Bhavani Shankar Dan Depawat   (बेहदलेखनी (भवानी देपावत))
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Joined 8 March 2018


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Joined 8 March 2018
21 MAY 2022 AT 7:47

अगर बेटी हो तो घर की रौनक होती है स्त्री
बहन हो तो घर की इज्जत होती है स्त्री
बहू हो तो घर की लक्ष्मी होती है स्त्री
पत्नी हो तो शक्ति होती है स्त्री
दादी हो तो ज्ञान का सागर होती है स्त्री
अगर मां हो तो बच्चों का संसार होती है स्त्री
कैसे कह दूं कमजोर होती है स्त्री
सकल भ्रमांड का सार होती है स्त्री

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26 NOV 2018 AT 14:48

मैं मुर्दे का अंहकार नहीं जो राख हो जाए
मैं स्वाभिमान से उठा शीश हूँ जो गर्व से बढ़ता ही जाए

ना मैं दुष्ट हूँ और ना ही उससे कोई नाता है
सज्जनता का साथ पाना व निभाना बखूबी आता है
ना मैं शशि की शीतलता हूँ ना मैं दिवाकर की गर्मी हूँ
मैं तो अग्नि सुत,शुद्धता का परिचायक हूँ

मैं होलिका नहीं जो जलाए प्रह्लाद को
ना ही मैं बुझती मोमबत्ती हूँ जो जलाए घरबार को
मैं तो नव प्रज्ज्वलित दिपक हूँ जो मिटाए अंधकार को

शूरवीरों की हुतात्मा हूँ कायरों के लिए खौफ हूँ
भीष्म की प्रतिज्ञा हूँ कृष्ण का रौद्र रूप हूँ
सुअरों का भक्षक नहीं गायों का सेवक व रक्षक हूँ
मैं महलों की प्राचीर नहीं ना ही कोई पीर फकीर हूँ
मैं तो झोंपड़ी का चारण वीर हूँ

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19 JAN 2022 AT 8:29

सोचो हम कितने भाग्यशाली हैं
मां ने तो सिर्फ आधी खा हमें रोटी पूरी खिलाई है
हमें बिस्तर पर सुला खुद के लिए चटाई बिछाई है।
गरीबी में जिए हमेशा लेकिन खुशियां सारी दी है
खुद थी अभाव में जीई लेकिन सुविधाएं सारी दी है।
जीभ का स्वाद लिया नहीं,ना मां कभी शहर घूम आई है
दर्द छुपा खुद के मां ने हमारे चेहरे पर मुस्कान लाई है।
खुद नहीं पहने नए कपड़े लेकिन हमारे लिए की सिलाई है
खुद थी अनपढ़ पर हमें स्कूल छोड़कर भी आई है।
दो जोड़ी कपड़ों में जिदंगी बिताई पर हमें गणवेश भी दिलवाई है
घर की ताकत है मां खुद जल कर पूरे घर में रोशनी फैलाई है।
हम कैसे भूल रहे हैं जिसने नहीं देखा अपने परिवार से
आगे कुछ भी उसने हमें दुनिया पूरी दिखाई है
खुद रही अनपढ़ पर हमें पढ़ाई पूरी करवाई है।।

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5 DEC 2021 AT 19:30

नौकरी को बेटी देने वालों अपनी बेटी को खुशियां खरीद दोगे क्या
सालों पाल पोष कर बड़ी करते हो
फिर किसी नौकरी को अपनी बेटी ब्याते हो
सोचो जरा, तुम मांगने वालों से कम दोषी हो क्या
एक चरित्रवान गुणी दामाद की जगह वस्तु चाहते हो क्या
खरीदी हुई वस्तु से भी अपनी बेटी की खुशियां चाहते हो क्या

जब बिना नौकरी वाले का रिश्ता आता है तो लड़की को छोटी बतलाते हो
अगर अगले ही दिन वो नौकरी लग जाए और बूढ़ा हो तब भी अपनी बेटी ब्याते हो

वो लोग गिरगिट से भी ज्यादा रंग बदलते हैं
जो एक दिन में ही लड़की को छोटी से बड़ी बतला देते हैं
ऐसे लोगों की नजरों में बिना नौकरी वाला गुणवान होकर भी रावण कहलाता है
और नौकरी वाला कोठे पर जाकर भी राम कहलाता है

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13 NOV 2021 AT 9:02

यह इंतजार कैसा ?
साथ नहीं होगा मालूम
फिर यह एहसास कैसा ?

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13 NOV 2021 AT 8:57

बात ज्यादा पुरानी नहीं है
कल तक थे साथ बस आज नहीं हैं ।
मैं यह नहीं कहता प्यार नहीं था तुम्हें
बस मुझ से नहीं था तुम्हें ।
यह उन दिन की बात है जब अपना प्यार चरम पर था
तुम और मैं तो अब हैं,तब तो बस हम थे
ज्यादा फर्क नहीं है तब और अब में
बस तुम तुम और मैं मैं हूं
पहले सिर्फ हम थे, बस वही अब हम नहीं हैं।

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13 NOV 2021 AT 8:09

वह बारिश वाले दिन थे
घंटों बातें हुआ करती थी
फिर भी पूरी नहीं होती थी
अब तो बस यादें हैं
जो पूरी ना हो सकीं वो फरियादें हैं

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20 OCT 2021 AT 18:50

अपने स्वप्न स्वयं पूरे करने का प्रयास करें किसी दूसरे के भरोसे न बैठें।
जिसके भरोसे आप हो उसका भी तो स्वप्न होगा वह आपका स्वप्न जिएगा या स्वयं का ...
चारण वचन

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19 JUL 2021 AT 21:13

असफलता हमें अपनों और परायों में विभेद करना सिखाती है
क्योंकि सफलता में तो सब अपने हो जाते हैं
इसलिए असफलता को भी उतना ही महत्व दें
चारण वचन

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19 JUL 2021 AT 21:03

सभी को खुश रखना तो स्वयं परमात्मा के बस में नहीं है
इसलिए स्वयं खुश रहिए जो आप के अपने हैं
वह आपको खुश देखकर ही खुश हो जायेंगे ।
चारण वचन

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