बाबा साहेब अम्बेडकर
समाज शोधक दिग्दर्शक न तुझसे बड़ा है कोई
हँसी दिलाई उस जनता को जो सदियों से रोई
बाबा साहेब के बच्चों, पत्नी की भी हुई उपेक्षा
लगे रहे समाज हित में मानस की रखी अपेक्षा
पत्नी हो अधिवक्ता की कम पैसों में करे गुजारा
ध्यान नहीं दे पाने से बालक का भी गया सहारा
रोजी रोटी और पढ़ाई करते रहे थे बाबा साहेब
अफसर होकर होती उनकी, सदा ही खाली जेब
सदा अछूतों का संबल, बने दे गए संविधान
कानूनन जुर्म बना गए, आरक्षण का दे वरदान
स्त्री शिक्षा मंदिर प्रवेश, जल पीने का अधिकार
सम्मान दिलाया दलितों को, सहा स्वयं धिक्कार
स्वयं सुखों का त्याग कर, परहित धरते ध्यान
युगों युगों तक दलितों के रहेंगे वो भगवान-
**Award recieved **
1. Vinay Ujal... read more
कृष्ण-अर्जुन सी मित्रता आज बिरली ही मिलती है....
मेरे जीवनउपवन को सुरभित कर गई वो बनकर इत्र !!
भीड़ तो चारों ओर है, पर अपना नहीं दिखता कोई.....
ऐसी उदासी के मंज़र में मिल गई एक सच्ची मित्र !!
स्वार्थ की चाशनी में लिपटा आज यहाँ हर नाता है.....
उसी स्वार्थी दुनिया में है वो बिल्कुल मासूम विचित्र !!
कर्मठता का उसका सानी नहीं मिल सकता यहाँ....
वो एक दिव्यता लिए हुए है खींचू कैसे उसका चित्र !!-
कैसा???
मर जाए जो, वो प्यार कैसा
डर जाए जो, वो यार कैसा
बिना तड़प, दीदार कैसा
घाव न करे, वो वार कैसा
चुक जाए जो, वो उधार कैसा
शब्दों से कहा, आभार कैसा
हिल जाए अगर, आधार कैसा
छुप जाए जो, वो गुबार कैसा
दिख जाए जो, सिंगार कैसा
बुझ जाए जो, अंगार कैसा
खुशियों बिना, बहार कैसा
रौनक बिना, बाजार कैसा
पोषण बिना, आहार कैसा
दूषित हवा में, विहार कैसा
शक्ति विहीन, प्रहार कैसा
सौम्यता बिना, व्यवहार कैसा
धार बिना, हथियार कैसा
खाली हो जो, अंबार कैसा
परिजन बिना, परिवार कैसा
शांति बिना, संसार कैसा-
1.महानुभाव आए हमारे द्वार हम पर किया उपकार
स्वीकार कीजिए पुष्पगुच्छ रूपी यह प्रेमोपहार
2.हम सभी धन्य हुए जो आप जैसा अधिकारी मिला
दयावान कर्मठ कर्मयोगी और सदाचारी मिला
3.मूरत विनम्रता की और सदा सहायतार्थ तत्पर
ऐसी ही हस्ती हैं हमारी मैडम वाइस प्रिंसिपल-
एक दवा ही तो माँगी थी दर्द बेइंतहा दे गया
उसकी बेवफ़ाई का अंदाज़ भी तो देखिए
कितनी मासूमियत से दगा दे गया
अफ़सोस न होता गर वो कोई पराया होता
दुःख यही है कि दर्द सगा दे गया-
दिल का लगना
जो लग गया दिल तो कुछ और बचता नहीं
छोड़कर उस एक चेहरे को कुछ जंचता नहीं
समझदारी से दूर दूर तक रिश्ता दिखता नहीं
जो बिका था बिना मोल, दोबारा बिकता नहीं
प्रेम का रंग जो कभी गहरा था अब टिकता नहीं
हुई भूल हमसे कोई या किसी भूल में थे हम
छोड़ना तो एक दिन पड़ेगा ही खोलकर मुट्ठी
इन कमज़ोर हाथों में वो अब सिमटता नहीं
हम न देंगे उसे अब कोई भी आवाज़
जो चीखों से भी हमारी पिघलता नहीं
आग जो अंदर लगी अंदर ही बुझा लें
मन समंदर पी गया अब उगलता नहीं
नमी आंखों में इतनी है बदन जलता नहीं
पेड़ लगा तो है अमृत का किंतु फलता नहीं
दर पे खड़े थे उसके हम मांगते हुए दो बूंद
बाल्टी दिखा बोला क्यों आगे चलता नहीं-
कोई देख रहा है
कर्म का फल इतना गम्भीर, कोई सके कभी न चीर
समझो कि कोई देख रहा है, मानो कि निगरानी में हो
अकेले तो भी मान लो, दीवारों के कान जान लो
काम करो वही तुम जो
कर सकते हो सार्वजनिक, मत चाहो कभी सुख क्षणिक
बस कोई तो देख रहा है, कर्म किये जाओ तुम नेक
बन जाओगे अनेकों में एक, मत देखो तुम ऐसा वैसा
मत बोलो कुछ भला बुरा, अच्छी बातें रख लो सबकी
छुपा लो इनको रखो चुरा, कभी नहीं होते अकेले
होते हैं दुनिया के मेले, ज्यों सी सी टी वी का घेरा
होता है सर्वत्र बसेरा
शुतुरमुर्ग की भाँति छुपकर, न होना खुद से अनजान
देखो कोई देख रहा है, कोई तुमको जाँच रहा है
बाहर जाकर बांच रहा है
अब तो और मुसीबत आई, आपके हाथों में ए आई
जो बोलो और सोचो तुम, पकड़ रखेगा ये उसको
बार बार बतलाएगा,राज तुम्हारे सबके आगे यही एक खुलवाएगा-
कविता बड़ी चंचल
कविता बड़ी चंचल है होती
मूल भाव को हरदम खोती
दो कदम भी चल न पाती
डगमग डगमग वो है जाती //1//
कविता मानो सरिता कोई
अल्हड़ सी दीवानी सी
कलम बहकती कभी चहकती
चलती है मस्तानी सी //2//
आए कोई पत्थर पाषाण
बदले ऐसे भाव विचार
बलखाती इतराती वो
दिशा बदलती हो लाचार //3//
आगाज हो खुशियों वाला
अंजाम दुःखद हो जाता है
पँक्ति प्रथम का भाव कभी
बढ़ते-बढ़ते खो जाता है //4//
कभी अलंकार के लालच में
कभी छन्द पे जा लटकती है
बन जाए नायिका विरह भरी
कभी शृंगार कर लचकती है //5//
बड़ी ही नटखट बालिका
खेल-खेल में खूब नचाती
कभी यहाँ तो कभी वहाँ
उछल कूद कर कला दिखाती //6//-
वो शुभचिंतक
बड़ी मुश्किलों में समझ पाई
तुम्हारी अच्छाईयों को
बहुत समय लगा समझने में
तुम्हारी गहराईयों को
तुम्हारे संयम और नियंत्रण को
समझती रही मैं बेरुखी
समझदारी को मैं नासमझ
समझ न सकी सखी
लगती रहीं असुन्दर सारी बातें
देखा न कभी रानाइयों को
वो तो हमेशा ही पास था मेरे
ढूँढ़ा किये परंतु परछाइयों को
उसकी सदाएं हरदम मुझको पुकारती थीं
माना किए सदा ही हम हरजाईयों को
हमेशा चलता रहा सत्य की राह पर वो
फिर भी किया याद हमने रुसवाईयों को
वो सदा मेरे हित की ही सोचता है रहता,
किंतु देखा हमने, हमेशा बुराईयों को-