एक दुआ जुदाई की कबूल हो गई तो क्या?
बाक़ी ज़िंदगी अगर फ़ुज़ूल हो गई तो क्या?
तुम क्या गए हमें अपनी कोई ख़बर ही नहीं,
गिनते रहेंगे साँसें अब,बबूल हो गई तो क्या?
दिल के शहर में यादें, शाम बनकर घिर आईं,
इस दीवाने की नज़र मलूल हो गई तो क्या?
तुझसे नाता हमने ख़ुद ही तो नहीं तोड़ा था,
नज़र- ए-तग़ाफुल ही उसूल हो गई तो क्या?
चाहत की तहरीर लिखी ,पलकों में छुपाकर,
अनपढ़ी निगाह रसूल हो गई तो क्या हुआ?
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प्रतिभा पाठक , मैं अध्यापिका हूं ।
लेखन का शौक अज्ञात था । लॉक डाउन के समय ... read more
दो-धारी तलवार हुए, जीवन के मुश्किल रास्ते
खार हुआ सारा जीवन, कुछ कलियों के वास्ते।
कठपुतली की डोर है,जब किसी और के हाथ,
अब उसकी मर्ज़ी ठहरी, जो जोड़े- तोड़े राब्ते।-
सहमा हुआ दिल में मेरे वो सवाल रह गया,
कह न सके हाल- ए- दिल मलाल रह गया।
कुछ अपनी कहूँ और कुछ पूछ लूँ तुमसे,
लब सिले,ज़ेहन में बाक़ी बवाल रह गया।
बारिश की छुअन में भीगता रहा तन-मन,
फ़ुरकत में तेरी दीवानों जैसा हाल रह गया।
गुज़रते अब्रोँ की कतार से भेजा था पयाम,
आता नहीं क्यों जवाब ये ख़याल रह गया।
दिल पर कहर बरपा गया वो रोब हुस्न का
ज़िंदगी में वो नहीं उनका जलाल रह गया।-
इश्क़ ने दस्तक दी है, दरीचे पर ,आ जाना तुम,
ख़िज़ा है ज़िंदगी ये, अब्र बनकर छा जाना तुम।
धूप में बूँद पानी की , नज़र कुछ यूँ आती हो,
तपती रूह ये चाहे, कभी वापस ना जाना तुम।
भटकती दैर ओ हरम में ,बड़ी बेचैन लगती हो,
मोहब्बत ही ख़ुदा है, मेरे दिल में पा जाना तुम।
तन्हा महफ़िल में होता हूँ,तसव्वुर में लिए तुमको,
कि सूना है दयार ए दिल,रू-ब-रू आ जाना तुम।
मेरे ख़्वाबों के हिस्से कई, तुम्हारे पास हैँ हमदम,
अधूरे तन्हा तड़पते हैँ....आकर मिला जाना तुम।
अश्क़ की बारिशोँ से,बंजर दिल की ज़मीँ अपनी,
कि अलकों के इशारे से बहारें बुला जाना तुम।-
वतन के वास्ते दिल में जुनून कायम रहे,
कोशिश होगी हर- सू सुकून कायम रहे।
जहाँ में सबसे अलग हो हमारी पहचान,
विश्व गुरू की दुनिया में शान कायम रहे।
तिरंगे के सम्मान में झुक गया आसमाँ ,
कि मातृभूमि का स्वाभिमान कायम रहे।
गणतंत्र का ये पर्व सिखाता सभी को यह,
हमारे कर्त्तव्यों में संविधान कायम रहे।
फ़िज़ाओं में गूँजा करें अमन की सदाएँ ,
दिल में प्रेम,भाईचारे का स्थान कायम रहे।
चलें राह जहाँ इन्साफ की आवाज़ बुलंद हो,
सच्चाई की जीत का जहान कायम रहे।
"गणतंत्र दिवस" पर कर लें ख़ुद से वादा,
इस महान गणतंत्र का उनवान कायम रहे।-
मेरी पहली कविता ने, बुनी ज़िंदगी की चाहत,
उलझे शब्दों में बंधकर,मिली पल भर को राहत।
मिलोगे जब तुम मुझसे, बताएँगे सफ़र अपना,
मगर ये शर्त मानो तुम, ना होना कभी आहत।
नहीं रस छंद का बंधन,नहीं तराशने का जतन,
ये बातें सिर्फ़ बातें हैं,जिनमे नज़र आती ज़राहत।
यूँ ही लिख जाती मन की,मोल ख़ुद ही मैं जानूँ,
मैं ज़िंदा हूँ जब तक ,करुँगी शब्दों की हिफ़ाजत।
नींद में तैरते हैं लफ़्ज़ कुछ ,थोड़ा बेचैन होकर,
आड़े तिरछे और अनगढ़,पर हसीँ लगते निहायत।-
कहना था बहुत कुछ पर हम छुपाते रहे,
दिल तो जार-जार रोया होंठ मुस्काते रहे।
मालूम नहीं क्या बात है,कैसे ये ज़ज़्बात हैं,
नज़र उनसे जब मिलीँ तो बहाने बनाते रहे।
डूब जाने का डर था, डूबने की बेताबी भी,
ख़याल उनके तूफ़ाँ बन मुझसे टकराते रहे।
चाँद खोया सा लगा आसमाँ धोया लगा,
स्याह कोने में छुपे हम सावन बरसाते रहे।
बिन कहे क्या कभी सुनोगे दिल की सदाएँ,
हमनवा हमदम मेरे क्यों अजनबी बनते रहे।-
ख़ामोशी की ज़ुबां से वो तीर मारते हैं,
बेबसों पर नित नए हुनर आज़माते हैं।
हम तो एहसास बयाँ कर भी नहीं सके,
वो हाल-ए-दिल सनसनी ख़बर बनाते हैं।
सरगम के इशारे पर हवा भी गुनगुनाती,
आवाज़ से मेरी वो अपने सुर मिलाते हैं।
चिलमन की आड़ लेकर धड़कनें सुनते,
मगर रू ब रू आकर तो ज़ुल्म ही ढाते हैं।
गर इस ओर भी ख़ामोशी छा जाए तो,
आँखों में आँसू भरकर सवाल पूछते हैं।
लगता है मुसलसल ख़ारों पर चल रहे,
इक वो हैं कि हँसते- हँसते दर्द तौलते हैं।-
प्रतीक्षा में हूँ...!
जब तुम
उत्तरायण हो जाओगे...!
प्रेम की ऊष्मा से
आत्मा के घाव
सहलाओगे...!
मैं रख दूँगी
अपना सिर...!
तुम्हारी गोद में,
तुम!हाँ!!तुम...!!
मोक्ष के द्वार तक ले जाओगे..!!!!
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