईमानी के किस्से हजार है यहाँ यारों
होता डर तो , बीज मुहब्बत का यूँ वो बोता नहीं

ना हिज़्र और ना कुर्बतों का गुलाम है ये इश्क़ हमारा
शिद्दत से वफादारी में लगा है यार देखो, वो रोता नहीं

मुनाज़िमों में तग़ज़्ज़ुल के पैमाने बताता है"एम डी"
महफिल सजा दिल तोड़ने का ख़्वाब वो संजोता नहीं !!

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19 AUG 2017 AT 23:49

शोहरत के महल तुम्हें मुबारक, हम तो मलंग ही अच्छे है
तुम रहना दायरों में सिमट कर, हम तो खानाबदोश अच्छे हैं !!

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12 JUL 2017 AT 22:14

कभी मैंने जूठा खाना नहीं खाया
और बात करते हो उस जूठन से शादी करने की ।।

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23 MAR 2017 AT 17:14

सुनो प्रिये !
मुझे तेरे इश्क में ज़ुदाई मंजूर हैं
पर तेरी बेवफाई नहीं।
क्योंकि मैंने इश्क में दिल हारा है
अपना आत्मसम्मान नहीं।

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19 JAN 2021 AT 17:52

मैं जब सपनों में भी घर बनाती हूँ
तो एक चीज कभी नहीं भूलती
वो है खिड़कियाँ रखना
क्योंकि
पहरें दरवाजों पर होते हैं
खिड़कियाँ अछूती है
शायद ......

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24 DEC 2020 AT 21:07

"बँटवारा"

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