Suman Swamini   (स्वामिनी,)
1.9k Followers · 901 Following

read more
Joined 28 December 2018


read more
Joined 28 December 2018
27 APR AT 17:16

पारस सी तासीर है मेरे मेहबूब की ...
पत्थर भी छूआ है तो सहमे - सहमे...

-


24 APR AT 13:34

परछाई है याद अंधेरे में भी रहती है ।
भरम हमारे है देखी अनदेखी करते हैं ।

-


24 APR AT 13:27

ना मुड़कर देख मेरे हमसफ़र सफर में ,
पीछे छूट गयी तेरे संग चलते -चलते।

-


18 APR AT 21:20

सूदूर लक्ष्य रहा मेरा,एकाकी हूँ प्रवास में ...
मिले चिह्न अपरिचित, परिचय की आस में...

-


16 APR AT 8:05

एक उड़ान तन की थी , एक उड़ान थी मन की....
तन उड़ कर उड़ ना पाया मन सप्तांबर छू आया।

-


14 APR AT 12:02

आकंठ डूबी प्रेम में मीरा कित जाए ।
राधा रुक्मिणी के संग बैठत लजाए।

-


12 APR AT 19:44

गौरेया का एक दल
बैठा पेड की ऊंची डाली पर ...
देख रहा चिंतित सा बैसाख बीत गया
अब जेठ आने को है ..
तपन बढ गयी है नदियाँ सूख गयी
कहाँ खोजे दाना ,कहाँ मिलेगा पानी
संकरित दाने है तो निर्मल नहीं है पानी
कुछ दिनों का जीवन पंछी का है
उड़ान है किंतु कहाँ पहले सी रवानी
टहनी- शाखे- डाल पहले सी मजबूत कहाँ
हर आंधी जो सहती थी ऐसी वो नीव कहाँ
नीड़ बनाने को अब तिनके मिलते नहीं
पहले से दूब -तृण हरियाले खिलते नहीं
एक डाल करें बसेरा हम भिन्न होकर
गौरेया बुलबुल कबूतर कोयल।
समझो अगर तो समझ जाओ
तुम बढ चले लेकिन हमें ना मिटाओ
जेठ में बिजली की तारें और भी गरमाती है
एक बूंद पानी के चिड़िया प्यासी मर जाती है ।
छत पर दाना रखना सिकोरी में पानी
देंगी दुआ मौन रह फुदकती गौरेया रानी ।

-


11 APR AT 14:02

जानते हो ... कुमार
तुमसे मिलने के बाद
रिक्तता की गहरी खाई होगी
जिसे पाटना मेरे वश में ना होगा
और ना उसे समय पाट पाएगा

-


10 APR AT 13:46

जो दिल की बात है दिल में रह नहीं पाती है ।
आंखों से छलकती ,अधरों पर मुसकाती है ।

-


10 APR AT 12:42

मैं जानती हूँ ये केवल दीप की लौ है जो पूजास्थल में प्रज्वलित है लेकिन क्यों लगता है
वो मुझे देख रहा है ....
जो मेरे विरह के अंधेरों से
यह भी समझती हूँ
हवा इसका काम ही निरंतर चलना है फिर क्यों लगता है
वो मुझे छू रहा है
मुझसे लिपटी तेरी चुनर की छोर से ...
यह भी भलिभांँति जानती हूँ...
कि ना धरती आकाश का मिलन हैं
न चंद्र चकोर का विरह, ना चातक स्वाति की बूंद ,ना सीप और मोती ..
यह सब विज्ञान का रचा खेल है ।
जिसे हम अपने नजरिये से देखने लगे हैं
मिलन मिथक , विरह शाश्वत प्रेम -प्रतीक्षा ,समंदर -नदिया, जीव -प्राण आत्मा- देह मोक्ष और भटकन,
ना जाने कितने विषय में
हम फंसे है
होनी अनहोनी कुछ नहीं है सब समय की शक्ति चलायमान है तुम और मैं
फिर भी तुम तक चली आती हूँ ।
फिर आस निरास के अश्रू से नम पलकें ले लौट जाती हूँ,
अब के जो जा रही हूँ, फिर ना लौट पाऊँगी
....ना लौट पाऊँगी

-


Fetching Suman Swamini Quotes