इक गजल तैयार करने जा रहा हूँ,
तुम्हें मैं अशआर करने जा रहा हूँ!
नहीं और तेरा सर झुकने दूँगा मैं,
इसे मैं अब ख़ुद्दार करने जा रहा हूँ!
कमाल उंगली का मेरी देख जरा,
अब तुम्हें सरकार करने जा रहा हूँ!
मेरा बुनियाद का होना ही है ज़रूरी,
तुमको अब मीनार करने जा रहा हूँ!
तेरी खनक आती दिल के दहलीज़ पे,
तुम्हे दहलीज़ से घर करने जा रहा हूँ!
चले बस तो ये लिख दूँ आसमां पर,
"राज" तुम्हे अपना करने जा रहा हूँ!
_राज सोनी-
किसानों के लिए ही तो
बना कृषि कानून
जब उन्हें ही नहीं मंजूर तो
ये कानून भला किस काम का..
किसान हमारे लिए सर्वोपरि है
वो आंदोलन करते हुए मर रहे है तो
फ़िर ये सोच भला किस काम का..-
जहाँ लड़कियों को देवी माना जाता है
वहीं पर दरिंदगी का खेल खेला जाता है
इसलिए भी कुछ अब बेटी नहीं चाहते हैं
कुछ हवसी दरिंदे अपने ही निकल आते हैं
उनके बिन त्यौहार में तुम रौनक़ लाओगे कैसे
जब बेटियाँ ही नहीं होंगी तो पढ़ाओगे किसे
लूट रही है आबरू दिन पर दिन
अभी नहीं बचाओगे तो फिर बचाओगे कैसे
कहाँ गए वो सभी जो चौकीदार बने फिरते हैं
जब लूट रही है इज्ज़त तो सामने नहीं हैं
जब होगी बात शोक यात्रा, कैंडल मार्च की
तो शामिल होने जरूर जाएँगे
वहाँ की सेल्फ़ी खींच के सोशल मीडिया पर दिखाएँगे
फिर सब भूल कर अपने में मग्न हो जाएँगे
फिर कुछ दरिंदे अपनी हवस मिटाएँगे
फिर कुछ चिलाएँगे फिर शांत हो जाएँगे
इनको कहाँ पता है आज इनका नंबर आया है
हमनें भी गर मदद न कि तो कल मेरा भी आ सकता है
क्यूं नहीं सरकार कोई ऐसा नियम बनाती है
सालों चलने वाले मुकदमों की सुनवाई जल्दी नहीं कराती है।-
कुछ तो होगा
कुछ तो होगा
अगर मैं बोलूंगा
न टूटे, न टूटे तिलस्म सत्ता का!
मेरे अंदर का एक कायर टूटेगा-
कहाँ कहाँ बेटी बचायें
गर्भ में,
घर में,
स्कूल में,
सड़क पर,
खेत में,
खलिहान में
कहाँ सुरक्षित हैं ?
बेटियाँ.......-
रिक्शा का
किराया तभी देंगें..
🍁
जब
नीली स्याही लगा लोगी..मोदी जी के नाम की..😊-
आसमाँ पे हाथ उठाने से क्या होगा
सूखे पत्तों में पानी देने से क्या होगा
जिनसे साँसे थी, वो अब नम्बरों में दर्ज हैं
इस सरकारी निंदा - सहानुभूति - मुआवजों से क्या होगा
धूं - धूं जल रहे हैं अपने श्मशानों में
उसकी चौखट पे मत्था टिकाने से भी क्या होगा
सुना है एक और लहर की चेतावनी है
यार समझो, भैंस के आगे बीन बजाने से क्या होगा।-
अच्छे दिन चाहते है
अच्छी रातें चाहते है
ये जो ला सके
हम ऐसी सरकार चाहते है..
शिक्षित आवाम चाहते है
समझदार हुक्मरान चाहते है
भ्रष्टाचार मिटा सके
हम ऐसा सुशासन चाहते है..
पक्की सड़कें चाहते है
बहती नहरें चाहते है
आवाम को दिखे
हम ऐसा विकास चाहते है..-