सिर्फ़ उनवान ही पढ़कर तहरीर का अंदाज़ा न लगा ऐ दोस्त,
सुनहरी जिल्द के नीचे कभी कभी बासी पन्ने भी दबे होते हैं।-
आग लगा दो इस नीले से आसमां में
कुछ लहू के ख़ाके भी इसमें उकेर दो
की धरती भी सुनहरी से लाल हो गयी-
ये सात सूर मिले तो सरगम बन जाए,
जैसे कोई सुरीला नझमा होठों पर ठहर जाए,
ये सात सूर मिले तो अनोखी धून बन जाए,
जैसे कोई अनकहा नगमा जुबाँ पर रूक जाए |-
एक याद सुनहरी लाती है बचपन के त्योहारों
की !!
अब वो स्वाद कहाँ जो थी तब के उन आचारों
की !!
उम्र बढ़ी तो सारी खुशियाँ ही दफ़न सी हो गई
है
उस वक़्त हम अठन्नी में खुश थे जरूरत नहीं हज़ारों
की !!-
#सुनहरी यादें
कभी बचपन तो कभी यौवन
कुछ यादों के कारवाँ
जीवन में आते जाते से
कुछ चुपचाप तो कुछ बतियाते से
इन यादों के झुरमुट से झाँकता सा
एक चेहरा अपना सा तो कुछ बेगाना सा
कुछ अंजाना तो कुछ जाना पहचाना सा
सुनहरी यादों में लिपटा एक दिन...
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तब तुम !आ जाना ...
गोधूली की बेला में
थोड़ी ज़ाहिर थोड़ी छुप कर आना
सूर्य की सुनहरी किरणों पर चढ़
किसी कवि की प्रेयसी सी
बन संवर कर
ओजस्विनी प्रियतमा...
तुम !चली आना ।
जीवन भर आभार जताया
ज़िंदगी का...तुम !
जीने की मोहलतों का
हिसाब लेने आ जाना ।
जब होंगे निःशब्द..,सब शब्द
आँखों का तेज भी कम होगा
मैं !तकता होऊँ राह तुम्हारी बेताबी से
तब तुम मुझ को
उस अलौकिक प्रकाश पुंज से मिलाने
प्रेयसी बन कर
ए मौत ! चली आना !!!-
मेरी लिखावट, मेरी मुस्कुराहट
है जिसकी वजह से सुनहरी
वह पंछी था किसी आंगन का
जिसकी सुबह-शाम सब अब है मेरी ||-