Neelam Kumar - काव्यAani   (Neelam Kumar)
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If you can dream it, you can do it.

I m a Teacher
Joined 20 December 2021


If you can dream it, you can do it.

I m a Teacher
Joined 20 December 2021

दरम्यान् है झीना सा ,एक पर्दा तकल्लुफ़ी का ,
वरना बातें तो ,हम भी किया करते ,
ग़र मौक़ा दिया होता ,इक़रारे वफ़ा का ,
तो होठों को हम यूँ न सिल लिया करते ।

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अलहदा पात पीड़ा लिए, उड़ चला नए पथ की ओर ,
जिसका न कोई ठौर ठिकाना,कोशिश जीने की कमज़ोर ,
तीव्र वेग जिसका हो साथी माटी जिसका वासन,
वर्षा की तह में लिपटा हुआ , ख्वाहिशें रखे घनघोर ।

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छोटी सी चिरैया मैं, अँगना के बाबुल की ,
फुदकती फिरूँ इस देहरी, तो कभी उस देहरी,
तलाश में नई परवाज़ की,कोशिशें हैं जारी,
छिपे जिनमें मेरे , अरमान भारी - भारी ।

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वासन उतार हर्ष का ,
पवन बहाकर ले चली ।
दीवारों के चित्रों में अब,
खामोशी बोलने लगी ।

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ऐ सूर्य कर स्वीकार आह्वान,
प्रदीप्त, दीप्त रश्मियों का,
आलोकित प्रसार विसरित,
कनक विस्तीर्ण अर्चियों का ।

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हिन्दी राज से राष्ट्र तक पहुँचे ,
जन- जन के विश्वास तक पहुँचे,
कहलाएँ वैश्विक हिन्दी भाषी ,
राष्ट्र नहीं ,अंतरराष्ट्र तक पहुँचे ।।

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काल के आवेग को , मोड़ सके तो मोड़
समय के सैलाब को तोड़ सके तो तोड़,
तू विजय पताका आरोहित करने को ,
लक्ष्यों की लड़ी जोड़ सके तो जोड़ ।।

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रात के साए से निकलकर दिवस यूँ बोला
ले चला मैं अपना अस्तित्व बताने
घमंड कहाँ का करे ए दिवस निशा बोली
आग़ोश में तो मैं ही आऊँगी लिपटाने ।।

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खिलो गुलाब का ऐसे कि ,
इल्म काँटों को भी न हो ।
बढ़ाओ इस तरह कदम,
कि पग की माप हो न कम ।
भले राहें हों कितनी मुख़्तसर,
हो माशरा अनजाना ,
रहे परवाज फ़राज़ पर हावी,
आस मंज़िल की हो न कम ।

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अपनी उलझनों को
उँगली के
पोरों से मसल देता हूँ।
और
उठाकर पेशानी
परेशानी
फ़ना करता हूँ ।

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