जले रिश्तों में अब तुम्हें, शैदाई नहीं मिलेगी,
फ़कत खाक रह जाएगा, परछाई नहीं मिलेगी।
राख भी नसीब ना होगा, बुझे जज्बातों से,
रह जाएगा बस धुआँ, आशनाई नहीं मिलेगी।
चाहत में लबरेज होंगे खामोश लफ्ज़ मेरे,
ढूंढते रह जाओगे मगर बुराई नहीं मिलेगी।
रोशन ना होगा वो जहां, चाहे दिल जला लो,
जल जाएगा सब मगर, शनासाई नहीं मिलेगी।
ढूंढते फिरोगे, तुम सुकून पल भर का मगर,
गुम हो जाओगे भीड़ में, तन्हाई नहीं मिलेगी।-
लेखनी में बहुत कुछ ,औरों की अपेक्षा भी छिप... read more
जल गया है आशियां, उजड़ गईं हैं बस्तियां।
देती सुनाई सिसकियां, ये कौन गुनहगार है।।
पढ़ भी न पाए तख्तियां, गुजर गई जो कस्तियां।
कसते हैं लोग फब्तियां, ये कौन सूत्रधार है।1।
जुल्मों का घना कोहरा, उस पर सियासी पहरा।
गद्दार बांधे सेहरा, ये कौन मददगार है।।
मानव बना है मोहरा,दानव नहीं है बहरा,
आतंकी राज गहरा, अब कौन मित्र यार है।2।
बंदर के हाथ खंजर, मानवता हुई जर्जर।
खूं मे नहाया मंजर, ये कौन चित्रकार है।।
संवेदना हुई बंजर, बिखरे हैं अस्थि पंजर।
आया वक्त डेंजर, ये कौन शिल्पकार है।3।
होगा अब झमेला, छपेगा, चाहे हो बवेला।
दृढ़ निश्चयी है नवेला, ये कौन पत्रकार है।।
आक्रोश का है रेला, आई है कैसी बेला।
तूफान है ये गैला, ये कौन सी बयार है।4।-
अक्षय तृतीया पर्व है मंगल,
पावन यह त्यौहार,
प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव ने
लिया प्रथम आहार।
राजा श्रेयांश ने आदिप्रभु को
दिया इक्षु रस का आहार,
पंचाश्चर्य हुए प्रांगण में हुआ
गगन में जय जयकार।
दान पुण्य की यह परंपरा,
हुई जगत में शुभ आरंभ,
हो निष्काम भावना सुंदर,
मन में लेश न हो कुछ दंभ।
चार भेद हैं दान धर्म के,
औषधी शास्त्र अभय आहार,
हम सुपात्र को योग्य दान दें,
बने जगत में परम उदार।
अक्षय तृतीया के महत्व को
यदि निज में प्रकटाएंगे,
निश्चित ऐसा दिन आएगा,
हम अक्षय फल पाएंगे।-
रुसवा होकर तेरी बज्म में, अब और रहा नहीं जाता,
कभी तू भी तो कुछ कह, अब हमसे और कहा नहीं जाता।
थक चुके हैं भागते-भागते, जिंदगी के रंज-ओ- गम से,
जितने थे आंसू सब बह गए, अब और बहा नहीं जाता।
जो है मेरा चैन- ओ- करार, वही बेचैनी की वजह भी है,
रातों को तारे गिन गिन कर, अब और जगा नहीं जाता।
आसां नहीं है मेरे लिए गम-ए- हिज्र का दर्द सह पाना,
कभी तू भी तो सह, अब हमसे और सहा नहीं जाता।-
भाई से जुदा न रहिए आप, भाई बिना सकल पत जात।
भाई बिना अकेले होय, उसकी बात ना माने कोय।
भाई बिना होय रण हार, ज्यों जग फूटे झरिये खार।
यहां वहां घेरे सब कोय, भुजा कटे तो दुर्गति होय।
रामचंद्र लक्ष्मण दो वीर, दोऊ मिल बांध्यो सागर तीर।
दोऊ मिल लंका गढ़ लियो, राज विभीषण को सब दियो।
जो दोऊ नहीं होते वीर, एक कहां लौं बांधे धीर।
रावण काढ़ विभीषण दियो, राज्य छोड़ जग अपयश मिल्यो।
एक एक ग्यारह हो जांहि, यह कहावत सबरे जग मांही।
यातें कोई मत ऐसा करो,यही मंत्र हिये में धरो।-
वो कहता है
बहा दूं प्यार की दरिया हिलोरें उठती है
मेरी हसरत है तेरी सांसों में बसने की,
तमन्ना है मेरी तेरे करीब आने की,
तुझमें रच बस जाने की।
तेरे कांधे पर सिर रखने की,
तेरी गोद में लेट जाने की,
तेरे गेसुओं से खेलने की,
तेरी उलझी लट सुलझाने की।
तू जब रूठे तुझे मनाने की,
हौले से तेरे गालों को छू जाने की,
तुझे देख मुस्कुराने की
तेरे हाथों से भोजन खाने की,
तेरे लिए परिधान लाने की,
तेरे संग जग घूम आने की,
तेरे संग गृहस्थी बसाने की।-
हम कलम के फनकार हैं
और निखारना है खुद को,
शब्द दिल के समंदर के
मोती हैं संवारना है इनको।-
मुझे इल्म था सनम कि मेरे नहीं हो तुम,
मगर जाने क्यों लगता था कि मेरे हो तुम।
तेरा गैरों सा बर्ताव मुझे रूलाता था बहुत,
फिर भी जाने क्यों लगता था कि मेरे हो तुम।
जुदाई के डर से दिल सहम जाता था बहुत,
मगर बिछड़कर भी लगता था कि मेरे हो तुम।
वाकिफ थी मैं तुम्हारी फितरतों से सनम,
पर बदले मिजाज में भी लगता था कि मेरे हो तुम।
वहम मेरा टूटा जब तूने देख के अनदेखा किया,
अब तो वाकई लगता है कि मेरे नहीं हो तुम।-
दीपक की भांति जलता है कोई कोई,
वृक्षों की भांति फलता है कोई कोई।
आदर्श की बातें सब लोग करते हैं,
पर आदर्श के मार्ग पर चलता है कोई कोई।-
तुम्हारी खुशी में हम हमेशा बहुत खुश होते हैं,
लेकिन हमारी खुशी में तुम खुश क्यों नहीं होते।
हर मुसीबत परेशानी में हम तुम्हारे साथ होते हैं,
लेकिन हमारे गम में तुम साथ क्यों नहीं होते।
हमारे सारे व्रत तुम्हारी लंबी उम्र के लिए होते हैं,
लेकिन हमारे लिए ऐसे एक व्रत क्यों नहीं होते।
सब कुछ सहकर भी हम खामोश होते हैं,
लेकिन तुम हमारी गलती पे खामोश क्यों नहीं होते।
ये कैसा भेदभाव कि हर कसौटी पे खरे उतरें हम,
लेकिन तुम्हारे लिए ये कसौटी क्यों नहीं होते।-