गर करूं ज़िक्र-ए-आलम तो तू ही तू नजर आए,
सारा जहाँ नहीं, मेरा हर आलम तुझसे ही है।।-
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तुझसे ही वाबस्ता है अब मेरी हर सांस,
तेरे सिवा कोई तमन्ना बाकी नहीं।-
तेरी खुशबू में जो बात है,
कहनी वही बस आज है।
लबों पे रुके हैं जज़्बात सब,
दिल पर तेरा ही राज़ है।
तेरे बिना सब सूना लगे,
हर एक घड़ी जैसे साज़ है।
तेरे ख्यालों में जी रहे,
ये इश्क़ ही मेरी आवाज़ है।
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"हम अब भी तेरी मोहब्बत के तलबगार हैं,
तेरे बग़ैर कोई मंज़र दिल को रास नहीं आता।-
अब भी तिरी मोहब्बत की इक क़सम को तरस रहीं,
छूटी हुई उस अधूरी सी क़लम को तरस रहीं।
कुछ बूंदें भी बरस रहीं, पर धरती को तरस रही,
मैं भी हूँ उस नमी में लेकिन, हम होने को तरस रहीं।
तेरी तरफ़ जो जुल्फ़ उड़ती थी, वो हवा है चुप,
वो रंग, वो घटाएँ, अब तो दम को तरस रहीं।
तू रूठ कर गया तो जैसे वक्त ही ठहर गया,
अब हर घड़ी तेरे दिए उस ग़म को तरस रहीं।
ना संदेश, ना कोई ख़बर, ना कोई नाम तेरा,
तेरी तरफ़ से एक झूठे भरम को तरस रहीं।
रखे थे तूने जो मेरे पास चंद नग़्मे-ए-ग़म,
वो धड़कनें भी अब इक सरगम को तरस रहीं।
बुझते नहीं हैं दिल के जो जज़्बात तुझ बिन ‘प्रीत’,
ये रूह अब भी तेरे दिए हर दम को तरस रहीं।
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