बस एक हुनर भूलने का ही तो नही आता,
वरना भूलना तो हम भी बहुत कुछ चाहते है।-
मेरी तुमसें बस यही एक पुकार है,
त्याग दो भरा तुममें जो अहंकार है ।
बना लो एक ऐसा समाज
भरा हो जिसमें प्यारा शिष्टाचार ,
अमीरी-गरीबी से मत तोलो सम्मान
अच्छे कर्मों को बना लो सम्मान का आधार ।।-
मेरे महबूब को कोई और भी चाहे इस बात से हम बेतहाशा जलते है
पर गुरूर है हमें इस बात का के सब हमारी पसंद पे ही मरते है-
फ़कत उसी को क्यों अपने आसुओं का दोषी मानती हो
गलतियां जो तुमसे हुई इश्क़ में क्या उन्हें पहचानती हो?
कहती हो कि मुस्कुराहट छीन ली उसने तुम्हारे होठों से
नींद,सुकून जो उसका गया क्या उस दर्द को जानती हो?
तुमने सोच रखा है तुम्हें छोड़कर चैन से सोता होगा वो
जो नींद से पहले होती है क्या उस तड़प को जानती हो?
अगर अभी नही हुआ है तुम्हें अपने गुनाहों का एहसास
तो मुझको लगता है शायद तुम मोहब्बत नही जानती हो?-
लिट्टी के साथ हमें तो
पिज़्ज़ा भी भाती हैं
पर वो महीने में
एक बार ही याद आती है..
मलाई मार के
लस्सी की मिठास में
मन डूबने को तैयार
कहा कोल्ड कॉफी जीत पायेगा
मेरा देसी कुल्लड वाला प्यार....
(रचना अनुशीर्षक में)
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