बचपन
तुम औत्सुक्य की अविराम यात्रा हो,
पहचानते हो, ढूढ़ते हो रंग-बिरंगापन
क्योंकि सब कुछ नया लगता है तुम्हें।-
लाखो शक्लो के मेले में,
तन्हा रहना मेरा काम,
भेस बदल के देखते रहना,
तेज हवाओं का कोहराम...
एक तरफ आवाज का सूरज,
एक तरफ है गूंगी शाम,
एक तरफ जिस्मो की खुशबू
एक तरफ उसका अंजाम...
बदल गई अब रीत पुरानी,
खत्म हुई राजा की कहानी,
अब से ऊपर खुदा का नाम,
उसके बाद है मेरा नाम...
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नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं 💐
नए वर्ष में
आपका जीवन उल्लास और जीवंतता से भरा रहे !
रंगीनियाँ आपकी आपके परिवार की सहचरी बनी रहें !
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बितते साल तुझे ये तो पता ही होगा,
किन ख़यालों में तुझे काट दिया है, मैंने
'अच्छा रखती हूं!कॉल' तुझे कहते हुए लगता है,
कितने हिस्सो में खुद को बाँट लिया है मैंने...❣️-
असफल जीवन की हर घुटनभरी
परिस्थितियांही सींच सीच मेरे
भीतर एक विशाल कल्पवृक्ष
का रुप ले रही है..
जब असहय हो जाती है
ह्दय की वेदना
तो उसकी एक पात बाहर ला
मुक्त कर देती हूँ
हवा में और वह कविता
बन अवतरित हो उठती है ...-
प्रेम में देने को कुछ शेष नहीं बचता...
क्योंकि अपना अंतःकरण ही हम सौंप चुके होते है...
सौंप चुके होते हैं ईमान...
कदमों मे कर दिये होते अर्पित अपना अहं...
अपना स्वाभिमान और स्वयं को भूलकर...
स्वयं से छूटकर...
उसका होकर तब चाहते है हम किसी को...
फिर टूटेपन में क्या शेष रह जाता है हमारा...
हाँ जो रहता है वह...
उसका हममे समाहार...
स्वयं के रुप में एक छवि जो अपनी नहीं रह जाती...
और फिर अपरिचित को अपने भीतर ढ़ो रहे होते हैं आजीवन...
अन्त तक....-
मुद्दतों बाद तो तुम मिले हो...
ऐसे कैसे जाने दे..
यकीनन थोड़ा मुश्किल ज़रुर..
पर नामुमकिन नहीं..
पर अभी आंधियों में ..
घर छोड़ शहर को निकले है..
वहाँ भी पहुँचा दे थोड़ा उजास..
जहाँ तम सिवा न कुछ और दिखे है...-