Abhishek KAUSHAL   (©Abhishek KAUSHAL ابھیشی)
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नहीं है ख़ुशी फिर भी ख़ुश हूं
कभी थोड़ा कभी बहुत ख़ुश हूं
Joined 13 February 2020


नहीं है ख़ुशी फिर भी ख़ुश हूं
कभी थोड़ा कभी बहुत ख़ुश हूं
Joined 13 February 2020
17 JUN AT 23:00

मैं ही बोलता हूं,
कभी भी बोल देता हूं,
सुनता नहीं कोई कभी भी,
शायद मैं भी कभी नहीं;
बस इतना ही अकेला हूं

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4 JUN AT 21:32

मुश्किलें भी अब इतना मुश्किल कर देती हैं
कि ग़मगीन होने का मौका तलक न देती हैं

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29 MAY AT 0:23

हमेशा जीवन्त होते हैं, खुले होते हैं;
और जो किसी को भी बंद कर देते हैं।
जज़्बातों की अपनी दुनिया है जो इंसान
को इंसान बनती है और बनाए रखती है।
चिट्ठियां कुछ नहीं बस जज्बात ही तो है
जो बंद पन्नो में लिफाफे के अंदर रहती हैं।

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20 MAY AT 23:19

जिसने वादा ही न‌ किया हो कोई
उस पर इल्जाम ही क्या आएगा
जो‌ समाया ही नहीं सांसों में कभी
वो छोड़ कर तुझे क्या जाएगा

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19 MAY AT 14:03

जब मां की फूंक भी दवा
का काम करती थी



जब दवा कोई भी काम नहीं करती है

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15 MAY AT 23:16

इसके तो अपने ही फ़साने
मन की मौज औ सन्नाटे के सुकून में बावले फिरें हैं मस्ताने

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12 MAY AT 22:52

Then I would stop talking.

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8 MAY AT 18:04

पुकारते रहे जाने के बाद भी आदत थी मिरी
रिश्ता तो ज़हन में उसका नाम गूंजने से था

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7 MAY AT 21:45

हम जान न्यौछावर कर देते
उम्र वस्ल की जो भी हो अपने
हम हिज्र भी तुम्हारा कर लेते

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7 MAY AT 21:17

Being affirmatively responsive
and sometimes non-responsive
to the triggers including people.

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