इनका क्या है
इन आवाजों का क्या है चीखती बहुत हैं
किन्तु जब चाहो तन्हाई में उनको बुलाना
तो बस मौन होकर रह जाती हैं
इन लोगों का क्या झूठ बहुत बोलते हैं
किन्तु जब चाहो कभी सच के करीब लाना
तो जैसे बस कतरा के चले जाते हैं
इन सफ़ेदपोष लोगों का क्या,
कारनामे इनके काले बहुत हैं
जब भी गुजरें पास से तो छींटे पड़ ही जाते हैं
इन बुद्धिमान लोगों का क्या
हर बात में तर्क वितर्क कुतर्क ढूँढ़ लेते हैं
मन की व्यथा कहने इनसे पसीने छूट जाते हैं
इन पैसे वालों का कहना ही क्या
रोटी की तलाश देखकर प्रश्न चिह्न लगाते हैं
अरे इनके नखरे तो देखो,
रोटी नहीं तो ब्रेड क्यों नहीं खाते हैं-
**Award recieved **
1. Vinay Ujal... read more
डगर चुनी जिसने भी देखो, संघर्षों वाली
उसी ने नापी लम्बाई, फ़र्शों से अर्शों वाली-
मन का झरोखा (लघुकथा)
नीता ऑफिस से थककर आती है और अपनी दिनचर्या के अनुरूप नीलेश को मैसेज करती है पर उसका मैसेज डिलीवर नहीं होता और वो परेशान हो जाती है और काॅल पर काॅल लगातार करती है किंतु कोई उत्तर नहीं मिलता। और बार-बार व्यस्त है,बताता है।
वह परेशान होकर अपने कॉमन मित्र जयंत को कॉल करके पूछती है कि क्या हुआ होगा आखिर। जयंत आज की सोशल मीडिया की दुनिया से वाकिफ़ था। वह समझ जाता है कि नीलेश ने नीता के साथ टाइम पास किया था और अब ब्लॉक कर दिया है उसे जबकि नीता ने उसे अपने मन के झरोखे में बसा लिया था।
जयंत नीता से कहता है कि, "भूल जाओ उसे नीता वह तुम्हारे मन के झरोखे में बसने लायक नहीं था।"-
समुद्र (बाल कविता )
छोटी छोटी बहुत सी नदियाँ मिल जाए तो बने समुद्र।
इसको कह्ते सागर सिंधु कभी है शांत कभी है उग्र ।।
उछाल है आता जब इसमें तो कह्ते हैं इसको ज्वार।
भाटा कह्ते हैं उसको जब, पानी में आ जाए उतार।।
गहराई नापें समुद्र की फ़ैदम नामक इकाई से।
सागर मथने से निकले थे चौदह रत्न मलाई से।।
शंख मोती मूँगा तेल शैवाल जैसे संसाधन देता।
शंकर जी की भाँति सारा, विष वो ख़ुद ही पी लेता।।
एक तिहाई सीओटू का अवशोषण कर लेता है।
बदले में सत्तर प्रतिशत ऑक्सीजन वो देता है।।
प्रतिशत सत्तर धरती एवं छियानवे है जलराशि।
नीलाकाश में चंद्रमा, नीले समुद्र में धनराशि।।
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विधा- लघुकथा
विषय-श्राद्ध
शीर्षक- नई पीढ़ी का श्राद्ध
प्रखर कॉलेज जाते समय माँ से बोलता है, "माँ दादाजी का श्राद्ध है, याद है आपको?"
"हाँ बेटा, क्यों नहीं? सब तैयारियाँ हो गई हैं। सब पकवान बनेंगे उनकी पसंद के और उनके द्वारा जो वस्तुएँ उपयोग में लाई जाती थीं, वे सभी पंडित जी को दान की जाएंगी,जिससे उनकी आत्मा को बैकुंठ मिल सके।"
प्रखर अच्छा माँ कहकर चला जाता है।
तैयारियों के बीच माँ देखती है कि प्रखर दादी को वृद्धाश्रम से ले आया है । वे दादी के संग प्रखर को खड़ा देख कर दंग रह जाती हैं कि वह दादी को वृद्धाश्रम से नए कपड़ों में लेकर आ चुका है और कहता है, "दादाजी की पसन्द की चीज यहाँ है, इनके लिए पूरे सम्मान से थाली लगाएँ।"-
शीर्षक- सप्ताह के दिन (बाल कविता)
आया आया रे सोमवार,
शंकर जी का है त्यौहार ।
दूसरा दिन है मंगलवार,
बजरंगबली की हो जयकार ।
सरस्वती माँ का है बुधवार ,
पढ़ लिखकर बनें होशियार।
गुरुजी हमारे बड़े जानकार,
आज पड़ गया है गुरुवार ।
शुक्र है तारा सबसे प्यारा,
प्यारा -प्यारा है शुक्रवार।
कल होगी प्यारी सी छुट्टी,
आज पड़ गया है शनिवार।
सूरज बिन सब ओर अंधेरा,
खुशी मनाओ हर रविवार ।-
व्यवस्था (क्षणिका)
आखिर क्या होती है ये व्यवस्था
जब कार्य संपन्न हों समयानुकूल
निश्चित व सभी की अपेक्षानुकूल
न फैली हो चहुँ ओर अव्यवस्था
कदाचित् होती ऐसी ही व्यवस्था
ज्यों दिन रात हों अन्तराल से
सूरज निकले अपनी चाल से
हवा पानी आएँ न भूचाल से
शायद यही है संतुलन की अवस्था
कदाचित् होती ऐसी ही व्यवस्था-
विजय हेतु हार का अनुभव ज़रूरी है
कभी-कभी स्वीकारना भी मजबूरी है
मजा आने लगे जब, हार में भी तुमको
जीत से बचती कहाँ फिर कोई दूरी है-
सिद्धि के दाता
गणेश अपने मात-पिता पर,
आक्षेप नहीं लगाते हैं ।
वो अपने वाहन को लेकर,
कभी नहीं शर्माते हैं।।१
बुद्धि थी गणपति के पास,
विषम को भी सम करके जीता।
समस्त विश्व के प्रथम पुत्र,
जिनको पूजे मात-पिता ।।२
मस्तक में ब्रह्म लोक और,
कानों में वैदिक ज्ञान।
नेत्रों में लक्ष्य व करुणा,
दाएं हाथ में वरदान।।३
बाएं हाथ उनके समृद्धि,
सूंड में धर्म, उदर है तृप्त।
नाभि में ब्रह्मांड विराजित,
चरणों में लोक सप्त।। ४
सबसे आकर्षक उनकी सूंड,
जो तीन ओर मुड़ी होती।
विघ्न विनाशक होती दायीं,
बायीं करे कार्य स्थायी ।।५
सीधी करती यौगिक सिद्धि,
संग विराजें रिद्धि-सिद्धि।
कुंडलिनी जागे मोक्ष समाधि ,
हरें गणपति आधि-व्याधि।।६-
आ जाओ न...बिछड़ जाओ न.....
आओ न एक बार मिलने
बिछड़ा जाओ न अपने आप से
कितनी तकलीफ़ में जी रहे हैं
मर मर कर जी रहे हैं
पर ये न जाने कौन सा बंधन है
क्यों दूर नहीं जा पाए तुम
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