मनमौजी   (मनमौजी)
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Joined 26 December 2018


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13 JUL AT 22:29

तुमने पिंजरा तो खुला छोड़ दिया है लेकिन
माफ़ करना मैं अब आज़ाद नहीं हो सकता

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7 JUL AT 7:23

छू के लौट आऊँगा बुलंदी को
माँ का अरमान है समझते हो

ग़ज़ल केप्सन में ….

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23 JUN AT 23:45

तुझ को पाने का हर इक जतन कर लिया
थक के नियति को अपनी नमन कर लिया
जब अधर तेरी तृष्णा से व्याकुल हुए
हमने यादों का फिर आचमन कर लिया

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15 JUN AT 23:06

फिर यूँ हुआ कि छत मेरे कंधे पे आ गिरी
फिर यूँ हुआ कि बाप का साया चला गया

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9 JUN AT 15:30

धरोहर है ये दिल खंडहर हमारा
महल था ये किसी राजे श्री का

इलाही माफ़ करना हो सके तो
किया है पेशतर सज़दा किसी का
ग़ज़ल केप्सन में …..

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26 MAY AT 20:14

बताओ क्या करूँ तिश्ना-लबी का
कहो तो थाम लूँ दामन नदी का

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21 MAY AT 7:37

अपने अपनों को अपना बनाते हुए
थक गया हूँ मरासिम निभाते हुए

मुझ से दर्द ए मुहब्बत का गिर्या न कर
रो पड़ूँगा तुझे चुप कराते हुए

एक दो बार रसमन उछाला भी था
मौज ए दरिया ने हमको डुबाते हुए

कैसे रुक पाएगा टूटी गगरी में जल
मैंने सोचा भी था तुमको पाते हुए

उसको पाने की ख़ातिर उसी से लड़े
फिर विदा कर दिया मुस्कुराते हुए

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17 MAY AT 0:29

मैं तो इसका फ़क़त मुहाफ़िज़ हूँ
दिल के कमरे पे हक़ तुम्हारा है

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9 MAY AT 12:35

ज़रा ठहर कि मैं जी भर के देख लूँ तुझ को
बिछड़ रहे हैं दुबारा मिलें, मिलें ना मिलें

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1 MAY AT 17:11


ख़ुदसर हैं,ख़ुद ग़रज़ भी हैं ‘मौजी हक़ीक़तन
वैसे नहीं हैं जैसे तेरे वास्ते रहे

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