मैं ही बोलता हूं,
कभी भी बोल देता हूं,
सुनता नहीं कोई कभी भी,
शायद मैं भी कभी नहीं;
बस इतना ही अकेला हूं-
कभी थोड़ा कभी बहुत ख़ुश हूं
मुश्किलें भी अब इतना मुश्किल कर देती हैं
कि ग़मगीन होने का मौका तलक न देती हैं-
हमेशा जीवन्त होते हैं, खुले होते हैं;
और जो किसी को भी बंद कर देते हैं।
जज़्बातों की अपनी दुनिया है जो इंसान
को इंसान बनती है और बनाए रखती है।
चिट्ठियां कुछ नहीं बस जज्बात ही तो है
जो बंद पन्नो में लिफाफे के अंदर रहती हैं।-
जिसने वादा ही न किया हो कोई
उस पर इल्जाम ही क्या आएगा
जो समाया ही नहीं सांसों में कभी
वो छोड़ कर तुझे क्या जाएगा-
जब मां की फूंक भी दवा
का काम करती थी
जब दवा कोई भी काम नहीं करती है-
इसके तो अपने ही फ़साने
मन की मौज औ सन्नाटे के सुकून में बावले फिरें हैं मस्ताने-
पुकारते रहे जाने के बाद भी आदत थी मिरी
रिश्ता तो ज़हन में उसका नाम गूंजने से था-
हम जान न्यौछावर कर देते
उम्र वस्ल की जो भी हो अपने
हम हिज्र भी तुम्हारा कर लेते-
Being affirmatively responsive
and sometimes non-responsive
to the triggers including people.-