कल से बेहतर आज हैं आप, आज से भी बेहतर कल होंगे।
न रोकिए कदम कठिन रास्तों पर,सतत् प्रयास सफ़ल होंगे।।
मुश्किलें उपहार हैं,मानिए उपकार हैं, प्रकृति का आप पर।
मुश्किलों से जूझने वालों के जटिल सवाल सब हल होंगे।।
गिरना असफलता का पैमाना नहीं सीख है,सीख से सीखिए।
आज कि गलतियों के सीखे न फिर मुश्किलों में कल होंगें।
गंधियाते हैं ठहरे हुए जलाश्य साथी,आप बहती नदी बनिए।
पत्थरों पर सिर मथ बने हैं जो मीठे धारे,वे न विफल होंगे।।
क़ैद कर बीता कल आंखों में,भविष्य के ख़्वाब देखने वालो।
ओ आज से द्वंद करने वालो,पूर्ण तेरे देखे,स्वप्न सकल होंगे।।-
बूढ़े होते पिता को
अच्छा लगता है पैर छूने से भी ज़्यादा
बेटे ...और बेटों के बेटों का
उन से
गले लग कर मिलना
...और वे चाहते हैं कि ब्याही हुई बेटियां
बैठें उनके पास भी देर तक
बतलाएं...
अपने जीवन के दुःख
अपने जीवन के सुख ।।
जैसे बतलाती हैं
वे खुलकर
अपनी माँ के सामने
मन की हर बात।।।-
पिता।
पिता वे विषय हैं
जो कठिन जानकर कम पढ़े गए।
....या लिखते समय
उनके हिस्से आई स्याही की तरलता
कम रह गई।।-
उम्र की भरी दुपहरी सिर पर गुज़री है,अब ज़रा , सुस्ता रहे हैं, मेरे पापा।
पिता बन कर जिए हैं, इक उम्र लंबी, अब बचपन बुला रहे हैं, मेरे पापा।।-
घने नीम की वो छांव कहां अब, शहर में तेरे।
कच्ची मिट्टी को लील गईं ,ये सड़कें पक्की।।-
काश के बाद भी एक आस रहती है, मग़र।
ज़िन्दगी को छला है कई बार, इसी काश ने।।-
त्राहि- त्राहि से कब हल हुए मसले, बात शांति से कहना सीखो।
परिवर्तन तो सृष्टि का नियम है,साथी नियम में तुम रहना सीखो।
बदल रही है चाल कुदरत की और वक्री हुए सितारे भी।
तीक्ष्ण ताप के बाद अमृत बरसेगा, संयम में तुम बहना सीखो।।
सौ टुकड़ों में टूट-बिखरकर पत्थर ने ईश्वर का दर्जा पाया है।
ओ चेतन!कठिन समय को शिल्पी अपना, तुम कहना सीखो।
उलझ-उलझ, जीवन पर्यंत ,एक सार बहतीं अविरल धाराएं।
कर गोल सरल,किनारे तीक्ष्ण,नदियों सम तुम बहना सीखो।।
सुगढ़ न होगा देह - मंदिर, मन -ईश्वर, बिना कष्ट झेले 'सागर।
तपो कि...तपोभूमि है जीवन, ताप समय का तुम सहना सीखो।।-
जीवन की सरगम, लय-सु्र-ताल-तरन्नुम, पारूल तुम।
समय का पारस छू गुज़रा है जिसे हो वो ,पारूल तुम।।
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ओ...!
सप्तम व्योम के सर्वोच्च
शिखर पर बैठे
अ-देखे
अ-रूप...,
सुनो...!
मुझे आती हैं बाँचनी तुम्हारी चिट्ठियाँ,
भेजो आज फिर संदेश,
मेरे नाम से।-