अपनी अना से बढ़कर और किसी की अहमियत नहीं है
-
हर रचना को मेरी जाती जिंदगी से न जोड़े।
मै एक लेखक हूँ... read more
कोमलांगी,निर्मल
छल कपट, द्वेष से अनजान
प्रेम के दो शब्दो मे बह गई
ज्ञात नहीं था
सब क्षणिक था
संसार निर्मम था
मैं फिर चैतन्य हुई
पूरी ताकत से उड़ी
और स्वतंत्र हो गई
फिर से उड़ने को आतुर-
आज भी है,उस खत का इन्तजार
जिसमें लिखें हों, सिर्फ तेरे मेरे इज़हार
वो पहली महक,वो पहली कशिश
जिसको पढ़ते ही ,धुल जाए सारे गुबार-
जबसे छोड़ दिया अनर्गल बातों पर हां में हां मिलाना
हर किसी को हम बदले बदले से नजर आते है-
किसी ने टूट कर चाहा,ये उसकी खूबी थी
तुमने खुद पे गुरुर किया,ये तुम्हारी खामी थी-
धुल गईं,सारी शिकायतें,
बारिश की फुहारों में,
तेरे शहर बरसा नहीं पानी क्या
जो मन में गांठ लिए बैठे हो-
आज की नाइन्साफी में भी कोई राज होगा
सब्र है खुदा, तेरी हर रज़ा में मेरी रज़ा होगी-
मेरे दिल पर
तुम्हारा अधिकार है
दिमाग पर नहीं
मुझे मेरी वैचारिक स्वतंत्रता
बहुत प्रिय है....
फिर रिश्ता कोई भी हो...😊❣️-