आइए आज लेख में प्रकाशित तीन प्रसंगों के मदद से विनम्रता और सहिष्णुता के सही मायने समझने का प्रयास करते हैं
-
क्या क्या नहीं चखा दिया था जीवन ने
अब तो क्या दवा क्या ज़हर,
ना किसी का स्वाद महसूस होता था
और ना ही असर!
.....अनुशीर्षक पढ़ें.....-
धर्म
वह धर्म धर्म नहीं जो बन न सके सेतु,
योग न सके कर तो है फ़िर किस हेतु।
विभाजन, वाद-विवाद का बने कारण,
नहीं कर पाए समस्याओं का निवारण।
बैर बढ़ाए एवं आपसी फूट करे जनित,
घृत बन वैमनस्यताग्नि करे प्रज्वलित।
दूसरों की नकल में भेड़ चाल चलाए,
अंधानुकरण कराए मार्ग न दिखलाए।
दूसरे को कहें दोयम अपना धर्म श्रेष्ठ,
शिष्टाचार सिखाते दूजा है सदा ज्येष्ठ।
सहिष्णुता धर्मनिरपेक्षता को सर्वोपरि,
रखें उर में, सभी मित्र हैं न कोई अरि।
-
इंसानियत न जाने, कहाँ खो रही है ?
नफ़रतों से भरे इस दौर में,
कथनी-करनी में फ़र्क करने वालों,
समझो और सुनो ज़रा गौर से,
आने वाली नस्लें कैसे जी सकेंगी ?
घृणा, अमर्ष और असहिष्णुता की भौंर में..-
सहिष्णुता का सिला तो देख हमने अब लिया है,
घाव अपनों ने दिया है....जान हमने ये लिया है।-
प्रेमी के साथ मिलकर पति की हत्या....
प्रेमिका के साथ मिलकर पत्नी की हत्या...
प्रेमी के साथ मिलकर बच्चों की हत्या....
प्रेमी- प्रेमिका ने मिलकर की परिवार की हत्या...
ये कुछ खबरें आजकल अखबार की हेडलाइन बनी होती हैं... ये संकेत है महिलाओं की भागीदारी लगातार अपराध में बढ़ रही है... सिर्फ पुरुषों को दोष देना ठीक नहीं है.... पूरी की पूरी नस्ल खराब हो रही है... फसल पर बाकायदा ध्यान देने की जरूरत है... आने वाली पीढ़ियों को संस्कार, सहिष्णुता और मानवीयता का पाठ जरूर पढ़ाया जाना चाहिए🙏🙏-
सर्वप्रथम स्वयं को चरित्रवान बनाये,
क्योंकी बिना आचरण के आत्मानुभव नहीं हो सकता।
" नम्रता, सरलता, साधुता, सहिष्णुता "
ये सब आत्मानुभव के प्रधान अंग है।।-
धरा सहती है, हर मौसम को,
मानव के हर एक शोषण को;
ना कभी, शिकायत करती है,
ना ही अपना संतुलन खोती है;
हर हाल में, वह रहती है स्थिर,
यही उसकी पहचान बताती है..-