माँ तुम्हारा ऋण बहुत है, मैं अकिंचन,
किंतु इतना कर रहा, फिर भी निवेदन-
थाल में लाऊँ सजाकर भाल मैं जब भी,
कर दया स्वीकार लेना यह समर्पण।
गान अर्पित, प्राण अर्पित,
रक्त का कण-कण समर्पित।
चाहता हूँ देश की धरती, तुझे कुछ और भी दूँ।-
मेरे क़फ़न का रंग तिरंगा है
वर्दी का मुझपे पहरा है
मेरी रूह सदा तेरी खिदमत में
मेरा जिस्म ही तुझमें ठहरा है
है कैसा नशा इस मिट्टी का
हर वीर यही करना चाहे
हरबार यहां जीना चाहे
हरबार यहां मरना चाहे
ये धरती हिंदुस्तान की है
ये शरहद उसका सीना है
गर एक कदम तेरा बढ़ जाए
फ़िर मुश्किल तेरा जीना है
ए वतन तू मेरी हीर रहे,
ए वतन तू मेरी लैला है
तेरा इश्क़ भरा मेरे रग-रग में
है पाक.. नहीं ये मैला है-
सच बोल कि क्या आज़ाद है तू, सच बोल कि क्या आबाद है तू
सच बोल क्या लब आज़ाद यहाँ
सच बोल क्या ज़िंदाबाद है तू
सच बोल कि क्या तू सच्चा है, सच बोल कि क्या तू अच्छा है
सच बोल कि झूठा वादा था
सच बोल क्या नेक इरादा था
सच बोल सियासत झूठी है, सच बोल कि झूठे सपनें हैं
सच बोल कि सब सच झूठा है
सच बोल कि क्या सब अपने हैं
सच बोल कि झूठा धर्म तेरा, सच बोल कि झूठा मज़हब है
सच बोल क्या सच में सादा है
सच बोल क्या सच, सचमें जागा है
सच बोल क्या सचमें मौलवी है, सच बोल क्या सचमें पंडित है
सच बोल कि सब ये दिखावा है
सच बोल कि सब बहकावा है-
सिर पर जिसके पर्वतों का ताज है...
माटी और हरीयाली का वदन है..
नदियों के गहने है...
सागर का दरपन है..
मुझे गर्व है..
यह कहते हुए कि...
यह मेरी मातृभूमि है..
भारत 🧡⚪💚..-
मेरे सपनों का भारत
हर चेहरे पर मुस्कान हो, हर हाथों को काम हो
ऊंचा स्वाभिमान हो, हर भारतीय कीर्तिमान हो
ज्ञान का सम्मान हो, विज्ञान का उत्थान हो
रोगों की रोकथाम हो, भ्रष्टाचार का न निशान हो
वाणी में मिठास हो, सफलताओ की प्यास हो
आलस्य को अवकाश हो, अनगिनत प्रयास हो
कृषि का विकास हो, मंजिले आकाश हो
अज्ञानता का नाश हो, हृदय में प्रकाश हो
पूरी रचना caption में-
सदा ऊंचा रहे यह तिरंगा हमारा...,
कई साँसें गईं हैं..
इसकी प्रभुता के लिए
जिसके तले आज महफ़ूज
हमारी हर साँस ठहर जाती है,
हवा से यह तिरंगा नहीं लहराता
इस तिरंगे से इस देश की यह खुशनुमां
हवा लहराती है..!-
संस्कार और संस्कृति की जो धरती है
ऐसे भारत को मैंने जाना है,
विविधता में एकता है
भाई भाई हर हिंदू हर मुसलमान है
ऐसे भारत को ही आज़ाद मैंने माना है...-
🧡🌼💚
स्वतंत्रता एक शब्द मात्र नहीं है,इसमें समाहित है-
असंख्य भावों की मंदाकिनी, वीरता का स्पंदन,
करुणा का रुंदन, कुछ अमर गाथाओं का वर्णन।
वर्षों पूर्व हम अंग्रेजों की गुलामी से आजाद होकर,
एक नए युग की कल्पना में तत्पर हुए।
तन को स्वतंत्रता प्राप्त हुई पर क्या मन ने स्वीकारा इसे?
मन पर बेड़ियां लगा कर भी कैसे मनाते हो तत्व मात्र की स्वतंत्रता?
द्वेष,घृणा,लालच,दुराचार भीतर रखकर मात्र झंडे फहराने और नारे लगाने को मैं स्वतंत्रता की श्रेणी में नहीं रखती।
स्वतंत्रता सिर्फ एक दिन का जश्न,पुस्तको में पढ़ाया गया शब्द नहीं है।
यह मन का भाव है, मन से स्वीकारें इसे।
जय हिंद🇮🇳-