जीवन सुख-दुख का हिंडोला है,
परेशान वही,जो ये बात भूला है।
हर उतार चढ़ाव में संतुलित रहना,
जिंदगी कुर्सी नहीं, एक झूला है।
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जो भी लिखा है हमने, निज अंतर्दृष्टि से लिखा है,
लेखनी में बहुत कुछ ,औरों की अपेक्... read more
मैंने उसको इतना देखा, जितना उसको देखा जा सकता था,
फिर भी दो आंखों से, कितना देखा जा सकता था।
मन की आंखों से देखा तो, वो आसमान से ऊंचा निकला,
वो दरिया सा उज्जवल और सागर सा गहरा निकला।
नील गगन में जितने तारे उन सब में चमकीला निकला,
अब तक पत्थर समझा था जिसको
वो तो बेशकीमती हीरा निकला।
दोस्त मानकर जिससे बातें की, मुलाकातें की,
संगत की रंगत चढ़ी फिर, जब खुद के अंदर झांका
तो वो मेरे दिल का सपना निकला।-
राज छुपाना भी है, तुम्हें बताना भी है,
छुप- छुप के बातें बनाना भी है।
अपना राजदार बनाकर तुम्हें,
दिल के घाव तुमसे छुपाना भी है।
कभी ना छोड़ोगे तुम साथ मेरा,
वादा करना भी है, कराना भी है,
चाहे सुख में रहें, चाहे दुख में रहें,
हर हाल में साथ निभाना भी है।
प्यार पाना भी है, प्यार देना भी है,
कभी रूठना है और मनाना भी है।
मेरे जीवन में बस तुम ही तुम हो,
संग तेरे सजन जीवन सजाना भी है।-
हिन्दी वर्णमाला का क्रम से कवितामय प्रयोग-
*अ* चानक*आ* कर मुझसे*इ* ठलाता हुआ पंछी बोला
*ई* श्वर ने मानव को तो*उ* त्तम ज्ञान-दान से तौला
*ऊ* पर हो तुम सब जीवों में*ऋ* ष्य तुल्य अनमोल
*ए* क अकेली जात अनोखी*ऐ* सी क्या मजबूरी तुमको
*ओ* ट रहे होंठों की शोख़ी*औ* र सताकर कमज़ोरों को
*अं* ग तुम्हारा खिल जाता है*अ:* तुम्हें क्या मिल जाता है.?
*क* हा मैंने- कि कहो*ख* ग आज सम्पूर्ण*ग* र्व से कि
- हर अभाव में भी*घ* र तुम्हारा बड़े मजे से*च* ल रहा है
*छो* टी सी- टहनी के सिरे की*ज* गह में, बिना किसी*झ* गड़े के,
ना ही किसी*ट* कराव के पूरा कुनबा पल रहा है*ठौ* र यहीं है
उसमें*डा* ली-डाली, पत्ते-पत्ते*ढ* लता सूरज*त* रावट देता है
*थ* कावट सारी, पूरे*दि* वस की-तारों की लड़ियों से
*ध* न-धान्य की लिखावट लेता है*ना* दान-नियति से अनजान अरे
*प्र* गतिशील मानव*फ़* रेब के पुतलो*ब* न बैठे हो समर्थ
*भ* ला याद कहाँ तुम्हें*म* नुष्यता का अर्थ.?
*य* ह जो थी, प्रभु की*र* चना अनुपम.*ला* लच-लोभ के *व* शीभूत होकर
*श* र्म-धर्म सब तजकर*ष* ड्यंत्रों के खेतों में*स* दा पाप-बीजों को बोकर
*हो* कर स्वयं से दूर*क्ष* णभंगुर सुख में अटक चुके हो
*त्रा* स को आमंत्रित करते *ज्ञा* न-पथ से भटक चुके हो।
अंग्रेजी के अल्फाबेट्स पर बहुत कुछ पढ़ा होगा...इस बार हिंदी में पढ़ें।-
पहले हम धड़कनों पर काबू पा लेते थे,
अब सांसों पर भी इख़्तियार नहीं होता।
पहले तो बंद पलकों से छू लेते थे उसे,
अब खुली आंखों से भी दीदार नहीं होता।-
यूँ तो दिल की गहराई का, कोई माप नहीं होता।
मन का सागर कितना गहरा है, ज्ञात नहीं होता।
दिल की सच्चाई गहराई,जानें गहन चिंतन तल में,
गहराई में उतरे बिना,असली रत्न प्राप्त नहीं होता।-
तूने कहा, तू छुईमुई सी ना बन, बिंदास बात कर।
अपने दिल का दरवाजा खोल, बयां जज्बात कर।-
साजन ने कहा, कौन कहता है
मैं तेरा नहीं, तेरा ही तो हूं मैं।
यकीन क्यों मैं तुझको दिलाऊं,
जरा अपने दिल से पूछो तो तुम।
मेरे ख्वाबों की मलिका हो
मेरी धड़कनों में बसती हो तुम।
मेरी हर शाम पर पहरा है तेरा,
मेरी हर सुबह तेरी सनम।
तुम मेरे दिल का चमकता चांद
मैं तेरी आंख का तारा सनम।-
हिंदी हमारी पहचान, हिंदी हमारा गर्व।
14 सितंबर को यानि आज
देश भर में हिंदी दिवस मनाया जा रहा है,
इस दिन का उद्देश्य हिंदी भाषा के महत्व को समझाना,
उसका प्रचार प्रसार करना और लोगों को अपनी मातृभाषा
के प्रति सम्मान और गर्व की भावना से जोड़ना है।
14 सितंबर 1949 को संविधान सभा ने हिंदी को भारत की
राजभाषा के रूप में स्वीकार किया था ,इसी दिन को
यादगार बनाने और हिंदी के विकास के लिए प्रेरित करने हेतु
1953 से हिंदी दिवस मनाया जाने लगा।
हिंदी हमारी "मातृ" भाषा है "मात्र" भाषा नहीं,
आजकल हिंदी बोलने में भी लोगों को शर्म महसूस होती है,
जबकि लोग टूटी फूटी गलत अंग्रेजी बोलकर भी गर्व महसूस करते हैं।
आज के समय में स्कूलों का सारा जोर अंग्रेजी पर है,
हिंदी तो बस रस्म अदायगी की तरह पढ़ाई जाती है।
आने वाली पीढ़ी को हिंदी के प्रति सजग करना चाहिए।
अंग्रेजी सीखिये, पढ़िए, बोलिए, लेकिन
हिंदी के प्रयोग में शर्म नहीं, गर्व महसूस करिए।-
जो शतरंज के महा खिलाड़ी
वो ऐसी गोट बिठाते हैं,
बिना चाल के ही दुश्मन
की सारी चाल मिटाते हैं।
कौनसा सफेद,कौनसा मोहरा,
काला पता नहीं चलता,
पर वो जिंदगी व शतरंज
का ये फर्क भी मिटाते हैं।-