कितना शोर है चारों तरफ और मन में सन्नाटा, घोर सन्नाटा।
आवाज दे रही हूंँ कोई सुन नहीं रहा या आवाज किसी निर्वात में जाकर शून्य हो गई है और उस शून्य को किसी ने दबा रखा है अपने सघन विचारों तले। मैंने कोशिश की बचाने की पर तब तक वो रौंद चुके थे शून्य को।
शून्य मरा नहीं है,वह मेरे मन की तलहटी के एक छोर में फिर उपज रहा है,फिर फलेगा-फूलेगा पर इस बार इसे मैं असंख्य का आश्रय दूंँगी। मौन को रखवाली का कार्यभार देकर,एकांत को छत्रछाया बनाकर हमेशा साथ रहने को कहूंँगी। शून्य भोला है,अश्रु से दोस्ती कर बैठा है और पीड़ा से भी उसका लगाव होता दिख रहा है।
कल रात एक द्वंद हुआ,मन के सारे साथी स्थान छोड़कर भटक गए। निराशा,पीड़ा,अश्रु किसी तरह वापस स्थान पर पहुंच गए हैं पर साहस,उत्साह,सुखद का कुछ पता नहीं चल पाया है। शून्य को भेजा है ढूंढने,बस मौन साथ आता दिख रहा है। मैंने आवाज दी है कोई उत्तर नहीं आया है,मन का कोलाहल शांत हो चुका है और अब बचे हुए साथी पूरे प्रेम से एक दूसरे के साथ ही रहते हैं।
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