स्वाधीनता से परे
स्वतंत्रता से पृथक
स्वायत्तता के विपरित
केवल पति के हित
ससुराल की बेड़ियों बंदिशों में जकड़ी
सभी महिलाओं को भी
गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएँ-
न भूत हूँ
न भविष्य हूँ
वर्तमान हूँ
मैं हविष्य हूँ.. read more
बस कुछ दिन हैं शेष
ये दिन हैं विशेष
किसी प्रियतम की बाहों में खो जाऊँगी
या मिट्टी को नमन कर पंचतत्व की हो जाऊँगी
मैं वैदेही
नियति है एही..-
अभिषेक तिलक एवं अंबुबाची
रक्त रज एवं पृथक पर्यायवाची
कामाख्या व्याख्या सबरीमाला
सुनो देवालय में लगा दो ताला-
बिखरा माला टूट-फूट कर
मनका मनका मोती मोती
टूट गई मैं हृदय के तल से
पुनः कैसे मैं स्वप्न संजोती
खंड-खंड हुआ आस अनायास
कुछ नहीं शेष बचा मेरे पास
मन का मुंडेर भी रिक्त हुआ अब
विफल हुएँ मेरे सभी प्रयास
सकल शिराओं में शोणित जम गया
अंग अंग में पीड़ा अपार
प्राण आयु जीवन भी कम गया
चहुंओर से हुई मेरी हार..-
कोई धागा ताबीज़ या भस्म बता
मेरे प्रति नफ़रत उसमें कर अता
मैं सुनी हूँ मन्नतें पूरी होती है दरबार में
इबादतें सुन ली जाती हैं कुछ मजार में-
प्रस्ताव प्रेम की पारित कर
क्यों न एक अध्यादेश लाऊँ
प्रणय की
कहीं अटक न जाए बात मत में
स्थापना करुँ पूर्व में विगत में
और तब प्रेम भवन में
हृदय और मन दोनों सदन में
बहुमत से प्रेम की विजय हो
एवं अल्पमत से प्रतिपक्ष की हार..-
कौन विधि मैं देह ढ़कूँ
करूँ मैं कौन उपाय
स्वयं को मैं बचा सकूँ
ज़ालिम दुनिया से हाय
साड़ी पहनूँ सूट पहनूँ
करूँ कैसे वस्त्र चयन
लौह वस्त्र भी व्यर्थ है
यदि वासना है नयन
अनुराग स्त्री पुरुष में
यदि है एक समान
रे मुर्ख जाहिल मानव
क्यों देता वस्त्र का ज्ञान-
निर्वस्त्र मनोभावों के चिथडों को चुन-चुनकर सील रही हूँ
लोगों की नज़रों में ख़ुश हूँ यधपि मर मैं तिल-तिल रही हूँ-