कितना भी भगाऊँ
काट ही लेते हैं हर रात
तेरी यादों के मच्छर।
हठी हैं ये भी
तेरी तरह।-
उम्र के इस अन्तिम पड़ाव में.....
मैं तुमसे मिलना चाहूँगा....!!!!
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प्रेम तो एक कोमल भाव है!
जो कोमल हो वह झुकता है,
फिर जो ज़िद्दी हो, अड़ा हो;
वह प्रेम कैसे हो सकता है?-
मुझे 'वैरागी' होने के लिए
जरुरी नहीं होना 'सन्यासी'...
मुझे 'प्रेम' होना था बस केवल
इसलिए मै हुई केवल 'प्रतीक्षा'....
अतः मुझे 'सिमटना' था अंजुली मे
इसलिए मैंने चुना 'विस्तार' पहले....
मुझे 'हठी' होना इसलिए भाया
क्योंकि सामने थे विरले 'हठधर्मी' तुम...
अन्यथा शब्दों की 'फेरबदल' नियति है
इसलिए सदैव 'स्पष्ट' रहना रही नियति मेरी...-
वो उसकी मस्ती
उसकी मटरगश्ती
उसके सवालों की छोटी सी कश्ती
हरदम सवार रहती जिस पर मेरी छोटी सी बच्ची
अतरंगी से विज्ञापनों को देखकर अक्सर पूछा करती
माँ सेनेटरी क्या होता है ?
इस्तेमाल क्यों होता है ?
निशब्द टाल जाती हूँ मैं उसे
अनायास पुन: कभी पूछ लेती
माँ कंडोम क्या होता है ?
इस्तेमाल क्यों होता है ?
निरुत्तर पुनः मैं
झिड़कू डांटूू भी तो कैसे
बालमन हठी होता है
बच्चों के साथ बैठ के
चलचित्र देखना भी कितना मुश्किल होता है...
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उसने सुकून पा लिया,
ये मन ही तो जिद पर अड़ता है
मन ख़्वाहिश बहुत करता है,
मन चंचल है कब रुकता है
ये भागा दौड़ा फिरता है,
मन की हठ के आगे
इंसा को झुकना पड़ता है...❣️-
मुकरी..
देखो तो उसकी बेशर्मी
बड़ा हठीला है हठधर्मी
नहीं दिखाये जरा भी नर्मी
हे सखी प्रेमी?
न सखी, गर्मी।-
गर हठी ही होना है तो उस पर्वत की तरह क्यों हो जाऊँ,
जो अन्त में टूट ही गया,
उस मांझी की तरह क्यों ना, जो तबतक हठ करता रहा जब तक पर्वत टूट ना गया।।।
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॥बदरा क्यूँ इतने हठी हो गए ,
क्या आसमाँ से गहन रिश्ता जुड़ गया?
अनंत,असीम,अमिट,अलौकिक
दूर फेंक चादर दिवाकर की ,
श्वेत-श्याम वर्णी हो गए ॥-