समय मिले तो अवश्य पढ़े
हमारी प्यारी बहनों के लिए
बहुत हीं प्यारी रचना है ★vivek sir के द्वारा★
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बिन तेरे क्षण-क्षण अवसान होती जा रही है मेरी ये जिंदगी
तनिक ठहरो तुम .....
समाप्ति से पहले ,प्रेम में मुझे मोक्ष प्राप्त कर जाने दो ज़रा
परित्यक्त होती जा रही हृदय की प्रेम धमनियों की गलियां
तनिक ठहरो तुम......
व्यग्र,ध्वस्त हृदय को प्रेम में विह्वल हो के ढह जाने दो ज़रा
विरह के तटबंध पर अटकी मेरी उखड़ती अनियंत्रित सांसे
तनिक ठहरो तुम......
अप्रतिहत अश्रु_ धारा प्रेम में अविच्छिन्न बह जाने दो ज़रा
स्मृतियों पर आच्छादित होती जा रही है, समय के रजकण
तनिक ठहरो तुम.......
वापसी ना होगी इस जन्म में ,प्रेम में बागी हो जाने दो ज़रा
अनछुआ हृदय पर चक्षु के खेल में छिड़ गया नाजुक समर
तनिक ठहरो तुम.......
बाबली हूँ मैं प्रेम में, वीरांगना बन वीरगति पा जाने दो ज़रा
कैद हूँ काया के निर्मम ,निर्जन पिंजरे में सहस्त्र सदियों से
तनिक ठहरो तुम.....
रिहाई ना होगी तुमसे मिलन बिन,रूह में घुल जाने दो ज़रा
रंच मात्र भी रंज नहीं ज़ार-ज़ार रोती हूँ प्रेम पिघलती पीर में
तनिक ठहरो तुम......
रफ़ू हो जाने दो ,प्रेम के विच्छेद आवरण की झिरियों को ज़रा
निर्बाध रूप से हिलोरे लेता है मेरा मन , अतीत जज्बातों में
तनिक ठहरो तुम.....
नहीं बर्दाश्त स्मृतियों में जीना,यादाश्त छिन तो जाने दो ज़रा
आगे की रचना अनुशीर्षक में पढ़े 👇-
आदिकाल से भारत का
स्वर्णिम इतिहास रहा ,
महाराणा प्रताप , लक्ष्मीबाई आदि
वीर-वीरांगनाओं का पराक्रम
इसकी पहचान रहा ।
कालांतर में आर्यवर्त
आदि नामों से इतिहास बनाया,
बाद में भारत कहलाया।।-
ओज और तेज की मल्लिका
हर कला में प्रवीण थी
कहाँ उसे किसी से मतलब
देश भक्ति में लीन थी
जिस उम्र में खेलते सभी
गुड्डे और गुड़ियों से
वो खेलती नाना संग
कृपाण और छुरियों से
नाना सीखते युद्ध कला
वो छिपकर देखा करती थी
बड़े ही तन्मयता से वो
उसको सीखा करती थी
सूर्य सा था ओज जिसमें
ऐसा शौर्य था भी किसमें
वो उन्मुक्त गगन की स्वामिनी
इतना धैर्य भी था किसमें
हाथी पर बैठना था मनु को
उसने ये जिद ठानी थी
तेरे भाग्य में हाथी कहाँ
नाना नेे बतलायी थी
मेरे भाग्य में एक नहीं
सौ हाथी हैं नाना
जिसने अपने भाग्य को भी
चुनौती दे डाली थी
जिसने कभी भी हार ना मानी
वो महारानी लक्ष्मीबाई थी..【भाग-२】
🚩क्रमशः🚩-
वीर शहीद तुम वीरांगना मैं कहलाई..
अडिग रही कभी ना अश्रु बहाई ..
बरस ये सावन धीर मेरा तोड़ती ..
लगे बारिश की रुनझुन जैसे..
द्वार पर तुमने कोई दस्तक दी हो....
(शेष अनुशीर्षक में)-
वीर हैं वो सपूत जो सीने पर
गोलियों की बौछार सहते हैं।
शत शत नमन उन वीरांगनाओं को
(मां बहन और विधवाएं)
जो ताउम्र उनकी कमी स्वीकार करती हैं।
प्रीति।
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क्या हुआ जो भंसाली ने पद्मावती फिल्म बनाई है
इतिहास में वीर वीरांगनाओं की वीरता दिखाई है
हम चाहते हैं देखे दुष्टों की दुष्टता को हिंदुस्तान
और देखे हिंदू नारियों की वीरता जौहर स्वाभिमान
इस फिल्म में लेकिन मान ले तुझसे चूक हुई है भंसाली
तुर्क के ख्वाबों में पद्मिनी की तूने माँटी कर डाली
फिल्मों में हीरोइन केवल हीरो के ख्वाब में आती है
खिलजी की बाँहो में पद्मा चित्तौड़ की शान गिरा डाली
खिलजी से नफ़्रत पद्मावती की तुझको नजर न आई है
इतिहास पै कालिख पोत के तूने कैसी फिल्म बनाई है
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देखो
वीरांगना किस उलझन मे है
किस रंग के वस्त्र पहने इस द्वन्द्व मे है
कौनसा रंग विधवा के लिए निर्धारित है
कौनसा रंग वीरांगना के लिए स्वीकृत है
कैसा रंग मेरे वीरवर को भाता है
कैसा रंग अब लोगों को सुहाता है
जब घर से गए थे तब सैनिक वाली उनकी पोशाक थी
जब सीमा पर लड़ रहे थे तब केसरिया उनका बाना था
जब मुझे ब्याहने आए थे तब चुनरी उनका साफा था
जब अंतिम दर्शन को आए थे तब तिरंगा उनका पहनावा था
अब वो मुझे छोड़ नील गगन मे जा बसे हुए हैं
हम रहे जमीं और अब वो आसमां हुए हैं-