जवाब देना जरूरी नहीं लगता
कोई सवाल अब चुभता नहीं लगता
बहुत अच्छी लगने लगी है दुनिया मुझे
दुनियादारी मैं अब मन नहीं लगता
जो जैसा है वैसा ही है
मन को कोई अब बुरा नहीं लगता
ये पसंद ना पसंद का दौर कब का खत्म हुआ
सब हकीकत है कुछ भी सपना नहीं लगता ...M.A.-
तेरी छांव से निकले
तो पता चला
कि.....
धूप कड़ी नहीं होती
गुनगुनी भी होती है
...M A.-
किसी का सपना है इश्क ,
कोई सपने में देखे है इश्क ,
जो निकल आए कोई सपनों से...
तो फिर ढूंढे ना मिले इश्क,
हमने तो खुद ही इश्क को सपनों में जाते देखा है
जो हो हकीकत तो फिर वो काहे का इश्क....
M.A-
सबसे सुलझी हुई
ढलान पर चलोगे...
मैं उम्र की ढलान में हूँ
साथ चलोगे ??
...M.A.-
हर दूसरे तीसरे दिन तीज होनी चाहिए
केवल मेरी नहीं कुछ तेरी भी रीत होनी चाहिए
जिस कीमत पर उम्र मिलती हो
उस कीमत की परवाह होनी चाहिए
कुछ भाग्य सौभाग्य वाली बातों की भी
दुकान होनी चाहिए
फिर मिलकर बैठेंगे चौथे दिन
उस दिन
नफा नुकसान वाली किताब होनी चाहिए
हर दूसरे तीसरे दिन तीज होनी चाहिए ....M.A.
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लोगों की मुझमे दिलचस्पियां बढ़ती जा रही है ,
इसमें हाथ मेरी खामियाॅ गिनाने वालों का तो नहीं,
चर्चा यूं आम तो किसी का होता नहीं मेज़ो पे ,
खुराफात कोई इसमे मेरे रकीबो की तो नही ,
हर कोई देखता है अब तिलस्मी नजर से,
कहीं हर शख्स मुझमें खुद को ढूंढता तो नहीं.।।
..M.A.
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केवल प्रेम स्नेह विश्वास ही नहीं बांधूंगी
सवाल भी बांधूंगी मेरे भैया
बताओ ...
बाॅधवाओगे ना ....राखी ।।
M.A.-
कहीं कोई बलात्कारी तो नहीं
कहीं कोई वहशी दरिंदे तो नहीं
बलात्कारियों वाले दल में तो नहीं
दरिंदों की टोली में तो नहीं
उनके समर्थकों में तो नहीं
उनके जैसे तो नहीं
हॅ हॅ ..... न न .. नहीं ना
तो आओ....
राखी से सजाऊॅ तेरी कलाई
और ....
हो सकूं गौरवान्वित...
कि तुम हो मेरे "भाई" ।।।
M.A.-
हर कोई
उधार की साँस में ही जी रहा है
न जाने
कौन किस-किस की साँस पर जी रहा है
हम सोचते हैं
कि मुझ में बस मेरी जान है
अंदर अंदर
न जाने कौन-कौन जी रहा है...M.A.-