मनमौजी   (मनमौजी)
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Joined 26 December 2018


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23 AUG AT 22:48

शाइरी से ज़ख़्म की तुरपाइयाँ अच्छी लगीं
आह-ओ-ज़ारी के इवज़ में तालियाँ अच्छी लगीं

ख़ुद का बेटा हाथ से निकला तो अपने आप पर
बाप की आँखों की पहरेदारियाँ अच्छी लगीं

आलम ए दुनिया से कट कर ख़ुद से बावस्ता हुआ
इस लिए भी भीड़ से तनहाइयाँ अच्छी लगीं

हम ही सादा थे लगा बैठे थे उम्मीद ए वफ़ा
आप को तो जिस्म की गोलाइयाँ अच्छी लगीं

आप ‘मौजी’ प्यार के सपने सँजोने लग गए
मुझ को तो बस आपकी अच्छाइयाँ अच्छी लगीं

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14 AUG AT 22:21

ख़ुद का बेटा हाथ से निकला तो अपने आप पर
बाप की आँखों की पहरेदारियाँ अच्छी लगीं

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31 JUL AT 23:17

आशिक़ मिज़ाज हो के भी हमने तुम्हारे बाद
दिल क्या किसी को दिल का इमोजी नहीं दिया

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29 JUL AT 0:12

राजस्थानी ग़ज़ल

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18 JUL AT 23:53

जितने एहसान थे उतारे गए
हम बड़ी सादगी से मारे गए

क्या अजब है कि बज़्म ए उल्फ़त में
हम तेरे नाम से पुकारे गए

पहले तैराकी का हुनर आया
फिर मेरे हाथ से किनारे गए

जाने को और भी जगह थी बहुत
जाने गर्दिश में क्यों सितारे गए

मुफ़्लिसी का गुमान रखने को
पाँव चादर में ही पसारे गए

मेरे ख़ेमे में जो मुजाहिद थे
सब के सब हादिसों में मारे गए

जो तेरे साथ दिन गुज़रने थे
वो तेरी याद में गुज़ारे गए

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13 JUL AT 22:29

तुमने पिंजरा तो खुला छोड़ दिया है लेकिन
माफ़ करना मैं अब आज़ाद नहीं हो सकता

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7 JUL AT 7:23

छू के लौट आऊँगा बुलंदी को
माँ का अरमान है समझते हो

ग़ज़ल केप्सन में ….

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23 JUN AT 23:45

तुझ को पाने का हर इक जतन कर लिया
थक के नियति को अपनी नमन कर लिया
जब अधर तेरी तृष्णा से व्याकुल हुए
हमने यादों का फिर आचमन कर लिया

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15 JUN AT 23:06

फिर यूँ हुआ कि छत मेरे कंधे पे आ गिरी
फिर यूँ हुआ कि बाप का साया चला गया

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9 JUN AT 15:30

धरोहर है ये दिल खंडहर हमारा
महल था ये किसी राजे श्री का

इलाही माफ़ करना हो सके तो
किया है पेशतर सज़दा किसी का
ग़ज़ल केप्सन में …..

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