Sushma sagar   (SUSHMA SAGAR...✍️)
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Joined 19 February 2020


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21 HOURS AGO

"डर है ज़ेहन कुंद न कर ले कहीं!
मिट्टी मेरे वतन की गीली है अभी!!"

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21 HOURS AGO

आईने।

सीरतें सच्ची दिखलाते नहीं हैं आईने!
हाल जी का बतलाते नहीं हैं आईने!!

हुई है अंधेरों से मुहब्बत जुगनुओं को!
गोया दर्द से सुगबुगाते नहीं हैं‌ आईने!!

बेदाग सूर्तों को दुनिया चांद कहती है!
दागे-दिल मग़र दिखलाते नहीं है आइने!!

तराशने का हुनर इन को हासिल कहां!
उम्र भर भी वजू़द पाते नहीं हैं‌ आईने!!

मैं कर भीलूं तसल्ली इन्हें देखकर मग़र!
'सागर'तरह तेरी मुस्कुराते नहीं हैं आईने!!

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21 HOURS AGO

ख़्वाहिश पूरी इक मुख़्तसर कर दीजिए!
दौलत-ए-दिल, मेरी नज़र कर दीजिए!!

इन को देखूं और चुमूं दीवाना वार!
आंखों‌ का कुछ ऐसा असर कर दीजिए!!

बड़ा गुमनाम है 'सागर'इस शहर में तेरे!
बज़्म-ए-इश्क, मेरा जिक़र कर दीजिए!!

तारे गिनते ही, गु़ज़र न जाए रात सारी!
हसीं सा आप इक कहर, कर दीजिए!!

सफ़र ज़िन्दगी का, हो जाए मुकम्मल!
ख़ुदको आप मेरा हमसफ़र कर दीजिए !!

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26 APR AT 11:25

जिंदगी ,'नीयत' और 'नियति'
दोनों का खूबसूरत समन्वय है ।

आप नीयत ठीक रखें ...
नियति स्वंय हक़ में हो‌ जायेगी ।।

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26 APR AT 10:57

जानां कि जुबां फिसलती बहुत है तुम्हारी।
जी आया, कुछ भी कहते रहते हो तुम।।

सच को तोड़ते हो झूठ के रेतीले पत्थरों से।
झूठी- सच्ची परिभाषाएं गढ़ते रहते हो तुम।।

ख़रे जज़्बात, नफे़ न नुक्सान के सौदे हैं।
फिर क्यूं बेज़ा तौल लिए बैठे रहते हो तुम।।

सुच्चे मोती छुपाए है समंदर ने गहराईयों में।
और पानियों के ऊपर बहते रहते हो तुम।।

दुआ किया करे है रोज़'सागर' तेरे भी हक़ में।‌
कि बड़े गुरूरों का बोझ सहते रहते हो तुम।।

परिंदों की तरह सब से मरासिम रखिए।
एक मिट्टी से बने एक दुनियां में रहते हो तुम।।

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25 APR AT 10:21

अजब सियासत दां हैं 'सागर' समझते हैं न मर्ज़- ए- आवाम!
दुखती नब्ज़ दबा के कहते हैं,देखो लड़ता है किस क़दर आदमी!!

(संपूर्ण रचना अनुशीर्षक में)

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25 APR AT 10:04

कदम कदम पर हानि होगी ।
कदम कदम पर होंगे लाभ ।।
कदम कदम दुश्वारी का।
कदम कदम छल लेंगे *भाग ।।

इन्द्रधनुष के रंगों सा ये जीवन,
कभी हल्का,कभी गाढ़ा रंगता मन।
रंगों से भला कैसी निजात।
श्वेत- श्याम रंगों से मत *भाग।।

दुःख के क्षणिक हैं ये मेले ।
दुःख बिना सुख भी हैं अकेले ।।
दुविधाओं के भ्रम से जाग।
ओ पथिक दूर के,
रख स्वयं पर विश्वास।।

सोचो तो एक सोच है‌ ये बस ।
पर्वत,नदिया अड़चन नहीं, हैं गति रस ।।
समरसता का करते वि'भाग।
जीवन करे ठिठोली,खेले-उल्लास।।

रख स्वयं पर विश्वास।
दुविधाओं से मत भाग।।

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23 APR AT 20:02

जुझारू स्त्रियों की इक प्रजाति।


न गुस्सा...न नफ़रत ...
....न‌ स्वयं के होने का बोध,
न झूठा आत्म-सम्मान,
वे कल के लिए
सहेजकर
कुछ भी नहीं रखतीं

सिवाय, बड़ी होती
बेटी की फ़िक्र के ...।।

(संपूर्ण रचना अनुशीर्षक में)

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23 APR AT 17:31

कसैले घूंटों सी ज़िंदगी।

.... तुम्हें नही पसंद आई न?
कड़वी ...कसैली...
ये ब्लैक कॉफी,

पर जानते हो...
मुझे लगता है ये ज़िन्दगी भी
इसके जैसी ही है।

...और अगर आप इसके कड़वे घूंटों को
उतार कर भी मुस्कुरा सकते हो
तो यकीन मानो ...

कभी हताश न होगे
कभी हारोगे नहीं ...

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21 APR AT 16:11

उसके छूने से निकल आई हैं दिल की देह से शाखें कई।
'सागर'ये मोहब्बत,मन की धरती को यूं,शादाब कर गई।।

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