यूँ अधर मे छोड़ कर तुम,
यूँ चले जाओगे एक दिन,
मै खड़ा रह जाऊंगा तन्हा।
ये नही सोचा था उस दिन,
ये नही जाना था उस दिन ॥तुम अधर मे छोड़ कर यूँ
॥1॥
तेरी हंसी था गहरा समंदर,
और डूब कर जीवन बना था।
फ़िर दर्द की इन्तहां होगी,
ये नही सोचा था उस दिन ॥ तुम अधर मे छोड़ कर
॥2॥
साथ चलने का था वादा,
बन के छाया उम्र भर का,
तपिश मे छाले पड़ेंगे।
ये नही सोचा था उस दिन ॥तुम अधर मे छोड़ कर यूँ
॥3॥
प्रेम की तश्वीर लेकर,
राह मे जब तुम मिले थें,
उस चित्र मे विष भी छिपा था।
ये नही सोचा था उस दिन ॥ यूँ अधर मे छोड़कर. .. .
सत्य प्रकाश शर्मा "सत्य "
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A published poet and author.
My book "च... read more
🌧गीत 🌧
॥भाव :- प्रेम--- एक अनुभूति हर पल की॥
ढूंढता हूं मै तुम्हे , प्रिये
हर पुष्प मे हर पात मे, अब
पूछता हूँ नाम तेरा
झूलती हर शाख से , अब ,॥ ढूंढता हूं मै तुम्हे. ..
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जीवन दर्शन मेरी नज़र से. ..
विद्वत्वं च नृपत्वं च नैव तुल्यं कदाचन।
स्वदेशे पूज्यते राजा विद्वान् सर्वत्र पूज्यते।।
समझो और अपनाओ — एक विद्वान और एक राजा की कभी कोई तुलना नही हो सकती है। राजा का मान सम्मान अपने राज्य तक सीमित रह जाता है परंतु विद्वान और गुणी साधारण व्यक्त्ति जहाँ भी जाता है वहीं अपने गुणों के कारण सम्मान पाता है।
अच्छे बने सच्चे बने
प्रणाम 🙏
सत्य प्रकाश शर्मा "सत्य "-
🌹 ग़जल 🌹
हरेक आँसू को अपने पी लिया मैने ।
ख़ुशी ख़ुशी जिंदगी को जी लिया मैने॥
तेरी ख़ुशी मे अपना ग़म हमे कहाँ याद रहता है ।
तेरे जश्न मे आकर खुद को भूला दिया मैने॥
सफ़र मे कुछ दोस्त ऐसे भी तों मिले है ।
दग़ा मिला जिनसे उनको भुला दिया मैने॥
कर्जदार की तरह सूद मे खुशिया देता रहा मुसल्सल ।
इस तरह ग़मों के साथ व्यापार कर लिया मैने ॥
जो हुआ अच्छा हुआ जानता हूँ "सत्य" ।
हुई रहमत खुदा की तों सर झुका लिया मैने ॥
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बेटियों के अनुत्तरित प्रशन
बेटे और बेटियाँ
वैसे तो बराबर है
पर बेटियों के होने पे
माताएं
गीत नहीं गाती है।
दोनो हीं बराबर है
तो पूछती है बेटियाँ
हर परीक्षा में
बेटियाँ अव्वल क्यूँ आती है ॥
(पूरी रचना caption में पढ़े )-
चरित्र, परिपक्क्वता, मित्रता ,विस्वसनियताऔर प्रेम की असली परीक्षा हमेशा प्रतिकूल समय में ही होती हैं। वरना यू तो सभी सच्चे प्रेमी भी है और अच्छे मित्र भीे ।
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चरित्र, परिपक्क्वता, मित्रता ,विस्वसनियताऔर प्रेम की असली परीक्षा हमेशा प्रतिकूल समय में ही होती हैं। वरना यू तो सभी सच्चे और अच्छे है।
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रात भर एक टक रहा,पपीहे की मानिंद,
वो इक तारा, जो शशि के करीब था ,फिर
कब बीत गई ,खबर कहाँ हुई ?वो बोलती गयी
"सत्य" सुनो जी ये "पूनम" की रात हैं......-
(सत्य वचन)
।।हम जितना अपने भीतर गहराई ने उतर जाते हैं उतने ही हम सहज और प्रसन्न होतेे हैं । यही राज़ हैं हमारी आन्तरिक प्रसन्नता, स्थायी सुख और आनंद पूर्ण जीवन का।।
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(मेरी पुस्तक कविता संग्रह "चलना ही जीवन हैं....." से)
रे बसंत!
तू है अनंत।
प्रकृति का सौन्दर्य
और धरती का श्रृंगार,
निराकार का आकार ,
सुंदर स्वप्न हुआ साकार।
नव चेतना ,नव शक्ति श्रोत,
रस ,रूप ,गंध, सुगंध नई ,
खुशियों से ओत प्रोत,
नवजीवन की पुनः चेतना
नीरसता का
हैं तू अंत।
रे बंसत।
तू हैं
अनंत।
रे बसंत
युवती षोडस के गोल कपोल
होठो पर खिलते
प्रेम बोल
ये कैसी हैं तेरी अद्भुत चाल
कामदेव के तीव्र तीर को
मखमली सी कोमल ढाल !
अद्खिली कलियों की लालिमा से लिखी हुयी
रूपसी का
प्रेम पाती आमंत्रण
प्रेमी
की आशातीत प्रतीक्षा का
हैं तू अंत
रे बसंत ।
रे बसंत
तू कितना सुखद आत्मीय गीत हैं
हृदय की धडकन
कोयल की कूक में
प्रियसी की
हूक हैं।
तू मन का मीत हैं।
पायल की झंकार
कलियों की मुस्कराहट का नगमा
होठों के मिलन का सुखद संगीत हैं ।
पतझड़ के नीरस विरह की कसक
की आह पर एक सुखद आलिंगन
आत्मा का सौन्दर्य में लिपटा हुआ
कवि का" सत्य" गीत
चीड़ के नीड़ से झंकृत संगीत हैं तू।।
हरी भरी वसुंधरा निखरा हुआ व्योम है
नव कोपलो की हरीतिमा
पुष्प रंग अनंत हैं
इस इन्द्रधनुषी श्रृगार को
प्रणाम कोटि अनंत हैं
तू अद्भुत हैं
निर्मल हैं
सजीव हैं
ईश्वर के विराट रूप की सुंदरतम
रूप गाथा
हैं तू अनंत
रे बसंत।
तू हैं अनंत।।।।
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