होठों पर हँसी पर दिल में ग़म तमाम था
इश्क़ करने का बस यही एक अंजाम था-
सूख गये आंसू ये कितने पलकों में रूक कर
बेरहम दुनिया ने इतना सितम ढाया मुझ पर
जी रहा हूँ मैं तो बस सिर्फ जिंदा हूं कहने को
ख्वाब अब मर गए दिल के दम तोड़-तोड़ कर
सोचता हूँ 'कौशल' कि निकल जाऊँ कहीं दूर
'माँ' रोक लेती है मुझको मेरा हाथ पकड़ कर-
हो बड़ा दरिया कितना भी
लहर को किनारे तक जाने से
कौन रोक सकता है
सफर दुर्गम हो फिर भी
मुसाफ़िर को मंज़िल तक जाने से
कौन रोक सकता है.......
टूटना फिर टूटके बिखरना
बिखरने के बाद फिर जुड़ने से
कौन रोक सकता है
मुझको है उम्मीदें खुदसे बेहद
मुझे हद से गुज़र जाने से
कौन रोक सकता है........-
ना हो राब्ता उससे कभी तो ना हो
खुश रहे वो हमेशा हमने चाहा यही
ख़लल सुकून में अगर पड़े उसके तो
ना मिले नज़रें हमसे हमने चाहा यही-
जो कह नही सकता किसी से
कोशिश करता हूं उसे लिखने की
मगर हम कहाँ लिख पाते है ,
उन जज़्बातों को जिन्हें
कहने की नही,
जताने की जरूरत होती है
जरूरत होती है समझने की
उन्हें अपना बनाने की
मगर कहाँ हर बार कोई ऐसा
मिल पाता है जो समझ सके
कह सके कि कहो क्या कहना है
मैं हूँ यहां सिर्फ तुम्हारे लिए
बस इसलिए
कोशिश करता हूं उसे लिखने की........-
रहे किस्से मशहूर बहुत इश्क़ के हमारे
मगर कहानी कोई मुकम्मल हो ना सकी
कर सके मोहब्बत भरे वादे जो मुझसे
इस तरह दीवानी मेरी कोई हो ना सकी-
है जो अब ये सभी उसकी यादों के आने का सबब
तो फिर अब इन सभी तस्वीरों को जला देना चाहिए
कभी तो लगता है जैसे मैं भूला ही नही था उसको
नसीहत मिली कि अब तुम्हें उसको भुला देना चाहिए
कब तलक यूँ निभाते रहोगे अज़नबी फरेबी चेहरों से
जितना जल्दी हो सके इनसे पीछा छुड़ा लेना चाहिए
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सोचा कि जब आखिरी बार मिलूंगा उससे
उसको कुछ पलों के लिये चुराऊंगा उससे
लाख ख्वाइशें नही है मोहब्बत की मुझको
शब-ए-हिज़्र होगी गले जरूर मिलूंगा उससे
अगर कहे कि मुझको भुला देना अब तुम
उसे भुलाने की तरकीब कोई पूछूँगा उससे
अगर रोक ना पाया मैं आसुओं को अपने
तो अंतिम विदाई उसी पल लेलूंगा उससे
वक़्त-ए-रुखसत जो चले वो अपने घर को
कभी न लौट आने को जरूर कहूंगा उससे
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महफ़िल में एक दूजे से मिलने का एक दौर बढ़ा रहा
मैं सबके साथ होने पर भी उनके साथ तन्हा खड़ा रहा
बढ़ते थे लोग जब मेरी तरफ तआरुफ़ करने के लिए
हर एक पल मेरी तन्हाई के गुमान पर खतरा बढ़ा रहा
बैचैन हुआ जब हर कोई रात के आग़ोश में जाने को
मेरा दिल उस वक्त भी इन हसीन चेहरों से चिढ़ा रहा
लोग सारे मशरूफ़ थे हुस्न-ओ-शबाब और शराब में
मुझ पर सारी रात बिन पिये नशा तन्हाई का चढ़ा रहा
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गुज़रे जो हसीन ,सारे ज़माने याद आये
उनके नाज़ुक बदन के पैमाने याद आये
इस शहर की मदमस्त रंगीनियाँ देखकर
मिलन के वो सारे लम्हे सुहाने याद आये
मैं अगर नज़र भर देख भी लूँ किसी को
मोहब्बत के दावों से भरे ताने याद आये
पूछा किसी ने सितम ढाता है कोई कैसे
कातिल नज़रों के वो मैखाने याद आये
सुनाई शायरी यकीनन तुमने भी लेकिन
हम दास्ताँ-ए-इश्क़ सुनाने तेरे बाद आ-