उलझन
उलझ-उलझ के उलझनों में,
कई हवाइयाॅ उड़ाई जाती है,
तिनके भी छोड़ दे जमी,वो
पीली सी इक राख उड़ाई जाती हैं,
गीली सी वही जाल बिछाई जाती हैं,
जिसमें परिंदे भी फसते हैं,
मुकम्मल तिनके की तलाश में,
कोई अपनों की आश में,
तो कोई अपनी ही आश में,
फँसता है हर वो शख्स ,
पहचानता जो खुद को नहीं,
कोसता है परछाई को,
खुद ,गुनाहगार समझ के,
तब,
वक्त बदलाव चाहता है ,,,
हाँ तुमसे और सिर्फ तुमसे।।।।।।
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✔Passionate dancer💃💃💃
✔singer ...🎤🎶
✔I love yoga🙌🙌🙌
✔Astrologer.... read more
महाकाली
सृष्टि की उपज से धरती की समझ तक,
कैलाश स्वामिनी,मृदुभाषीनी, तुम ही पार्वती हो माॅ,
गजकेसरी जैसा ऋंगार, चमक हैं परलौकिक,
उद्गम से अंत की, तुम ही आधारशिला हो माॅ,
कण-कण में सुशोभित, कांति सती जैसी,
दुर्जन से सज्जन की ,उपवासक हो माॅ,
मैं तेरी माटी की इक कण,
निष्ठूर हो चली हूँ,
मुझमें प्राण फूंक दो माॅ। ।
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नाकाम हुई कोशिश तारीफें हजार करके,
और फिर तुम गजलों में,
हम मयखाने में बैठे हैं,,,-
सिलसिले तामिर की चिंगारी फेक रही हैं,,
पिछले जन्म के पाप, धोनी पड़ रही है,,,,
रगड़न तकलूफ के सीने में हमारे,,,,
नाजानू कैसी खुशनसीबी के हूँ सहारे ,,,,,-
ख्याल तेरे ख्यालों की तरकस पर सवार ,
गुमनामी की तरफ गुम हूँ,
वासुंदी हकीकत अजीब हूँ,
सराफत की तलवार लिए हुए,,,,
हूँ ज्योति पर स्पर्श विहीन हूँ।-
हूँ सुकून बेगैरत दिल के इरादों की,
कमी बन जाती हूँ, खुद के सलाखों की,
ना हमसे तालुक रखना, ऐ मेरे दोस्त,
इबादतन मैं भी फरियाद कर लेती हूँ,
खालिस्तान के शाखों की,,,,,,,-
कुछ कदमों की दूरियों में,
हमने फासले कई तय किए हैं,
जज्बाती हैं मेरी बातें,
वो सारे तुमने सुने हैं,,
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दीमक की काली राख से,
चाहते हो रंगना मुझे,
पर उभरा हैं चेहरा तेरा,
जैसे तना-तनी हो कपास पे,
पीला पड़ गया ये श्रृंगार तेरा,
मेरी विनम्र हरी घास पे,
फिर से वेदना की,, हो कसौटी,
बस ये अमृत-पान हो विराम से,,,
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कुछ शुन्य जिंदगी में, वक्त के साथ आता हैं,
फिर ना इंकार होता हैं, ना इजहार होता हैं,-
चुनाव अविरक्त सा द्वीभावों में उतपन्न हो गया हैं,
हवाएँ गुमान भरी पर अल्फाज़ो में अकड़न हो गया हैं,,-