बताओ क्या करूँ तिश्ना-लबी का
कहो तो थाम लूँ दामन नदी का-
मुझे शायर बनाया है किसी ने
———————————————
मैंने लिखी सिर्फ़... read more
अपने अपनों को अपना बनाते हुए
थक गया हूँ मरासिम निभाते हुए
मुझ से दर्द ए मुहब्बत का गिर्या न कर
रो पड़ूँगा तुझे चुप कराते हुए
एक दो बार रसमन उछाला भी था
मौज ए दरिया ने हमको डुबाते हुए
कैसे रुक पाएगा टूटी गगरी में जल
मैंने सोचा भी था तुमको पाते हुए
उसको पाने की ख़ातिर उसी से लड़े
फिर विदा कर दिया मुस्कुराते हुए-
ज़रा ठहर कि मैं जी भर के देख लूँ तुझ को
बिछड़ रहे हैं दुबारा मिलें, मिलें ना मिलें-
ख़ुदसर हैं,ख़ुद ग़रज़ भी हैं ‘मौजी हक़ीक़तन
वैसे नहीं हैं जैसे तेरे वास्ते रहे-
तूफ़ाँ का ख़ौफ़ दिल में कुछ ऐसे समा गया
पत्ते हवा की जुंबिशों से काँपते रहे-
तुमने तो ख़ैर,मुझे ख़ैर नहीं बख़्शी पर
जिंदगी तुमसे बहुत प्यार किया है मैंने-
माहिया पंजाब प्रांत का एक लोकप्रिय गेय छंद है इसे टप्पा भी कहते हैं ये मुख्यतः लय पर आधारित होता है पहली बार माहिया का प्रयास किया है कुछ माहिया आपकी नज़्र……..चाहें तो इन्हें इन धुनों पर गुनगुना सकते हैं….(राम तेरी गंगा मैली) हुस्न पहाड़ों का…….(नया दौर) दिल ले के दग़ा देंगे यार हैं मतलब के…….🙏
-
माँगनी पड़ती है रक़ीब की ख़ैर
जान की जान है,समझते हो ?
ख्वाहिशों की चिताएँ जलती हैं
दिल में शमशान है समझते हो ?-