Suman Swamini   (स्वामिनी,)
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Joined 28 December 2018


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23 SEP AT 15:00

वो खुदा के नजरिए से देखता है मुझे.. ।
वरना मैं क्या, माटी क्या और मूरत क्या।

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20 SEP AT 15:19

मेरे महबूब को यह भी हुनर आता है ।
जुदाई के बाद याद कर मुस्कुराता है।

दिल टूटा है लेकिन दर्द जताता नहीं
वो हर वक्त औरों को हंसना सिखाता है।

कोई पूछेगा नहीं हाल बेफिक्र रहना ..
बेमतलब क्यों आंसूंओं को छिपाता है ।

किसने कहा दिल टूटे तो दुनिया छोडो
देख मुझे, यहाँ पर कैसे जिया जाता है।

परिंदे मासूम है आंधी से दुश्मनी नहीं
एक घोंसला गिरा तो दूसरा बनाता है ।

कुछ बोलो नाराजी है , मौन नहीं है ।
बेदर्द समय विरहा के गीत गाता है ।

नदी की प्रतीक्षा में लहर लहर दौडता
समंदर आगे बढता और लौट जाता है।

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19 SEP AT 19:46

किस्मत की बात करें तो बेबसी नजर आए है।
हम ऐसे है जो खुद अपनी मंजिल ठुकराए है।

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19 SEP AT 19:40

उसने पूछा कलम या मैं ...
चुनो, दो पर्याय है ।
लेकिन एक चुनना होगा।
मुझसे कलम ना हाथ से छोडी गयी ,
और वो हाथ छुड़ा कर चल दिया .....

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17 SEP AT 23:28

गम की रात बढ रही थी अंधेरा लिए हुए ।
उम्मीद के जूगनू संग मेरे कारवां लिए हुए ।

हवा की नादानी से पत्ते गिरे हैं शजर से
पतझर में भी जीएं जो हौसला लिए हूए ।

उस दरवाजे पर दस्तक जरूर देना अपनी
जहाँ आंगन जागे याद का सपना लिए हुए ।

एक घर एक गाँव ,एक नदी , एक पीपल, एक मंदीर
सबने लिखी चिठ्ठी तुझे बैरंग पता लिए हुए।

मंज़िल पे पहुंच ना पाऊँ तो कोई बात नहीं
घर से निकली हूँ तेरे घर का पता लिए हुए।

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16 SEP AT 17:39

माटी की मूरत को हंसना आ गया।
कुम्हार ने छुआ तो जीना आ गया।

बादल टकराया कीकर के पेड से
कांटों की चुभन से रोना आ गया।

नन्ही गिलहरी खिड़की पर आयी
तुमसे मिलने का बहाना आ गया।

डोर उसने थामी पतंग की आकाश में
कागज के टुकड़े को उडना आ गया।

नदिया बह निकली सागर की ओर
उसे रोकने नासमझ जमाना आ गया।

तुम लौटकर जरूर आना मुझ तक
बिन वादें के इश्क निभाना आ गया।

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16 SEP AT 17:30

बुझती लौ फिर जागी है ,हवाओं जरा धीमे से बहना।
घर से बाहर भी दीवारें है हर कदम सोच कर रखना।

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14 SEP AT 22:24

कोई रूठ जाए तो मना लिया करों ।
प्यार हो दिल में तो जता दिया करों ।

छोटी सी जिंदगी है जाने कहां ठौर हो ।
इस जिंदगी में सदा खुशियों का दौर हो।
दर्द और गम को ना पता दिया करों ।
कोई रूठे तो मना लिया करों

उम्मीद की एक लौ बुझती नहीं कभी
पलकें दूजी पलकों से लगती नहीं कभी
छोड़ कर जाओं हमें तो बता दिया करों
कोई रूठे तो मना लिया करों ।

सारी रातें सितारें टूटे नीले आसमां से
सुबह मांगे सूरज तो कहां से लाऊँ
प्यार से माफ मेरी हर खता किया करों।
कोई रूठे तो मना लिया करों।

कोई रूठ जाए तो मना लिया करों ।
प्यार हो दिल में तो जता दिया करों

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14 SEP AT 12:28

हिन्दी में अकड़ नहीं , ना हिन्दी अभिमानी।
हिन्दी में सहजता है, हिन्दी स्वाभिमानी।

तुमने बांटी है जमीनें, तुमने ये देश बनाए है
हो सके तो पेड़ भी बांटों मुश्किल में हवाएं हैं।
शीतल समीर हिन्दी है नहीं हवा ये तुफानी ।
हिन्दी में सहजता है, हिन्दी स्वाभिमानी ।

तुमसे मिली तो तुम जैसी सरल हो गयी
बिछडी जो कभी पानी जैसी तरल हो गई
सभी को दे वरदान माँ शारदा सी वरदानी ।
हिन्दी में सहजता है, हिन्दी स्वाभिमानी ।

शब्दों को रोको ,रोंको स्वर की लहरों को
वर्णमाला को छुपा दो ना कोई गाए गीतों को
कर के देख लो तुम , मगर होगी यह नादानी ।
हिन्दी में सहजता है हिन्दी स्वाभिमानी ।

हिन्दी में अकड़ नहीं , ना हिन्दी अभिमानी ।
हिन्दी में सहजता है, हिन्दी स्वाभिमानी ।

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5 SEP AT 14:28

खुद से बिछडने का अहसास रहा
इस भीड़ में तू ही दिल के पास रहा।

मुझे सतरंगी कर दिया उस रंगरेज ने
खुद ता उम्र जो दूधिया कपास रहा।

मुस्कुराउठे जो कभी अनजाने से
फिर पहरों दिल मेरा उदास रहा।

किस गांव में ठौर हुआ बंजारों का
कहाँ दरिया नदी के आस पास रहा।

तमाम पैरहन बदले उस जिस्म ने
और मन से जोगिया लिबास रहा।

टूटे उसके लिए, बने जिसके लिए
वो हमनफस मेरा कुछ खास रहा।

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