हरतालिका तीज पावन, आयो है मनभावन,
अखंड सुहाग- सौभाग्य वर पाए हर सुहागन!
भर सिंदूर, चूड़ी, चुनरी, बिंदी, मेंहदी, महावर,
लाल श्रृंगार में छब गौरी, उतरी आँगन-आँगन!
श्रद्धा की मिट्टी में, शुद्ध भाव गंगाजल मिला,
गढ़े शिव, पार्वती, गणेश मूरत, कर मंत्र मनन!
प्राण प्रतिष्ठा आस्था रूपी, भरके कण-कण,
बेलपत्र, सुहाग श्रृंगार, दूर्वा, सब करे अर्पण!
सुगंधित फूलों से सजा, भोग पकवानों लगा,
सुहाग के मंगल को ले, निर्जला व्रत का प्रण!
जागे पूरी रात, भक्ति गीत उमा शिव के गात,
त्रुटि क्षमा जे कोई, कहे हाथ जोड़, मूँद नयन!
हरतालिका तीज पावन, आयो है मनभावन,
अखंड सुहाग-सौभाग्य वर पाए हर सुहागन!-
दिनकर मुस्काता,
उड़ते रहते वहाँ
बादलों के ढेर,
उड़ते रंग बिरंगे
पाँख पसारे पंछी,
निशा में चंदा तारे
उसके अनगिनत,
निस्सीम नभ एक।
जीवनसाथी संग
मुस्कान सामन्जस्य,
आते जाते ये सारे
सुख दुःख अपने,
सदा अर्पण भाव,
हमारी भावनाएं,
ही यहाँ जगातीं हैं
सुंदर सपने अनेक
प्रिय!हम हैं एक।
-रेणु शर्मा
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युगों युगों की लालसा
युग युग का यह प्रेम
मेरी भी उमर तुम्हें लगे
इस तीज बस यही क्षेम..-
सखी, आया हरितालिका तीज का त्यौहार
भादो तृतीया की तिथि
जब पार्वती ने भगवान शिव के ख़ातिर
निर्जला तीज का त्यौहार किया था
सखियों ने हर लाया था माँ पार्वती को
इसीलिए ये व्रत हरतालिका कहलाती है
हम सुहागिनें भी सज-धज कर
अखंड सुहाग का वरदान शिव-पार्वती से माँगते हैं
माथे में टीका, नाक में नथिया, हाथों में मेहंदी
कर के सोलह श्रृंगार शिव को बेलपत्र चढ़ाते हैं
बड़ी ही श्रद्धा से हम खजूर, पेरकिया बनाकर
फ़लों के साथ शिव को कंदमूल चढ़ाते हैं
अचल रहे सुहाग हमारा, माँग में सिंदूर सदा
यही माँग हम निर्जला कठिन व्रत ये करते हैं
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काश कोई हमसे भी लम्बे रिश्ते की आस रखता
कभी कोई व्रत कोइ उपवास रखता...
कोई तो कभी माँ बेटी बहन या पत्नी के लिए
निर्जला न सही फलाहार ही रखता....
काश कोई.....हमसे भी....लम्बे रिश्ते... की आस रखता..।....M.A.-
अगणित असंख्य अनंत प्रेम कथाओं में, है प्रेम की एक दिव्य कथा
सती वियोग में रूद्र रूप की, गिरिराजसुता की जन्मकथा
दक्षसुता का दक्षयज्ञ पर, विकल हो जब हठ हुआ
यज्ञशाला में दाक्षायणी ने, अपशब्द सुने अपमान हुआ
उस विश्वात्मिका के आत्मदाह की, त्याग की यह मूल कथा
सती वियोग...........
जिनका रौद्र भयंकर है, उन महारूद्र ने क्रोध किया
रुकी गति ब्रह्माण्ड की, जब यज्ञ का विध्वंस किया
शिवा विरह में शिवापति के वैराग्य की यह मूल कथा
सती वियोग..........
यह प्रेम की प्रतीक्षा थी या प्रेम की परीक्षा थी
सती ही हर जन्म अर्धांगिनी हो, यह सतीपति की प्रतिज्ञा थी
उन आदियोगी की, श्रेष्ठ साधक की, चिंतन की यह मूल कथा
सती वियोग.......
सती का पुनर्जन्म हुआ जो, मैना-शैल के आँगन पली
नारदजी से गुरुदीक्षा ले, महातपस्या पर महागौरी चली
पार्वती की नियति में यह योग बडा़ विलक्षण है, सर्वशुभ मंगल है, अति उत्तम है
शिव ही वर सर्वोत्तम है.....
शिव ही वर सर्वोत्तम है....
#शुभ हरतालिकातीज
क्षत्राणी😊-
तीज का त्यौहार है, गुजिया की थाल सजाई है
हर सुहागन को इस मंगल पर्व की बधाई है।।
दोनों हाथों में भी भर भर मेंहदी लगाई है
देखो ना सजना तेरे लिए मांग सजाई है।।
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तीन लोक के स्वामी हैं पर भौतिकता का ज्ञान नहीं,
लोकरक्षा में पिया जिसने विष स्वार्थ का संज्ञान नहीं।
महादेव होकर भी जिनको शक्ति का अभिमान नहीं
शिव के भक्त हो तो सुन लो शिव होना आसान नहीं।
गृहस्थ हैं पर उलझे ना जो मायामोह का भान नहीं,
वामांग में धारण कर गौरा को दें पत्नी का स्थान सही।
सरल-सहज हैं अजर-अमर हैं कलयुग का उद्धार यही,
शिव के भक्त हो तो सुन लो शिव होना आसान नहीं।
©️Purnima ✍️
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काहे को मार रहो लाठी...,
अरे रे मैं तो तीजा उपासी...
भए भुनसारे सपरेँ जाबी,
भजन भोले के खूबई गाबी,
काहे को उड़ाबे मोरी हाँसी,
अरे रे मैं तो तीजा उपासी...
तीन बेर की रोटी पकाऊँ,
तान पेट तोहे धसाऊँ,
परो परो लेवत उबासी,
अरे रे मैं तो तीजा उपासी....
पूरे दिन जल दरस न हुईहें
देख देख गुझिया मन ललचइहे
मनुआ मा होत रे उदासी
अरे रे मैं तो तीजा उपासी...
सुन मुन्ने के बापू सुन ले,
काम काज नहीं हमसे होबे,
भूलई से समझियो नहीं दासी,
अरे रे मैं तो तीजा उपासी....
हर जन्म मैं तुम्हई को बरिहों
ठोक पीट सुधारो बालम,
कोई खों ना दईहों,
सौतनिया की मैं खून की प्यासी,
अरे रे मैं तीजा उपासी....-