जगत में सज्जन और दुर्जन सभी रहते सदा से हैं,
तभी तो लोग अच्छे और बुरे की पहचान करते हैं।
अगर रातें नहीं होती तो दिन की कीमत ना होती,
अंधेरे से ही तो हम उजाले का एहसास करते हैं।-
लेखनी में बहुत कुछ ,औरों की अपेक्षा भी छिप... read more
टूटकर फिर से जुड़ना आता है मुझे,
बिखरकर फिर संवरना आता है मुझे।
नदी की बहती हुई एक धारा हूँ मैं,
पथरीली राहों से गुजरना आता है मुझे।
माना कि सख्त दरख्त सी बन गई हूं मैं,
मगर एक मुस्कान पर झुकना आता है मुझे।
आईने की तरह साफ दिल रखती हूं मैं,
मगर हर चेहरा पहचानना आता है मुझे।
कांच नहीं मगर कांच की तरह नाजुक हूं,
पल-पल संभल कर चलना आता है मुझे।-
उसने आज कुछ यूँ कहा-
तुम खिले हुए गुलाब से लगते हो,
हर एंगल से लाजवाब लगते हो,
देखी है मैंनें तुम्हारी हर तस्वीर को,
तुम हर तस्वीर में मेहताब लगते हो।
दूध में नहाई हुई चांदनी सी,
तुम मंद मंद कदमों से जैसे,
परी सी नील गगन से उतरी हो,
बन कामायनी मेरे मन आंगन के द्वारे।
अपनी मनमोहक छटा बिखेरती,
हौले हौले मुस्कुराती सी,
जैसे स्वर्ग की अप्सरा कोई,
चंचल चितवन लिए, रिझा रही है मुझको।
ऊष्ण की तपन में जैसे पावस की बूंदे,
रिमझिम रिमझिम फुहारों सी,
चली आ रही दाह मिटाने,
अपने वजूद की पूर्णाहुति देने,
मेरे द्वारे,हाँ मेरे द्वारे।-
एक नर्गिसी ख्वाब, आंखों में उतर आता है,
पल भर भी ठहरता नहीं, टूट के बिखर जाता है।
शीशे की तरह नाजुक और चांदनी सा नर्म है,
मगर पलकों तक आकर, मुझसे बिछड़ जाता है।
उस पर ना बंदिशें लगाई, ना कभी काबू किया,
वो नींद से जगाकर मुझे, मुझसे लिपट जाता है।
सजाता है वो मुझे, हर दिन नए-नए रंगों से,
जब बंद करूं पलकें, तो आंखों में सिमट जाता है।-
तू ही कारवां, तू ही महफिल,
तू ही रास्ता, तू ही मंजिल।
खामोश बहती एक दरिया,
मैं और तू ही भंवर
और तू ही साहिल।
कदम रुके जहां तेरे,
वहीं धड़क उठे मेरा दिल।
हर ख्याल में शामिल तेरा खयाल,
चाहे तन्हाई रहे या रहे महफिल।-
आज मन के आवरण उठाएं,
दिल का आईना स्वच्छ करें
और निकट आएं,
अपना प्रतिबिंब निहारें,
निज में विहारें,
खुद में गहरे उतरें,
बोधि सुमन खिलाएं, धैर्य धरें,
चुप्पी साधें, ताकि
खुद की आवाज भी सुन पाएं।
फूलों को ही क्यों, शूलों को भी चाहें,
अपनी राह स्वयं बनाएं,
आओ व्यर्थ मान्यता की,
सपनों की आंख मिचोली से पर्दा उठाएं,
बिगड़े परमात्मा- आत्मा
संबंधों को नया बनाएं।
नया रूप दें, नया उपवन बसाएं,
नाचे गाएँ मुस्कायें।
कल्प काल के कलह कूट दें,
बैर- कलह भूल गले मिल जाएं।
आओ ध्यान सामायिक में उतरें,
बोधि सुमन खिलायें।-
जिस्म मिलता है माँ से,पर पिता पहचान होते हैं।
अगर मां है तपस्या तो पिता वरदान होते हैं
हजारों डिग्रियां झूठी, ये वो सम्मान होते हैं
यही सच है कि दुनिया में पिता भगवान होते हैं।
पिता ऊंगली पकड़कर जब हमें चलना सिखाते हैं
हमारी तोतली बोली को अपने सुर बनाते हैं।
पिता काँधे बिठाकर जब घूमाते हैं हमें मेला,
लगता है कि हम जन्नत की गलियां घूम आते हैं।
वो कर देते हैं सभी पूरे हमारे जो अरमान होते हैं।
यही सच है कि दुनिया में पिता भगवान होते हैं।।
जमाने की हर एक मुश्किल को हंसकर पार जाते हैं।
मगर संतान की हो बात, तब वो हार जाते हैं।
वो जीते हैं हमारे साथ खुशियां और सपन अपने,
मगर मरते हैं तो अपनी वसीयत तार जाते हैं।
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कभी खामोश रहूं, कभी बातें करूँ,
दिल को तसल्ली दूं या मुलाकातें करूं।
मेरी खामोशी का सबब मुझे ही मालूम,
मना लूं जा के,या आंखों से बरसातें करूं।
क्या पूछूं वजह उनसे, उनकी नाराजगी का,
समझा लूं खुद को या उनसे सवालातें करूँ।-
बेवजह नहीं निकलते आंसू,
उनकी भी अपनी मजबूरी होती है।
हार जाता है जब सबसे दिल,
तब उनके लिए ये जरूरी होती है।
यूं ही बेवजह नहीं गिरते ये दामन में,
गिरते हैं तब, जब हसरतें अधूरी होती हैं।
करीबी रिश्ता बन जाता है दोनों में,
हालांकि आंखों और दिल के बीच दूरी होती है।
दर्द कहता नहीं अपनी दास्तां कभी मगर,
बयां आंखों से कभी अधूरी, कभी पूरी होती है।-