इसी बीच घड़ी स्वंयवर की आई।
सखियों सहित सीता भी आई।।
राम - सीता का ये मिलन।
देख रहे थे तीनो भुवन।।
राम - सीता विवाह की ये
कैसी पावन बेला थी।
पुलकित था कण - कण ,
रची, विधाता की लीला थी।।
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आ बैठ मेरे साथ सुलह कर लेते
जियेंगे या मरेगे और क्या करेगे
उससे अच्छा विवाह कर लेते है
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प्रित,परीक्षा और तपस्या
जिन्होंने साथ-साथ निभाई है
अवध नगरी से बारात फिर
जनकपुर में आज आई है।
पवित्र प्रित की गरिमा आज
वो पावन दिन फिर से लाया है
सिया राम की जोड़ी में
सबने अपना प्रेम बसाया है।।
(विवाह पंचमी की खूब सारी शुभकामनाएं 🥰🙏)-
मैं वैदेही आपके पीछे चल,
जीवन में सदा आगे बढ़ूंगी।
प्रेम को प्रेम से सिंचित कर,
प्रेम का नवीन अर्थ गढ़ूंगी।-
(विवाह पंचमी पर विशेष)
सज गई देखो मिथिला नगरी राम सयाने आए हैं
दुल्हन बनी है आज वैदेही राम ब्याहने आए हैं
नवरंगी नूतन वस्त्रों से इन्द्रधनुष भी शरमा जाए
रंग बिरंगी हुई धरा गगन भी स्वागत करने आए हैं।
सब जन नर-नारी वृद्ध-बालक पहुंच रहे बारी बारी
मंगल गीत मृदंग बाजै नृत्य मन को लुभाने आए हैं
होड़ मची मैं देखूं कैसे, हो जाए दर्शन मैं धन्य बनूं
ऐसा शुभाशीष लेकर हिय में, प्रभु दर्शन पाने आएं हैं।
मानव संग सब देव भी देख रहे यह आलौकिक छवि
लग्न ऋतु नक्षत्र तारे मिथिला की शोभ बढ़ाने आए हैं।
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देखी झलक जबसे है एक दूजे ने उपवन में ,
बसी छवि एक दूजे की एक दूजे के नयन में ,
बन चकोर प्रतीक्षा में अपने चंद्र की दोनों हैं ,
राम सिया से सियाराम हुए हैं मन ही मन में ।।-
विवाह पंचमी की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ
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दशरथ के लाल औ जनक दुलारी
प्रेम बंधन में बँधे अजन्मा अवतारी
लेकर गाजा बाजा बारात बंधु सब
मिथिला पहुँची है अवध की सवारी
मात सुनयना ने देखो आरती उतारी
राम की होने को है सिया सुकुमारी
झूम झूम जनक की नगरी कर रही
दिव्य दम्पति के ब्याह की तैयारी
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!!फुलवारी दर्शन प्रसंग!!
सखि आजु "नीलम नैन" में, नहीं चैन पड़त हैं स्वामिनी।
रघुराज लखि फुलवारि जनु, उर कड़की उठी सौदामिनी।।
सखि सँग लै, चली कुंज ज्यों, रसभृङ्ग भरमावत चले..
लखि लाल बाल पतंग, ज्यों नभ चंद, सकुचावत चलै।
नहिं भान, तनु संज्ञान, चित्त मुस्कान लजत मृणालिनी।। सखि आजु०
बीती विभावरी-भोर तै, बिनु बोल हीं बोले नयन,
अस नेह चरित निढ़ाल पै, अलि विनय करी कीजै शयन..।
सखि हेरि मन मुस्काहिं, शयन को जाहिं, जस गजगामिनी। सखि आजु०
अपलक निहारत चंद्र को, अकलंक करि तेहि क्षण तहाँ।
कहुँ पीड़ उठत समीर सों, यहँ भानुकुल भूषण कहाँ?
अति धीर करत अधीर, उर लगी तीर, जनु यह यामिनी।सखि आजु०
प्रतिपल उठत संकोच है, प्रतिक्षण बढ़त मनु भावना।
छिन-छिन निहारत रैन है, जनु नैन थिर भई साधना।
पग 'चन्द्रिका' चापत रहीं, जापत रहीं पिय स्वामिनी। सखि आजु०-
अखिल ब्रह्माण्ड अधिपति स्वामी राजराजेश्वर श्री सीताराम जू के विवाह महामहोत्सव की आप सब को बधाई एवम् मंगलकामनाएं...
भुवन चारिदस भरा उछाहू | जनकसुता रघुबीर बिआहू || सुनि सुभ कथा लोग अनुरागे | मग गृह गलीं सँवारन लागे ||
#विवाहपंचमी-