आरंभ ____________________ अंत
इनके मध्य जीवन का षड्यंत्र...-
व्यर्थ में तू हुँकार भर रहा
षड्यंत्र ही षड्यंत्र हो रहा
मौन हृदय सब सुन रहा है.....
अस्थि मज्जा निष्चेत पड़ी है
रक्त धारा देखो जम रही है .....
ये कैसा विलाप हो रहा है
हाहाकार,प्रलाप हो रहा है....
असमंजस की स्थिति है...
कोई नहीं संभाल रहा है
सब अपनी गठरी बाँध रहे हैं
दूजे को ठोकर मार रहे हैं
लाशों के ढेर लग रहे हैं..
राजनीतिज्ञ रोटी सेंक रहे हैं
बड़ा वीभत्स संसार हो रहा है
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अपने हाथो अपनी चिंता का अन्त होता है,
आत्महत्या करना भी एक षडयंत्र होता है।-
मन दुःखी हो उठता है अक्सर,
जब चापलूसों की चपलुसियत से मैं बच भागती हूँ,
जब तिरस्कार करती हूँ ऐसे लोभसनित सुखों का,
जिसमे औरों के श्रम छिपे हो
और वो भद्रजन रचते है षडयंत्र,
कभी अतरिक्त श्रम के बोझ से,
कभी नीचा दिखाने के अवसरों को बनाकर,
कभी दांत चियारकर, कभी आधिपत्य जताकर,
कर रहें होते हैं जटिल पथ का निर्माण,
व्यवस्था भी उनकी ही होती और व्यवस्थापक भी,
मर्जी भी उनकी होती और मतलब भी,
पर मैं टूटी नही बस दुखी होती हूँ,
ऐसे अमानवीय संवेदनायुक्त प्रबुद्धजनों से,
जो भोगे को और भोग्य का अवसर दे,
उत्पन्न करते है निरर्थक, निंदनीय संगर्ष,
जहां न मनुता है न ही पावन विचार,
है केवल सडयंत्र का घिनौना कारोबार..-
जहाँ कुचक्र , धोखा और षडयंत्र का बोलबाला हो वहाँ से सत्य निष्ठा को दूर ही रहना चहीये । सत्य ना कभी शर्मिंदा होता ना ही हारता है । सत्य शाश्वत है । महात्मा विदुर सर्वकालिक प्रासंगिक उदाहरण है ।
प्रणाम 🙏
सत्य प्रकाश शर्मा "सत्य "-
न चूजा न चिड़िया महफूज इस दौर में
जब तक हैं आजाद शिकारी इस दौर में-
उठो द्रोपदी वस्त्र संभालो अब गोविंद न आएंगे
छोड़ो मेहंदी भुजा संभालो,स्वयं ही अपना चीर बचालो
द्यूत बिछाये बैठे शकुनि मस्तक सब बिक जाएंगे
उठो द्रोपदी वस्त्र संभालो अब गोविंद न आएंगे
कब तक आस लगाओगी तुम बिके हुए अखबारों से,
कैसी रक्षा माँग रही हो दुशाशन के दरबारों से
स्वयं जो लज्जाहीन पड़े हैं वे क्या लाज बचाएंगे
उठो द्रोपदी वस्त्र संभालो अब गोविंद न आएंगे
कल तक केवल अंधा राजा अब गूंगा और बहरा भी है
होंठ सील दिए जनता के , कानों पर पहरा भी है
तुम्ही कहो ये अश्रु तुम्हारे किसको क्या समझायेंगे
उठो द्रोपदी वस्त्र संभालो अब गोविंद न आएंगे
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इस दौर में चूजों के साथ चिडिया को भी उडना चाहिए,
पता नही कोई जालसाज़ और कोई गिद्ध घात लगाए हो।-
मुंह में राम बगल में छुरी।
छल- बल
और
षडयंत्र- शोषण
से रिश्ते निभाने वाले लोग
जीवन भर दुःख के साए में
जीते हैं व दूसरों के खुशियों से सदा
जलते रहते हैं अहंकारवश
वातावरण में ईर्ष्या- द्वेष
कुटिलता फैलाते रहते हैं।
ऐसे विवेकहीन लोग दुःख के
पोषक होते हैं।— % &-
'षडयंत्र' असे यंत्र
आहे की, ज्या मध्ये
सुड, असूया, तिरस्कार
यांचे 'वंगण' टाकले की
ते अधिक वेगाने धावते.-