Parul Bhaktani  
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Joined 29 May 2021


Joined 29 May 2021
3 HOURS AGO

ऐसी क्या बात हुई जो इस तरह तुम नाराज़ हो गए,
तुमको देखकर ये फूल भी हँसना- हँसाना भूल गए।

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8 HOURS AGO

निराशा के भंवर में उलझ छोड़ बैठे थे कभी जीने की हसरत को,
धिक्कार रहे थे ख़ुदा की बख़्शी जीवन की इस अज़ीम दौलत को।

ज़िंदा रहने की ख़्वाहिश भी न रही थी निराशा से भरे इस मन में,
लब पर रखने लगे थे हमेशा ज़िंदगी के दुःखों की शिकायत को।

भूल गए थे कि सुख- दुख तो सब की ज़िंदगी का हिस्सा होते हैं,
खूबसूरत है ये ज़िंदगी अगर छोड़ दें गिले-शिकवों की आदत को।

गिले-शिकवे छोड़कर जब से ईश्वर की रज़ा में राज़ी होना सीखा है,
अब हँसते- हँसते पार कर लेते हैं ज़िंदगी में आई हर मुसीबत को।

ज़िंदगी से रूठने वाले को मिलती नहीं है ख़ुदा की नेमतें 'पारुल',
जब से ये जाना है छोड़ दिया है करना ज़िंदगी से बगावत को।

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YESTERDAY AT 16:02

चाँद सी मुन्नवर इस पेशानि को चूम कर हर ग़म अपने नाम कर लूँगा,
सितारों से भर दूँगा दामन तुम्हारा रात का अंधेरा अपने नाम कर लूँगा।

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YESTERDAY AT 10:08

दौलत नहीं शोहरत नहीं, सिर्फ़ अपने कर्मों को साथ लेकर जाना है,
इस जन्म के कर्मों के आधार पर ही अगले जन्म में नवजीवन पाना है।

पाप और पुण्यों के आधार पर ही बनता है सबका जीवन खाता,
दुआएं होंगी जितनी इस खाते में उतना ही सुख चैन दामन में आना है।

पाप का बीज बहुत मीठा लेकिन उसका फल बहुत कड़वा होता है,
जैसा बोया होगा हमने बीज वैसा ही तो फिर हमको फल भी खाना है।

खुशी और ग़म से अछूता नहीं रह पाया है जहां का कोई भी इंसान,
शिकायत न रखकर लब पर सदा ही दिल से करना शुकराना है।

ख़ुदा की रज़ा में राज़ी रहने से ही बरसती है ख़ुदा की रहमत
ख़ुदा ने रखा नहीं कभी भी अपने सच्चे बंदों का मेहनताना है।

दौलत शोहरत के लिए कभी भी सच की राह को ना छोड़ना 'पारुल',
गलत राह पर चलने वालों को भुगतना पड़ा हमेशा ही हर्जाना है।

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26 APR AT 15:50

माना कि उम्र नहीं रही हमारी फिर भी कुछ करामात करते हैं,
ग़मगीन रह लिए बहुत अब फ़िर शरारतों की शुरुआत करते हैं।

पढ़ाई के बोझ तले बीता बचपन जवानी बीती जिम्मेदारियों में,
अब थोड़ी शरारतें कर दूर ज़िंदगी के गर्दिश-ए-हालात करते हैं।

छोटी- छोटी शरारतें करके सबकी ज़िंदगी से दूर करेंगे उदासियाँ,
चलो वक़्त से थोड़ा वक़्त चुरा कर खुशियों से मुलाकात करते हैं।

शरारतों भरे उस बचपन के दौर को एक बार फिर से जी लेंगे हम,
भूले बिछड़े पुराने दोस्तों से मिल कर आज फिर हम बात करते हैं।

किसी का दिल ना दुखे तो शरारतों की कोई उम्र नहीं होती 'पारुल',
हल्की-फुल्की छेड़छाड़ और मज़ाक से खुशनुमा हालात करते हैं।

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25 APR AT 18:52

आब -ए-रवाँ सी ये ज़िंदगी रोज़ नए सांचे में ढलती है,
कभी रोती है मुझ पर तो कभी मुझ पर हँसा करती है।

सुख- दुख का हर रंग बिखरा हुआ है इस ज़िंदगी में,
चुपचाप बस आईने की तरह अक़्स मेरा तकती है।

ज़िंदगी की राहों में हर सम्त तो फैला है कितना शोर,
खाली से दिल में मेरे क्यों इस तरह सन्नाटे भरती है।

रोज़ नए- नए रूप बदलती है ये लिबास की तरह,
कभी आशा तो कभी निराशा के नित स्वांग रचती है।

इसकी रवानी के साथ हमें भी बहते जाना है 'पारूल',
एक पल के लिए भी ये किसी के लिए नहीं रुकती है।

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25 APR AT 12:23

ऐ हुस्न परी छत पर आया न करो यूँ बेनकाब,
गुमान होता है सबको कि निकला है महताब।

तुम्हें कोई और देखे तो जलता है ये दिल मेरा,
एक झलक देखने के लिए रहते हैं सब बेताब।

ऐसे हुस्न की तारीफ करना भी मुमकिन नहीं,
लब हैं जैसे खिली पंखुड़ियों का हो वो गुलाब।

इन नशीली आँखों में झाँक कर जो देखे कोई,
नशा चढ़ जाए इस तरह जैसे पी ली हो शराब।

बोलने पर शब्दों की जगह फूल झरते हैं मुख से,
जागती आँखों से जैसे देखा कोई हसीन ख़्वाब।

मह ए-ख़ुर्शीद-ए-जमाल सा नूर है रुख़सार पर,
ऐसे हुस्न की तारीफ़ में तो लिख दूँ एक किताब।

सच कहता हूँ चाहो तो पूछ लो किसी से 'पारुल',
ज़माना कहता है यही कि मेरी पसंद है लाजवाब।

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24 APR AT 19:45

मौत तो लिखी है मुकद्दर में फ़िर मौत से क्या डरना,
मौत से पहले पैमाना- ए- हस्ती को लबरेज़ करना।

मरने के बाद भी शख़्सियत रह जाए ज़िंदा तुम्हारी,
दुख-दर्द बाँट कर किसी का उसके दिल में उतरना।

अपने लिए तो जीते आए हैं इस जहां में सभी लोग,
किसी और की खुशी के लिए भी कुछ कर गुज़रना।

खुशी न दे सको किसी को तो ग़म भी ना देना कभी,
किसी डूबते को उबार कर दिलों में तुम भी उभरना।

मिट्टी की काया एकदिन मिट्टी में मिल जानी है'पारुल',
मिट्टी में नेकियों का बीज बनकर ख़ुशबू सा बिखरना।

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24 APR AT 11:24

जहाँ तेज़ाब से जला दिए जाते हैं चेहरे कैसे करूँ वो समाज पसंद,
हर इल्ज़ाम दिया जाए जहाँ औरत पर कैसे करूँ वो रिवाज़ पसंद।

जहाँ पुरुषों को सिखाया जाता ही नहीं औरत की इज्ज़त करना,
किस तरह करूँ ऐसे बद- मिज़ाज समाज का मैं मिज़ाज पसंद।

सच्चरित्र होने का जहाँ माँगा जाता है सिर्फ़ औरत से ही सबूत,
गुनहगार होकर भी पुरुष को हर हाल में किया जाता है आज पसंद।

औरत के होने ना होने का जिस समाज में कोई मतलब ही नहीं है,
औरत को पैरों की जूती समझने वाले पुरुषों का क्यों करूँ राज पसंद।

आह- ओ- फ़ुगाँ भी औरत की बन जाती है जहाँ एक संगीन जुर्म,
औरत को जो बराबरी का हक़ ना दे पाए नहीं मुझे वो समाज पसंद।

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24 APR AT 10:01

तेरी भीगी लटों से भीगा आँचल और महकी सी है सुहानी रात ये,
नींदे हैं गुम आँखों से किस तरह काबू में रहे ये दिल और हालात ये।

चाँदनी रात, सर्द सी ये हवा और हाथों में हाथ लेकर तुम्हारा,
जुल्फ़ों से टपकती बूंदे दिल पर दस्तक देती हैं जैसे हो बरसात ये।

धीरे-धीरे भडकती जा रही है मेरे सीने में सुलगते शोलों की धधक,
किस तरह समझाऊँ तुमको कि बहके हुए से हैं मेरे जज़्बात ये।

हया से झुकी इन नज़रों को एक बार उठा कर प्यार से देख लो तुम,
ज़िंदगी में बार- बार आते नहीं मोहब्बत भरे खूबसूरत से लम्हात ये।

तसव्वुर के हर रंग में शामिल है तेरी ही प्यारी सी ये सूरत 'पारुल ',
तुमको पाकर महसूस होता है पूरी हुई है अब बरसों की मुनाजात ये।

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