Anjna Kadyan   (🍁अंजना कादयान 🍁)
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Joined 14 October 2019


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Joined 14 October 2019
26 JAN 2022 AT 15:24

गणतंत्र दिवस देश के सम्मान का एक राष्ट्रीय पर्व,
देख शक्ति वतन की अपने जाँबाजो पर होता गर्व।
विश्व में हमारे हिंदुस्तान की छवि ही कुछ न्यारी है,
भारत देश नहीं बल्कि आन-बान-शान हमारी है।।

आप सभी को
73 वें
गणतंत्र दिवस
की हार्दिक शुभकामनाएं
🌼🙏🙏🌼

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24 JAN 2022 AT 21:38

संग अपने वही बातें
कभी छाये नीरसता
कभी उमंगे भर आए
जीवन की नैया डोले
कभी ये संभल जाए
हाल है बस कुछ ऐसा
एक दूजे के ही जैसा
ना अलग हाल हमारे
ना हटके कुछ तुम्हारे

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24 JAN 2022 AT 11:43

बैठ यूं तन्हा-तन्हा अतीत के पन्ने क्यों खोलता है ,
यादकर ज़ख्मो को क्यों अंदर ही अंदर सुलगता है;
चित्र बन याद पुरानी जो छायी रहे स्मृति पटल पर ,
अच्छी चाहे बुरी जो दर्द दे भूल उन्हें मन पक्का कर ;
मिटाकर अतीत की परछाइयाँ थोड़ा तू भी मुस्कुराले,
ज़िंदगी के गीत की मधुर तान जरा तू भी गुनगुनाले।

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20 JAN 2022 AT 13:35

SANDEEP PATHAK JI
Thank You Very Much For Giving Me
Three Wonderful And Precious Gifts.
Thank You Once Again
For Your Encouragement Sir.

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13 JAN 2022 AT 22:03

यहां नहीं है जब हमेशा किसी का बसेरा,
इंसानियत को भूल फिर क्यों करते रहते
हेर-फेर, हड़प-झड़प, तेरा-मेरा शाम-सवेरा;
किसी एक की नहीं बात ये हम सभी की
सोच बनाली हमने अपनी बहुत ही छोटी,
आओ आज से कुछ बदलाव लाए खुद में
नमन कर सर्वशक्तिमान को कोटि-कोटि;
ये जीवन परमेश्वर की दी हुई एक सौगात
अपने कर्मों से क्यों करते उनको शर्मसार,
मिटने ना दो इस इंसानियत के वजूद को
इंसानियत की डोर से ही बंधा पूरा संसार।

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12 JAN 2022 AT 21:45

ये भाग्य तेरे विपरीत
बढ़ता चल शिद्दत से
होगी निस्संदेह जीत
संघर्ष होगा विशाल
खुद से बाँधले प्रीत
सुनते चलना सबकी
पर गाना अपना गीत
दुनिया अटकायें बहु
नहीं किसी की मीत

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11 JAN 2022 AT 21:50

लफ्ज़ो में बयां हम कर ना पायें
उठाकर बैठे़ जो काग़ज कलम
हाल-ए-दिल हम लिख ना पायें
हँसें या रोएं सिसक-सिसक कर
ये जज़्बात ही जब कह ना पायें
फिर कैसी ये अपनी ज़िन्दगानी
जहाँ खुलकर ही हम जीं ना पायें

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10 JAN 2022 AT 22:35

खिल-खिल मन जाते हैं,
चहूँओर फैली खुशबू से
पुलकित हम हो जाते हैं;
जीवन देकर फूल अपना
दूजों को बहार दे जाते हैं,
कुछ सीखो इंसान इनसें
हम खुद ही जीते जाते हैं;
वो क्या समा क्या रौनक
जब फूल मुस्कुरा जाते हैं।

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9 JAN 2022 AT 22:21

क्यों जी रहे टुकड़ों में इतने
एक पल का क्यों चैन नहीं
जब साथ रहते सभी अपने
कुछ विचलित-से यहां-कहीं
क्या भूल गए जो देखे सपने
ले जाए मन जहां चले वहीं
पीछे उसके बस लगे भागने
चल रहे जिस राह क्या सही
या मन चंचल लगा ये ठगने

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8 JAN 2022 AT 18:10

होते ये गिने-चुने ही चन्द,
जी ले खुलकर इन्हें जरा
करके अपनी गति मन्द।
आपाधापी में उलझ गए
कुछ यूं इतना इस कदर,
अपनी जिंदगी में मचाली
ना जाने कैसी हमने ग़दर।
अत्यंत ही अनमोल होते
ज़िन्दगी के ये चार पल,
भूल चिंता-दुनिया-दारी
खोकर इसमें बहता चल।।

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