भगवान जी कण कण में है आपका वास,
कर्म देख ही कृपा बरसाते हैं दिन रात।
भगवान जी जीवन जीना ना जाने हैं हम
आप देखना समझाना सदैव थामें रहना हाथ।
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सुंदरता कितनी फैली है,
खुशियांँ कितनी सारी हैं,
सदैव हँसना मुस्कुराना है।
जीवन में नकारात्मकता को
बिल्कुल नहीं पकड़ना है
जबरन डूब डूबकर,ढूंढ ढूंढकर।😀
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प्यासी चिड़िया
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सूरज तेज चमक रहा था
सब थे गर्मी से बेहाल,
ताल तलैया सब सूखे थे
पशु पक्षी का था बुरा हाल।
एक नन्ही चिड़िया प्यासी थी
प्यासे मन में बड़ी उदासी थी
पानी की तलाश में भटक रही थी
एक आँगन में उतर कर आई
नल बन्द था बाल्टी थी खाली
कैसे पीए पानी चिड़िया रानी
इधर उधर वह फुदक रही थी,
तेज प्यास से तड़प रही थी।
नहीं दिख रहा था कहीं पानी
लेकिन चिड़िया हार ना मानी,
जा पानी के पाइप पर बैठी
काश कहीं पानी मिल जाता
बार-बार मन में ख़्याल यही आता।
चौंक उठी थी चिड़िया रानी,
पाइप पर कुछ लिपटा था
शायद पाइप फटा हुआ था,
बँधा प्लास्टिक,कपड़ा था
चिड़िया उसे चोंच से लगी खोलने
कुछ ही देर में पानी रिस रिस आया
सफल हुआ नन्ही चिड़िया का प्रयास
वह पानी पीकर बुझाई अपनी प्यास।
रेणु शर्मा
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धरा देखूँ, गगन देखूँ ,
निहारूँ क्षितिज को
पढूँ जमाने को या
पढूँ इनको उनको
हर तरफ वही है अतः
पूर्ण पहचान सकूँ ।
बेकार की चीजे फेंक
उसे उसके रूप का
विस्तार करने दूँ
रग रग का मुआयना कर
निखार सकूँ
स्वयं को.......
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गोस्वामी जी बता गए कभी विपत्ति ना आएगी यदि होंगे ये साथी साथ
विद्या, विनय,विवेक, साहस, सतकर्म, सत्यनिष्ठा एवं प्रभु के प्रति विश्वास।-
सांझ की सुंदर लालिमा है
है कल की नई आस भी ।
हृदय है कहने को आतुर
आज सभी का आभार
कोटि कोटि है आभार।
लेकर भला आई थी क्या
स्नेहाशीष सबका मिला
यह जो प्राप्त दुष्प्राप्य है।
आप सभी का आभार
कोटि कोटि है आभार।
धूल भरे पथ भी कहीं थे
समक्ष हृदय के जब आये
बन सुमन सहज स्वीकार।
आप सभी का आभार
कोटि कोटि है आभार।
क्षण में एक उड़ान भरकर
सब चलेंगे उस पार
प्रेम रहे ,संस्कार रहे,
सदैव रहे स्नेहिल व्यवहार
पास सभी के मुक्ता अंबार
जीवन रामायण गीता सार।
आप सभी का आभार,
कोटि कोटि है आभार।
-रेणु शर्मा
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यह यात्रा करो तुम,
सदा सत्य के साथ।
कभी नहीं बिसराना
हृदय से यह बात।-
दधेड़ी में नाच रहा मथदंड
मैया यशोदा बिलोय रही माखन।
संभल संभल नन्हे पाँव से चल
मैया के समीप आ गया कान्हा
शीश पर माँ ने आँचल धरा था
हाँथों से आँचल गिरा दिया कान्हा।
दधेड़ी में नाच रहा मथदंड
माँ यशोदा बिलोय रही माखन.....
अनुशीर्षक में.....
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सच्चे मन से लीजिये नित प्रभु का नाम,
साँस साँस में रटन से दर्शन चारों धाम।-