जहाँ महबूब हो वही महताब रहता है
अमावस में थोड़े ही आफ़ताब रहता है
इस नज़र कोई एक ही चेहरा भाता है
सबके लिए दिल थोड़े बे-ताब रहता है
श्रृंगार शोभता है उसके सादे बदन पर
कमल के फूल से भरा तालाब रहता है
परख कुंदन की होती है कंकड़ की नहीं
सोने के दुकान में ही तो तेज़ाब रहता है
यहाँ हो फिर वहाँ बात आखिर एक है
दिल में फासले लब पर आदाब रहता है-
हक़ीक़त में शिद्दत का प्यार भी आसानी से भुलाया जा सकता है
दिल दगाबाज हो तो फिर किसी और से भी लगाया जा सकता है
दिल का मेहमान अपने ही घर से बेघर हो सकता है कभी-न-कभी
वक्त के तकाज़े पर ध्यान दें तो गैर को भी अपनाया जा सकता है
दूसरों के बारे कोई सोचता भी नहीं और बिगड़ता भी कुछ नहीं है
मगर ख्याल रहे अपनों को बड़ी आसानी से रुलाया जा सकता है
जरा सा कदम क्या चिकने संगमरमर पर पड़े औकात ही भूल गया
जिसने चलना सिखाया है उसी को आँख दिखाया जा सकता है
वैसे किसी से पूछो तो वक्त नहीं है किसी के लिए भी किसी के पास
लेकिन हक़ीक़त है बिना कोई बात के भी बात बनाया जा सकता है-
दुनिया भूल जाती है हमारी सारी नेकियाँ
याद रह जाती है बस और बस गलतियाँ
ख़ौफ़ मझधार का ही होता है यहाँ वरना
साहिल पर नहीं डूबती है कभी कश्तियाँ
रुत खिजां का जाते ही, बहार के आते ही
फूलों पे फिर से लौट आती है तितलियाँ
महलें हमेशा से महफूज़ रही है अब–तक
सियासत के आग में जलती है बस्तियाँ
उजालों की गवाही सुन ले कभी क्योंकि
अँधेरे में साथ नहीं देती है ये परछाइयाँ-
थाम कर हथेली एकदूजे का जिंदगी के सफ़र पे हम साथ निकले हैं
दूर जाने से पहले ख़्याल इतना रहे है कि हम मुद्दतों के बाद मिले हैं-
दिल की बेकरारी बताना यहाँ पर बेवकूफ़ी थी हमारी
संभल संभल निकला मगर खामियाँ बहुत निकल आई-
अक्सर जब बातें ज्यादा हो तो बहस बढ़ ही जाती है
किसी को तहज़ीब दो तो वो सर पर चढ़ ही जाती है
यूँ ही आदतन गलती यहाँ पे किसी की भी क्यूँ ना हो
मगर वो दोष को हमेशा से हमहीं पे मढ़ ही जाती है-
इसलिए भी हम अपने आप पर थोड़ा बहुत गुरुर करते हैं
किसी से प्यार हो फिर चाहे हो नफरत हम भरपूर करते हैं
आज के झगड़े का मुद्दा कोई मुद्दा ही नहीं तुम्हारा गुमान है
पर सुनो ऐसे गुमान को हम चुटकियों में चकनाचूर करते हैं-
वक़्त आया तो मिल ही गए जिनके थे जो भी हमसफ़र
हाल तो उनका बुरा है जो भटकते हैं उम्र भर दर-ब-दर-
साँझ होते ही सूरज को पराया करना
आदत ही है जमाने का नुमाया करना
जो एहसास ना समझे उसके सामने
बुरी बात है ज़ज़्बात को जाया करना-
मैं मशरूफ़ हो गया अब अपनी ज़िंदगी में
शायद कोई कमी थी जो अब पूरी हो गई-