भींगना क्या छोड़ा
बरसात बरसाना भूल रही...
सोचती हूं क्या करूं
कि बरसात थोड़ी कम हो
तो मैं थोड़ा भींग लूं ...
(रचना अनुशीर्षक में)-
200 रुपए की गाड़ी के लिए
घंटों गुस्सा होने वाला मेरा बेटा..
आज मॉल में सुंदर सी जैकेट देख
रुक गया...उलट पलट देखा..
नजर प्राइस र्टैग पर गई,
और जैकेट वापस जगह पर..
एक बार भी लेने की जिद नहीं...
मैने जैकेट का प्राइस देखा
हजार रुपए ...मैंने उठा लिया..
बिलिंग काउंटर पर बेटे ने
जैकेट देख उतनी खुशी नहीं दिखाई
जितनी मैं सोची...
बेटे के आंखों में मानो सवाल था...
और मेरी आंखों में नासमझी ....
तभी...ये मैं उसकी खुशियां खरीद रही हूं या
अपनी-
रद्दी छटाना..
कब सिखाएगी तू जिंदगी
हर बेकार सी चीज में...कुछ कतरा...
अपना सा लगता है ...-
न छेड़ो तार ऐसे तुम
जिनमें बस आह पुरानी हो
नमी जो हो तो बस
खुश आखों की रंगत का
न दुखते दिल का पानी हो
बड़ी मुश्किल से छोड़ा है
वो किस्से तेरे मेरे की
रहने दो गर्द उनपर
हैं वो बातें दिल दुखाने की
आसां कहा है कुछ भी
पर चुनना तो एक ही था
दोनो का साथ रहना
देता बड़ा जख्म था-
आत्मा का लक्ष्य तो परमात्मा ही हैं न
पर उस लक्ष्य को पाने का पैमाना क्या है
साफ़ सुथरी,निष्काम,निष्कपट जीवन
किसी का दिल भी दुखाया हो तो
...वो भी
बस अपने अधिकार की रक्षा के लिए तो
रूको ...ठहरो जरा
उफ ...लगता है
एक दो गलतियां तो हो गई
पर इतनी सी गलतियों की
माफी तो होती होगी न ...
किससे पूछूं...-
चमक दमक और
छद्म सुख में लीन रही मैं
मन तो जब तब था समझावे
चोला ये तन जब तक जाना
बीत गए दिन रैन
चोला (कपड़ा) बदलने को रहा
उत्सुक छिछला मन
जिस्म ही चोला जब तब जाना
बीती आधी रैन
अब तो ,
जीवन चक्र में उलझ गई रे
जीवन गया यूं ही व्यर्थ
वापस फिर आना है अब तो
जान हुआ मन बेचैन-
गलतियों का अहसास
उसे भी है ...इसे भी...
बस पहल के इंतजार में
जिंदगी निकल गई...-