ऐ हुस्न परी छत पर आया न करो यूँ बेनकाब,
गुमान होता है सबको कि निकला है महताब।
तुम्हें कोई और देखे तो जलता है ये दिल मेरा,
एक झलक देखने के लिए रहते हैं सब बेताब।
ऐसे हुस्न की तारीफ करना भी मुमकिन नहीं,
लब हैं जैसे खिली पंखुड़ियों का हो वो गुलाब।
इन नशीली आँखों में झाँक कर जो देखे कोई,
नशा चढ़ जाए इस तरह जैसे पी ली हो शराब।
बोलने पर शब्दों की जगह फूल झरते हैं मुख से,
जागती आँखों से जैसे देखा कोई हसीन ख़्वाब।
मह ए-ख़ुर्शीद-ए-जमाल सा नूर है रुख़सार पर,
ऐसे हुस्न की तारीफ़ में तो लिख दूँ एक किताब।
सच कहता हूँ चाहो तो पूछ लो किसी से 'पारुल',
ज़माना कहता है यही कि मेरी पसंद है लाजवाब।
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