दिन भर की थकान भरे
बोझिल बस्ते के संग
जब मैं दफ्तर से घर आता हूंँ
तुम मुस्कुरा कर खोलती हो
किवाड़ हमेशा
अंदर आते ही थमाती हो
पानी भरा गिलास
और दौड़ जाती हो किचन में
चढ़ाने चाय का पतीला।
मैं तुम्हारे संग नहीं
तुम्हारे पीछे आता हूंँ
और भर लेता हूं तुम्हे
अपनी बाहों में
क्योंकि
मेरी औषधि चाय की चुस्की नहीं
तुम्हारा आलिंगन है।-
🍁🍁
एक लड़की,
जो हाथ में कलम-कूची और स्याही लिए कभी शब्दों को,
कभी चित्रों को उ... read more
सुनो अब कमरे के जाले छुड़ा लो
अब उस बक्से को अकेले धक्का लगा लो
ठंड बढ़ गई है अलाव जला लिया करो
घड़ी तो टूट गई अब तो समय से खा लिया करो
ये जो अनबन हुई किसी ने सुना तक नहीं
तुम भी सांँस लेने को घुंघट हटा लिया करो
कल नब्ज बढ़ी थी तुम्हारी सब ठीक तो है ना
तो तुम भी अटहरी पर कपड़े सुखा लिया करो
कहूंगी तो बेरहम सी होंगी ये सुर्ख कांच की बातें
जख्म खोदकर अब खुद ही मरहम लगा लिया करो-
कितना शोर है चारों तरफ और मन में सन्नाटा, घोर सन्नाटा।
आवाज दे रही हूंँ कोई सुन नहीं रहा या आवाज किसी निर्वात में जाकर शून्य हो गई है और उस शून्य को किसी ने दबा रखा है अपने सघन विचारों तले। मैंने कोशिश की बचाने की पर तब तक वो रौंद चुके थे शून्य को।
शून्य मरा नहीं है,वह मेरे मन की तलहटी के एक छोर में फिर उपज रहा है,फिर फलेगा-फूलेगा पर इस बार इसे मैं असंख्य का आश्रय दूंँगी। मौन को रखवाली का कार्यभार देकर,एकांत को छत्रछाया बनाकर हमेशा साथ रहने को कहूंँगी। शून्य भोला है,अश्रु से दोस्ती कर बैठा है और पीड़ा से भी उसका लगाव होता दिख रहा है।
कल रात एक द्वंद हुआ,मन के सारे साथी स्थान छोड़कर भटक गए। निराशा,पीड़ा,अश्रु किसी तरह वापस स्थान पर पहुंच गए हैं पर साहस,उत्साह,सुखद का कुछ पता नहीं चल पाया है। शून्य को भेजा है ढूंढने,बस मौन साथ आता दिख रहा है। मैंने आवाज दी है कोई उत्तर नहीं आया है,मन का कोलाहल शांत हो चुका है और अब बचे हुए साथी पूरे प्रेम से एक दूसरे के साथ ही रहते हैं।-
यह संसार
जहांँ हर
अनैतिक घटना संभव है
बस संभव नहीं है
एक प्रेमी का
उसकी प्रेमिका से विवाह
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कोई इस साल भी
घर नहीं पहुंचा है
किसी के हिस्से का प्यार
आज भी बरनी में रखा है
किसी की नीली साड़ी
धूप में सफेद हो गई
कई चिट्टियां उम्रभर केलिए
डायरी में कैद हो गई
कहीं बरसा है प्रेम
बसंत की रिमझिम फुहार सा
कहीं सवेरे को भी
आने में देर हो गई
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प्रेम में
प्रेम का
और
प्रेम के लिए होना
ईश्वर का
दिया हुआ
सर्वश्रेष्ठ वरदान
है
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जिन लड़कियों
को
संँभालना पड़ा
छोटी उम्र से ही
घर की
सारी जिम्मेदारी
वो लड़कियांँ
कभी नहीं मानेगी
विज्ञान की तरक्की
और
रविवार के
अवकाश को-
आसान नहीं है रोशनदान की रोशनी से कमरे का भर जाना
जैसे, आसान नहीं है किसी जीवंत सपने का मर जाना
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कभी-कभी सोचती हूंँ मांँ ने अपने सारे दुःख कहांँ छुपा कर रखे हैं।
कभी दिखता नहीं,कभी रिसता नहीं।हृदय की किस सिकुड़न में सिमटा है सब।
मांँ रोते-रोते भी बांध देती है पुल साहस का।
मांँ का रोना क्यों आपदाओं की श्रेणी में नहीं रखा गया,
या रखकर भय से मिटाया गया होगा।
पता नहीं।
पर निसंदेह,
मांँ की सूजी,लाल,नम आंँखें
इतिहास,वर्तमान और भविष्य काल का
सबसे निकृष्टतम दृश्य है।
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