आशिकी तुम्हारी समझ कर भी समझ ना आई
कभी लगे छलावा कभी जीवन की खुशनुमा
अंगड़ाई
ये जिद तेरी थी या मेरी,क्यूं चलता रहा सफर समझ ना आई-
हर रचना को मेरी जाती जिंदगी से न जोड़े।
मै एक लेखक हूँ... read more
हिज़्र की रात हो या वस्ल की, हर पल तुम्हें याद किया
खुशी तुम्हारी जान कर खुद को भी बर्बाद किया
खबर तुम्हें भी है, हमारी चाहत की, इबादत की
वक्त को न था मंजूर, बस यह सोचकर सब्र किया-
पहले वो तुम्हें बातों से
बड़ी नफासत से
मुहब्बत के ख्वाब
दिखायेगा,जब दीवाने
हो जाओगे, फिर
नजरअंदाज करेगा
इस्तेहसाल करेगा
ये आदमी की फितरत है,
हर बात पर एहसान करेगा-
जिस दिन पुरूष समझ लेगा
स्त्री का समर्पण
उस दिन उसकी
कठोरता पिघलेगी
और एक नई दुनिया
जन्म लेगी-
बस एक छलावा है,
ऊपर कुछ और
भीतर जहर का प्याला है
चेहरे पर चेहरा है
मकसद सिर्फ धोखा है,
किसी की नजर धन पर
कोई शरीर का प्यासा है
झूठी मुस्कान है ,भीतर से परेशान है
लौट चलो पुराने संस्कारों पर
वही तुम्हारी पहचान है
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ताजपोशी बातों से नहीं, अहसास में नजर आना चाहिए
जो आंखों से समझ लें जज़्बात ,वो प्यार नजर आना चाहिए
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इंसानियत की
गर तुम भूल गए हो
तो खुद को टटोलना
रात के अंधेरे में
खुद से सवाल पूछना
देश बड़ा है ,या धर्म
देश से है ,अस्तित्व तुम्हारा
आन बान और शान तुम्हारा
नहीं जागा विवेक तो
फिर कोई नहीं पूछेगा .....
क्या धर्म है ,तुम्हारा-