ज़िंदगी तो है सफ़र हर अजनबी से बोलिएगा
ज़िंदगी ने क्या सिखाया ज़िंदगी से बोलिएगा
मैं समंदर हूँ सभी आ कर नदी मुझ से मिलेंगी
गर तुम्हें कुछ बोलना हो तो नदी से बोलिएगा
आपकी उम्मीद से ज़्यादा नहीं हूँ आज कुछ भी
क्या भरोसा कल का सो शाइस्तगी से बोलिएगा
मत कभी इसमें रियायत माँगने की सोचना तुम
दोष को अपने सदा शर्मिंदगी से बोलिएगा
क्या वजह ऐसी रही उनकी तुम्हारी बन न पाई
वो भी सोचें तुम भी सोचो फिर किसी से बोलिएगा
फैसले कुछ तो बदल जाते हैं पैसे से मगर, हाँ
झूठ सच जो भी हो बस आवारगी से बोलिएगा
आप तो अश'आर से अपने हमें आज़ाद कर दो
बात अपने बीच की यूँ मत सभी से बोलिएगा
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