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🤪
और हमारी शायरी पढ़ लीजिए ।।
वो कहते हैं, "तुम बहुत ज़्यादा सोचती हो",
"हर बात में बस पोसेसिव होती हो..."
शब्दों से दिल को चोट पहुंचा
इस प्यार की जड़ें कितनी गहरी होती हैं, ये जानना चाहता ही नही....
लोग प्यार को अब समझते कहाँ हैं,
या शायद अब समझना चाहते ही नहीं...
क्योंकि आजकल किसी एक के लिए
दिल समर्पित कर पाना आसान रहा ही नहीं...
अंत में एक दिल टूटता है चुपचाप,
खुद को ही समझाता है हर एक जवाब...
कि वो तुझे कभी समझेगा नहीं,
क्योंकि सच तो ये है — वो समझना चाहता ही नहीं..
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गीता अध्याय 7 और 8
🌟 मैं ही तत्त्व, मैं ही ज्ञान 🌟
मैं धरती की खुशबू प्यारी,
मैं बादल की बूँदें सारी।
सूरज की किरणों में हूँ मैं,
हर दिल की धड़कन में हूँ मैं।
चार भक्त जो मुझे पुकारें,
ज्ञान, प्रेम में जो खुद को हारें।
सबसे प्यारा ज्ञानी लगे,
जो मुझमें लीन सदा ही जगे।
अंत समय जो नाम दुहराए,
“ॐ” कहकर जो मन रमाए,
उसको मोक्ष का मार्ग मिले,
पुनर्जन्म का बंधन छूट चले।
ज्ञान-विज्ञान जो संग मिलाए,
माया से फिर डर न सताए।
जो मुझमें मन स्थिर कर ले,
उससे कभी न दुख अब झेले।
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अध्याय 5 और 6
"ध्यान और संन्यास का संगम"
कर्म करो, पर मोह न पालो,
फल की आस से खुद को निकालो।
त्यागी वही, जो शांत रहे,
हर सुख-दुख में सम भाव सहे।
ध्यान लगाओ मन को थाम,
भीतर खोजो आत्मा का नाम।
न द्वेष, न राग, न कोई भेद,
सबमें देखो एक ही वेद।
संन्यास योग और ध्यान का मेल,
इनसे खुलता मोक्ष का खेल।
राधे राधे-
"किसी ख़ानदानी मर्द से वास्ता पड़े तो
तवायफ़ों को भी इज़्ज़त मिल जाती है,
और अगर किसी बद-नसल मर्द से वास्ता पड़े तो
शरीफ़ लड़कियाँ भी दो टके की महसूस करने लग जाती हैं.!😑
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🌼 कर्म और ज्ञान की राह 🌼
(गीता अध्याय 3-4 पर आधारित कविता)
कर्म करो, पर आस न हो,
फल की कोई प्यास न हो।
सेवा में ही योग बसता,
मन का सच्चा मार्ग बनता।
ज्ञान जले, जब मोह बुझे,
अहं पिघले, प्रेम ही बुझे।
कृष्ण जो कहते, वो समझो,
जीवन को तब धन्य समझो।
प्रभु से जुड़ जाए जो मन,
हर दिन हो उजला सा तन।
गीता की जो वाणी धारे,
वो हर अंधेरा पार उतारे।
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