वतन के वास्ते दिल में जुनून कायम रहे,
कोशिश होगी हर- सू सुकून कायम रहे।
जहाँ में सबसे अलग हो हमारी पहचान,
विश्व गुरू की दुनिया में शान कायम रहे।
तिरंगे के सम्मान में झुक गया आसमाँ ,
कि मातृभूमि का स्वाभिमान कायम रहे।
गणतंत्र का ये पर्व सिखाता सभी को यह,
हमारे कर्त्तव्यों में संविधान कायम रहे।
फ़िज़ाओं में गूँजा करें अमन की सदाएँ ,
दिल में प्रेम,भाईचारे का स्थान कायम रहे।
चलें राह जहाँ इन्साफ की आवाज़ बुलंद हो,
सच्चाई की जीत का जहान कायम रहे।
"गणतंत्र दिवस" पर कर लें ख़ुद से वादा,
इस महान गणतंत्र का उनवान कायम रहे।-
प्रतिभा पाठक , मैं अध्यापिका हूं ।
लेखन का शौक अज्ञात था । लॉक डाउन के समय ... read more
मेरी पहली कविता ने, बुनी ज़िंदगी की चाहत,
उलझे शब्दों में बंधकर,मिली पल भर को राहत।
मिलोगे जब तुम मुझसे, बताएँगे सफ़र अपना,
मगर ये शर्त मानो तुम, ना होना कभी आहत।
नहीं रस छंद का बंधन,नहीं तराशने का जतन,
ये बातें सिर्फ़ बातें हैं,जिनमे नज़र आती ज़राहत।
यूँ ही लिख जाती मन की,मोल ख़ुद ही मैं जानूँ,
मैं ज़िंदा हूँ जब तक ,करुँगी शब्दों की हिफ़ाजत।
नींद में तैरते हैं लफ़्ज़ कुछ ,थोड़ा बेचैन होकर,
आड़े तिरछे और अनगढ़,पर हसीँ लगते निहायत।-
कहना था बहुत कुछ पर हम छुपाते रहे,
दिल तो जार-जार रोया होंठ मुस्काते रहे।
मालूम नहीं क्या बात है,कैसे ये ज़ज़्बात हैं,
नज़र उनसे जब मिलीँ तो बहाने बनाते रहे।
डूब जाने का डर था, डूबने की बेताबी भी,
ख़याल उनके तूफ़ाँ बन मुझसे टकराते रहे।
चाँद खोया सा लगा आसमाँ धोया लगा,
स्याह कोने में छुपे हम सावन बरसाते रहे।
बिन कहे क्या कभी सुनोगे दिल की सदाएँ,
हमनवा हमदम मेरे क्यों अजनबी बनते रहे।-
ख़ामोशी की ज़ुबां से वो तीर मारते हैं,
बेबसों पर नित नए हुनर आज़माते हैं।
हम तो एहसास बयाँ कर भी नहीं सके,
वो हाल-ए-दिल सनसनी ख़बर बनाते हैं।
सरगम के इशारे पर हवा भी गुनगुनाती,
आवाज़ से मेरी वो अपने सुर मिलाते हैं।
चिलमन की आड़ लेकर धड़कनें सुनते,
मगर रू ब रू आकर तो ज़ुल्म ही ढाते हैं।
गर इस ओर भी ख़ामोशी छा जाए तो,
आँखों में आँसू भरकर सवाल पूछते हैं।
लगता है मुसलसल ख़ारों पर चल रहे,
इक वो हैं कि हँसते- हँसते दर्द तौलते हैं।-
प्रतीक्षा में हूँ...!
जब तुम
उत्तरायण हो जाओगे...!
प्रेम की ऊष्मा से
आत्मा के घाव
सहलाओगे...!
मैं रख दूँगी
अपना सिर...!
तुम्हारी गोद में,
तुम!हाँ!!तुम...!!
मोक्ष के द्वार तक ले जाओगे..!!!!
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दिन इनका भी बन जाए ख़ास,
मुँह में हो तिल गुड़ की मिठास।
उड़ने दो इनकी भी पतंग ऊँची,
इनको भी हो जीत का एहसास।-
मोहब्बत का होगा असर धीरे-धीरे,
कि साँसों में होगा बसर धीरे-धीरे।
माना शब ए हिज़्र गुज़रे ना दिल से,
पर यक़ीँ मानो होगी सहर धीरे- धीरे।
रुहों की निस्बत को झुठला रही वो,
मान जाएँगे वो भी मगर धीरे -धीरे।
कड़वे घूँट हम ही क्यों पीते हैं पैहम,
कभी उतरेगा उनमें जहर धीरे- धीरे।
शनावर नहीं पर डुबाई ना कश्ती,
तलातुम का बढ़ता कहर धीरे धीरे।-
पतझड़ कब किसकी सुनता है,
नित नई सी दुनिया बुनता है।
संग, समझ मत लेना उसको,
बस बेहतर,बेहतरीन चुनता है।
साथ निभाता कौन यहाँ अब,
वो बहार को अपना कहता है।
रिवायत है बदलाव की जग में,
जीवन का ऐहतराम करता है।
सबकी साँसें बस गिनती की,
कोई उल्टा न इसको गिनता है।-
ज़माने के नज़र से बचा लूँ मैं तुझको,
चल प्यार की छैयाँ,छुपा लूँ मैं तुझको..!-