Sushma sagar   (SUSHMA SAGAR...✍️)
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Joined 19 February 2020


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Joined 19 February 2020
AN HOUR AGO

इश्क़ करा करिए।
दर्द कुछ पहले इस दिल में जमा करिए।
बात फिर समझने - समझाने की करा करिए।।

गुलों का मुंतजिर है हर -एक शख़्स यहां का।
कांटों को‌ भी दूर मग़र ख़ुद से किस तरहा करिए।।

ज़ख्म खा जाते हैं अक़्सर नई पीढ़ी से पिता।
मुहब्ब़ती आंखों में , ऐ आंसुओं न पला करिए।।

बात कुछ भी न थी, बात बढ़ा दी बेसबब।
ऐ गर्म खून,न बेरोक दरिया ख़ुद को करा करिए।।

माना कि दर्द बे-घरों ,चंद दर -बदरों के भी हैं।
रीते मकान की दीवारों के दर्द भी सहा करिए।।

जातो- मज़हब, फ़क़त फ़र्क हैं ज़ेहन-ए-बुग़्जा।
आप आदमियत उन पर सौ गुना मला करिए।।

इश्क़ होना क्यूं दुनिया में सब़ब-ए- मलाल बने।
ख़ुदा से उंचा उस महबूब का रूतबा करिए।।

कि तुम्हारी खैर-ख़्वाही में सुकूं है बड़ा दिल को।
जानां , हर घड़ी 'सागर' की नज़र में रहा करिए।।

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3 AUG AT 18:45

सब को खुशियां बांटने वाले
ओ प्रेम! सुनो...,

रिश्तों की पावन सी यह एक डोर है।
जिस के केवल...
...और केवल दो ही छोर हैं।।

एक को थामे हो तुम उधर
स्निग्ध हृदय से,
सिरा एक इधर.... नेह का,
मेरी ओर है।।....

✍️ तुम्हारी जीजी😊!

(Happy
friendship day
chote bhai 🍫)

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2 AUG AT 11:15

मेरे अ'शआर ओं पर ,आज नाम नहीं है कोई।
इन्हें गुमशुदा की फेहरिस्त में शामिल कर दो।।

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2 AUG AT 11:12

लिखना भी है और क्या, इक तेरे सिवा जिंदगी।
कभी रूठी, तू बे-बात, कभी बे़वजह मान गई।।

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2 AUG AT 11:08

इस कलम ओ ज़हन की फ़क़त तकरार है सुखन।
कुछ है बे-दिली उनकी कुछ हमारा प्यार है सुखन।।

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2 AUG AT 10:49

उसे क्या फ़र्क है कि
हिज़्र हो मुक़द्दर किसी का,

या कि नसीबों से अपने
क़ैद- ए- वस्ल मुकर्रर हो।

इश्क़ तो 'सागर' फ़क़त ,
हुनर देता है मुस्कुराने का।।

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2 AUG AT 10:04

फिर तुम्हारी याद, फिर तुम्हारा ख़्याल है जानां।
फिर तसव्वुर में ज़िद किए बैठा है ज़माल तुम्हारा।।

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2 AUG AT 9:58

कि 'सागर' नज़र मिला कर सब बात किया कीजै।
मुंह फेरने से,रजामंदी भी इन्कार सा असर करती है।।

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2 AUG AT 9:45

कई ज़माने गुज़ारे हैं,परछाईंयों की होड़ में।
कि अब जाके, नज़र दुरुस्त हुई है ज़रा सी।!

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2 AUG AT 9:28

कुछ वस्ल और कुछ तर्क़ ए मुहब्बत की भी।
जर्द पन्नों में दफ़्न हैं कहानी तरह तरह की।।

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