सुब्रत आनंद   (सुब्रत आनंद "सिफ़र")
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Joined 14 July 2017


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Joined 14 July 2017
28 AUG 2024 AT 15:00

बरगद
के पेड़ सा
पेड़ में जड़ें ज्यों
यूँ
चेहरे पर झुर्रियां
दे कर जाना चाहती है-
पेड़ धूप में छाया
और
बुजुर्ग अपने अनुभव
पेड़ देती है छाया
युगों -युगों तक
और बुजुर्ग वंश दर वंश
तभी तो बढ़ता रहा है
कारवाँ
मनुष्य का
वंश दर वंश
वंश दर वंश

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27 AUG 2024 AT 20:03

हर लफ़्ज़ का फ़साना
है जिंदगी का सार यह
बस पल भर का ठिकाना
नहीं अपना कोई इस जग में
है ज़ालिम बड़ा जमाना
पैगाम- ए-मुहब्बत
है जग को समझाना
नहीं राब्ता किसी से
न कोई गुनाहगारी
है जिंदगी यह छोटी
कर जिंदगी से यारी...!!
कर जिंदगी से यारी...!!

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27 AUG 2024 AT 16:38

कृष्ण तेरी अठखेलियाँ
हरती दुख के रैन !
बिन तेरे जीवन मेरा
रहता बस बेचैन !!

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चाँद से कह दो अभी उसने, हमारी रफ़्तार देखी है;
ये हौसला कम नहीं होगा, नहीं हमने हार देखी है;
परिन्दे उड़ना सीखते हैं, गिरते कई बार हैं नभ से -
आना हमें लौट कर फिर से, भले हमने खार देखी है !!

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15 DEC 2017 AT 15:19

ताज के पीछे चाँद नजर आता है
जैसे सुबह के बाद सहर आता है...【१】

आज रंगा है एक हसीं रंग में देखो
मुहब्बत का जैसे कोई पहर आता है..【२】

कहीं मिली होगी नजर चाहत लिए
रुको ईश्क का कोई खबर आता है..【३】

देखना धूमिल ना हो जाये ये नज़ारे
सुन के ही दिल सबका सिहर आता है【४】

तलब है दीदार को तेरे आएगा"सुब्रत"
प्यार लिए दिल में जैसे इतर आता है.!!【५】

Date:- 15 दिसंबर 2017©©

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20 SEP 2017 AT 12:05

जिंदगी की तमाम खुशियाँ आपको हासिल हो
खुदा हर वो चीज़ दे जो आपको मुनासिब हो
नहीं चाहिए दुनिया में ढ़ेरो रिश्ते
बस आप मिल गए जैसे मिल गया मुझे साहिल हो
आप हँसते रहें यूँ ही मुस्कुराते रहें यूँ ही
आपके तेवर यूँ ही और अदा हाजिरजवाबी हो
हूँ अदना सा मैं ज्यादा आपको लिख नहीं सकता
बस दुआ है आपकी लेखनी यूँ ही सैलाबी हो...!!
💐🎂राजू भैया🎂💐
Date:- 20 सितम्बर 2017©

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तुम देख सकते हो,
हमारे अंदर की तन्हाई
जो बसी हुई है
जन्म- जन्मांतर से
हमारे हृदय की
गहराइयों में,
एक लंबी टीस सी
खा रही हमें
भीतर ही भीतर
उससे जल्द ही
पाना है निज़ात
ताकि बन सको
जिंदगी मेरी
हाँ तुम.....हाँ तुम ।।

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12 MAR 2021 AT 18:46

हार कर भी जीत जाती है सदा ही बेटियाँ
है खुशी पल्लू में लेकिन ग़मज़दा ही बेटियाँ

जग नहीं बदला न बदली जग की ये दुश्वारियाँ
दे रही है चीख कर बस ये सदा ही बेटियाँ

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ये जीवन एक जलजला है और क्या?
जिसने जब चाहा छला है और क्या ?
है ख़ुदा किसका यहाँ पर एक अब ?
स्वार्थ ही सबमें मिला है और क्या ?

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17 FEB 2020 AT 13:53

आपने जब कहा था मुहब्बत मुझे ;
और कुछ की नहीं थी जरूरत मुझे ;
आपको सोचते कट रहा रात- दिन -
अब न भाती सुनो कोई सूरत मुझे..!!

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