शाइरी से ज़ख़्म की तुरपाइयाँ अच्छी लगीं
आह-ओ-ज़ारी के इवज़ में तालियाँ अच्छी लगीं
ख़ुद का बेटा हाथ से निकला तो अपने आप पर
बाप की आँखों की पहरेदारियाँ अच्छी लगीं
आलम ए दुनिया से कट कर ख़ुद से बावस्ता हुआ
इस लिए भी भीड़ से तनहाइयाँ अच्छी लगीं
हम ही सादा थे लगा बैठे थे उम्मीद ए वफ़ा
आप को तो जिस्म की गोलाइयाँ अच्छी लगीं
आप ‘मौजी’ प्यार के सपने सँजोने लग गए
मुझ को तो बस आपकी अच्छाइयाँ अच्छी लगीं-
बहाना कर रहा हूँ शायरी का
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'अज़ीम लोग थे टूट... read more
ख़ुद का बेटा हाथ से निकला तो अपने आप पर
बाप की आँखों की पहरेदारियाँ अच्छी लगीं-
आशिक़ मिज़ाज हो के भी हमने तुम्हारे बाद
दिल क्या किसी को दिल का इमोजी नहीं दिया-
जितने एहसान थे उतारे गए
हम बड़ी सादगी से मारे गए
क्या अजब है कि बज़्म ए उल्फ़त में
हम तेरे नाम से पुकारे गए
पहले तैराकी का हुनर आया
फिर मेरे हाथ से किनारे गए
जाने को और भी जगह थी बहुत
जाने गर्दिश में क्यों सितारे गए
मुफ़्लिसी का गुमान रखने को
पाँव चादर में ही पसारे गए
मेरे ख़ेमे में जो मुजाहिद थे
सब के सब हादिसों में मारे गए
जो तेरे साथ दिन गुज़रने थे
वो तेरी याद में गुज़ारे गए-
तुमने पिंजरा तो खुला छोड़ दिया है लेकिन
माफ़ करना मैं अब आज़ाद नहीं हो सकता-
तुझ को पाने का हर इक जतन कर लिया
थक के नियति को अपनी नमन कर लिया
जब अधर तेरी तृष्णा से व्याकुल हुए
हमने यादों का फिर आचमन कर लिया-
धरोहर है ये दिल खंडहर हमारा
महल था ये किसी राजे श्री का
इलाही माफ़ करना हो सके तो
किया है पेशतर सज़दा किसी का
ग़ज़ल केप्सन में …..-