गांवों के खेतों में जब हरियाली झूम उठी।
गोरी भी खुश होकर गेहूं बाली को चूम उठी।
सूरज की पहली किरण पूरब से फूट पड़ी,
सजनी की आंखें भी तालों पे ना उठी।
बैलगाड़ी को लेकर साजनवा निकल पड़े,
हाथों में गागर ले गोरी पनघट पे चल पड़ी।
सजनी की आंखें उठी वो पहुँची खेत पर,
"शादाब" है नजारा, हरियाली झूम उठी।
साजन जब आया तो खुद पे इठलाकर,
बागों की कलियां भी हंस-हंसकर झूम उठीं।
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क्या मिला हमे खराब होके
एक उलझा हुआ जवाब होके
वैसे तो गुड़ की कोई कद्र नही करता
किमत बढ़ जाती है शराब होके
जीना तो छोड़िये सांस भी न ले पाओगे
एक दिन तो देखो शादाब होके
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कितना हसीं है मौसम कितना हसीं सफ़र है
शादाब हर शजर हैं खुदा की ये मैहर है-
मेरी तपिश आफ़ताब सी , वो मुझमें महताब सी ,
मैं मंजर बंजर सा , वो मुझमें शादाब सी ।।
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उदासी में भी, आबाद रहता है;
ये दिल, तेरी यादों से शादाब रहता है।-
शादाब -ओ-शगुफ़्ता रहे गुलशन यूँ तुम्हारा,
काफी है मेरी आँखों को सावन का सहारा,
मुबारक हो तुम्हें अपने सपनों का ये जहां,
तुम्हारी यादों से ही रहेगा रौशन घर हमारा।-
इज़्तिराबी रातें,बेचैन से ख़्वाब
मामूली से हम,आप नायाब
मुंतशिर से पलों को पिरोते है हम
जाने कब हो जाए दिल का मौसम शादाब!!-
फ़ज़ा में भी रंगकारी बेहिसाब हो जाएगी।
जब कलियां फूल हो जायंगी,शादाब हो जाएंगी।-
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किसी की झलक को हैं बेताब हम भी
लिए बैठे आँखों में हैं आब हम भी1
हो शोला-बयानी में तुम लगते माहिर
भरे दिल में रखते हैं इक ताब हम भी2
ख़ुशी दिल को बेहद हुई जानकर ये
किसी की तो आँखों का हैं ख़्वाब हम भी3
हुआ मेह्ऱबाँ हम पे बरिश का मौसम
थी उसको ख़बर होंगे शादाब हम भी4
"रिया" वलवले पैदा करता है क्यों इश्क़
समझने लगे इसकेे आदाब हम भी5-