इश्क़ करा करिए।
दर्द कुछ पहले इस दिल में जमा करिए।
बात फिर समझने - समझाने की करा करिए।।
गुलों का मुंतजिर है हर -एक शख़्स यहां का।
कांटों को भी दूर मग़र ख़ुद से किस तरहा करिए।।
ज़ख्म खा जाते हैं अक़्सर नई पीढ़ी से पिता।
मुहब्ब़ती आंखों में , ऐ आंसुओं न पला करिए।।
बात कुछ भी न थी, बात बढ़ा दी बेसबब।
ऐ गर्म खून,न बेरोक दरिया ख़ुद को करा करिए।।
माना कि दर्द बे-घरों ,चंद दर -बदरों के भी हैं।
रीते मकान की दीवारों के दर्द भी सहा करिए।।
जातो- मज़हब, फ़क़त फ़र्क हैं ज़ेहन-ए-बुग़्जा।
आप आदमियत उन पर सौ गुना मला करिए।।
इश्क़ होना क्यूं दुनिया में सब़ब-ए- मलाल बने।
ख़ुदा से उंचा उस महबूब का रूतबा करिए।।
कि तुम्हारी खैर-ख़्वाही में सुकूं है बड़ा दिल को।
जानां , हर घड़ी 'सागर' की नज़र में रहा करिए।।-
सब को खुशियां बांटने वाले
ओ प्रेम! सुनो...,
रिश्तों की पावन सी यह एक डोर है।
जिस के केवल...
...और केवल दो ही छोर हैं।।
एक को थामे हो तुम उधर
स्निग्ध हृदय से,
सिरा एक इधर.... नेह का,
मेरी ओर है।।....
✍️ तुम्हारी जीजी😊!
(Happy
friendship day
chote bhai 🍫)
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मेरे अ'शआर ओं पर ,आज नाम नहीं है कोई।
इन्हें गुमशुदा की फेहरिस्त में शामिल कर दो।।
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लिखना भी है और क्या, इक तेरे सिवा जिंदगी।
कभी रूठी, तू बे-बात, कभी बे़वजह मान गई।।-
इस कलम ओ ज़हन की फ़क़त तकरार है सुखन।
कुछ है बे-दिली उनकी कुछ हमारा प्यार है सुखन।।-
उसे क्या फ़र्क है कि
हिज़्र हो मुक़द्दर किसी का,
या कि नसीबों से अपने
क़ैद- ए- वस्ल मुकर्रर हो।
इश्क़ तो 'सागर' फ़क़त ,
हुनर देता है मुस्कुराने का।।-
फिर तुम्हारी याद, फिर तुम्हारा ख़्याल है जानां।
फिर तसव्वुर में ज़िद किए बैठा है ज़माल तुम्हारा।।-
कि 'सागर' नज़र मिला कर सब बात किया कीजै।
मुंह फेरने से,रजामंदी भी इन्कार सा असर करती है।।-
कई ज़माने गुज़ारे हैं,परछाईंयों की होड़ में।
कि अब जाके, नज़र दुरुस्त हुई है ज़रा सी।!-
कुछ वस्ल और कुछ तर्क़ ए मुहब्बत की भी।
जर्द पन्नों में दफ़्न हैं कहानी तरह तरह की।।-