दुग्ध श्वेत तुहीन चादर पर
स्वर्णिम सूर्य किरण सी तुम
नभ आच्छादित मेघ में बसी
स्वच्छ निर्मल बिन्दु सी तुम
लक्ष लक्ष तारामंडल से
उच्छ्वसित प्रकाश हो तुम
तुम पर निर्भर परिक्रमा-
धरा की; वो धुरी हो तुम-
तू बाँट चाहे केसरिया के नाम
या कर जेहाद हरे की ओट में
दोनों को जोड़कर एक कर दूं
तभी मैं श्वेत हूं तिरंगें के बीच में !!-
वक्त के कांटो पर
सुख दुख के धागों से
श्वेत पैरहन पहना गई
जिंदगी बिना मेरी इजाज़त के-
कई मुखौटे रखे हैं मेरे पास
जब जरूरत पड़ती है लगा लेती हूँ
ये परिस्थियों पर निर्भर है
कि मुखौटा कौन-सा हो
लगाकर प्रेम का मुखौटा
सभी को अपना बना लेती हूँ
मुखौटों का नही करती
गलत उपयोग अब मैं
उससे किसी के आंगन का
दीप भी जला देती हूँ
कभी रंग श्वेत का तो
कभी इंद्रधनुषी रंग
मैं मुखौटे पे अपने चढ़ा देती हूँ
कभी रंगती हूँ उसे खुशियों के रंग में
तो कभी तिरंगे के रंगों में उसे डूबा देती हूँ 🇮🇳-
केसरिया मेरी चुनर,हरी है लाज
श्वेत सी मैं,पवित्र,नीली मेरी छाप।
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प्रेम जिस्म से तो नहीं,
रूह से भी किया हैं
फिर प्रेम को रंगों के लिबासों में
प्रतिबंधित क्यो किया हैं
रंगों की रस्में नहीं ,
रूहानी प्रेम को निभाते हैं
चलो अपने प्रेम को
श्वेत और सुर्ख रंग से परे
रूहानी सतरंगी रंगों से सजाते है
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लम्हा एक
ठिठक गया
सिमट गया छुईमुई सा
जैसे धोके से छू गया हो उसे
कोई अनचाहा स्पर्श
जैसे किसी श्वेत चादर को
मलिन कर गया हो...
किसी पल, किसी वक़्त को
कोई गिरफ़्त में ले सका है क्या?-
संतों का ज्ञान न सुने तो,
साधुओं की आपबीती सुन ले;
आखिर तपस्या की धूप में,
जल कर श्वेत लिबास, भगवा हुआ है ।।-