Abhishar Ganguly   (अभि:एकतन्हामुसाफ़िर)
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Joined 2 December 2017


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18 HOURS AGO

कभी मिलोगे तो हमारी आँखों में देख लेना अपनी अहमियत।
हमसे तो जुबां से कभी भी तुम्हारे बारे में नहीं बताया जाएगा।

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26 SEP AT 11:11

मेरी रूह के बग़ीचे में एक गुल खिला है तुम्हारी मोहब्बत का।
कि अब जो खु़शनुमा सा रहता हूँ मैं, असर है तेरी सोहबत का।

देखकर के तुमको अब तो गुज़र जाती हैं मेरी सुबह-ओ-शाम।
क्या जादू किया है तूने मुझपर, क्या कमाल है तेरी चाहत का।

अब तो झड़ते पत्ते, खिलते फूल, उड़ती रेत में भी उल्फ़त दिखे।
लगता हैं इस बार भा रहा है मुझको मेरे यारों मर्ज़ ये उल्फ़त का।

अंधेरी गलियों, स्याह सड़कों, गुमनाम आशियाने से निकल रहा।
लगता हैं चटकारे लेने वाला है ये इश्क़ मेरी रूह की लज्जत का।

न घर में चैन, न दिन में सुकून, न चाँद संग करार ही मिल रहा है।
जाने ये कौन सा जादुई खेल खेल रहा दिल उसकी अहमियत का।

उसकी कमी ख़लने पे सब कुछ अधूरा एक वो ही मुकम्मल लगे।
उसके हक़ में सिक्का उछला, क्या क़ीमत तय करें मेरी सहूलियत का।

जो बीच कहानी में वो हमको छोड़कर चला गया तो हैरत न करना।
हमको तो शुरू से ही ये ज़ख़्मी अंज़ाम मालूम था अपनी गुरबत का।

बे-अना वाले लोग अक़्सर अहमक कहलाते हैं "अभि" ध्यान रहे।
होशियारी से कमाकर क्या ही करोगे उसके बिन इस शोहरत का।

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25 SEP AT 3:34

नींद नहीं आएगी मैं जानता हूँ मेरी जान!
फिर भी मेरे "ख़्वाबों" के लिए सो जाना।
मैं जानता हूँ अब चैन से राब्ता हो जाएगा
तुम्हारा, इसलिए सुनो! चैन से सो जाना।

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23 SEP AT 11:11

छोड़ना पड़ता है एक दिन अपने अज़ीज़ इंसान को।
ख़ुद को भी खो देना पड़ता हैं बनाने को पहचान को।

अच्छा-बुरा कोई नहीं होता है, वक़्त का "तकाज़ा" है।
मन मारकर जेल में डालना होता हैं अपने ईमान को।

जल भूनकर के रह जाता हैं मासूम सा दिल अक़्सर।
कभी-कभी हक़ नहीं मिल पाता किसी गुणवान को।

तकलीफ़ बहुत होती हैं जब सही के साथ ग़लत हो
जानो पहले ग़लती होगी जो चाहते हो कल्याण को।

अजीब सी बातें जहां की "अभि" अजीब ही लिखूँ।
अब तो छोड़ दिया अपने हाल पे दुनिया जहान को।

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21 SEP AT 21:58

वो जिससे बात करने से मेरे दिन
भर की थकान दूर हो जाती हैं।
वो जो दिल्ली गर्मी, धुएँ, भीड़, और
तन्हाई में आकर मुझे सहला जाती हैं।
वो जो आकर के ख़ामोशी से बैठती हैं पास मेरे
और अपने मौन से सब कुछ कह जाती है।

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20 SEP AT 11:11

जिस दिन उससे अलग होंगे उस दिन जान निकल जाएगी।
जो गर बच भी गए ग़लती से तो उसकी याद बहुत आएगी।

उसकी याद जब आएगी तो कमबख़्त हमें बड़ा तड़पाएगी।
फिर याद की तड़प फिर मेरी बची हुई जान लेकर जाएगी।
हमको तो लगता हैं कि मरने का ये फ़ैसला काम आएगा।
क्योंकि हो सकता है हमारे मरने के बाद वो फिर आएगी।

उसको आता हुआ देखकर के हमारी जान लौट आएगी।
जो हमारी "जान" और ज़िंदगी एक साथ में लौट आएगी।
तो हो सकता है ये ज़िंदगी फिर से "गुलज़ार" हो जाएगी।
खुलकर के हँसते हुए जिएँगे हम, "जिंदगी मुस्कुराएगी"।

उसके बाद तो ग़लती से भी कोई ग़लती नहीं करूँगा मैं।
उसके बाद वो मुझसे फिर कभी कैसे ही "रूठ" पाएगी।
उसका ही तो हिस्सा हूँ मैं मेरे यारों, मुझमें ही रह जाएगी।
अब अलग होने की बात न करना, ये नौबत नहीं आएगी।

अब बस सुहावना हो जाएगा ये मौसम और हर एक पल।
उसके संग जीने से ज़िंदगी जीने का क़ाबिल बन जाएगी।
उसके साथ जब कभी भी किसी दिन जिऊँगा मैं "अभि"।
मेरी उदास ज़िंदगी ख़ुशहाल होकर ख़ुशनुमा हो जाएगी।

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19 SEP AT 23:10

तुम्हारा मिलना ऐसे मुझ पर जैसे रब की इनायत हो गई है।
तुमको पाकर मेरा ख़ुश हो जाना, पूरी मेरी इबादत हो गई है।

तुमसे मिलकर के मुद्दत्तों बाद सब कुछ ख़ुशनुमा सा हो जाना।
ऐसा लगता हैं कि जैसे मेरे ऊपर मेरे रब की आमद हो गई है।

तुम्हारा साथ पाकर अब यूँही ख़ुश रहता हूँ मैं तो यारा हरदम।
तन्हाई की क़ैद से आज़ाद हूँ मैं, जैसे मेरी ज़मानत हो गई है।

दर्द अब दर्द दे नहीं सकता है, उसको अब मुझसे डर लगता है।
अब थोड़ा सा चैन, ज़रा सा सुकून भी है, तू मेरी राहत हो गई है।

वैसे तो सोचा था अब कभी इश्क़ नहीं करूँगा, पर होने लगा है।
शायद सब ख़त्म होने के बाद शुरू होने वाली तू चाहत हो गई है।

वैसे एक ग़लती को दोहराने की हामी मैं ख़ुद को भी नहीं देता।
लेकिन फिर से करने का दिल कर रहा है तू वो इज़ाजत हो गई है।

अब जो आ गया हूँ पहलू में तेरे तो थोड़ा कम डर लगता हैं मुझे।
वो जो मेरी रूह को सुकून देती हैं साकी तू वो हिफ़ाज़त हो गई है।

सोचा नहीं था कभी उससे कहूँगा मैं "अभि"! सुन, मेरे हमसफ़र।
हल्का-हल्का महसूस हो रहा है मुझे तुझसे मोहब्बत हो गई है।

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18 SEP AT 11:11

मेरी कविता के लफ़्ज़
वो अनकही बातें है
जो हम तुमसे कभी
कह ही नहीं पाए।

वो अनसुने एहसास है
जो कभी जुबान पर
आ ही नहीं पाए।

ये वो ख़्वाब है
जो कभी किसी के द्वारा
देखे ही नहीं गए
और अधूरे रह गए।

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17 SEP AT 21:00

सब्र से काम लो और देखना एक दिन तुम्हारा भी वक़्त आएगा।
जो भी तू चाहता है "मुसाफ़िर" देखना तुझको मिल ही जाएगा।

तुझको पाने के ख़्वाब तो फ़रिश्ते भी देखते हैं सुन ओ नाचीज़।
फिर ऐसा भी दौर आएगा, तुझको मनचाहा सब मिल जाएगा।

बस लेने की ख़्वाहिश है तो देने की भी इच्छा किया करना तू।
फिर अचानक से तेरा समय तेरे "मन मुताबिक" बदल जाएगा।

हक़ीक़त हो जाएगा तेरा हर एक सपना याद रखना तू ओ राही।
आज एकांत में रहता है कल तू सबकी "महफ़िल" बन जाएगा।

ये मिसरे, ये शेर, ये अश'आर, मुक्तक, बंध अनकहे जज़्बात है।
आज जो नहीं कहा तूने तो फिर क्या तू कभी कुछ कह पाएगा।

मेरे लिए बातों की सफ़ाई से ज़्यादा मायने दिल की सफ़ाई रखें।
तू बस अपना मन साफ़ रख, तन, घर-जीवन स्वत: ही हो जाएगा।

अच्छा लगे या बुरा लगे "अभि" आज कह दें "सबको" सब कुछ।
"तीन दशक हो गए" मुझको यहाँ, फिर ऐसा मौक़ा नहीं आएगा।

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17 SEP AT 19:07

आईना देखकर यह ख़्याल आया कि वो "शख़्स" पहले कितना
ख़ुशमिज़ाज हुआ करता था जिसका इश्क़ में हाल बुरा हो गया।

पहले उसको देखकर लोग सँवर जाया करते थे मुर्शद आज जो
इश्क़ के अंजाम से इस क़दर टूटकर के कतरा-कतरा हो गया।

"इश्क़" में उसका नाम कुछ यूँ "बदनाम" हो गया है आज कल
उसने तो "इश्क़ की जमात में" अब जाना ही "छोड़" दिया है।

आते हैं अब भी "मासूम शक्ल" वाले "फ़रेबपसंद" हमनवां कई,
उसने नकली "मासूमियत के दिखावे" का घरौंदा "तोड़" दिया है।

"नाज़ुक" सा दिल था मेरा "अभि" बहुत ही ज़्यादा प्यारा सा था।
कमज़र्फ ने पत्थर सी अदाओं से उसे तोड़कर झकझोर दिया है।

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