Saurabh Tiwari "Shandilya"   (पंडित सौरभ तिवारी)
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Joined 14 September 2019


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Joined 14 September 2019

मैं चाहता रहा तुमसे एक भेंट,
कहीं बैठ कुछ बातें करें,
तुम्हारी आंखों में निहार मैं
तुममें स्वयं के लिए प्रेम देखूं,
एक क्षण कि जब तुम
सिर्फ मुझे सोचो,
मुझे देखो,
मेरी ही मुझसे बात करो,
तुम्हारे हृदय में,
सोच में,
शब्द में बस मैं रहूं,
मैं ऐसा एक क्षण चाहता रहा...!!!

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"पिता वो नींव हैं, जिस पर हमारी ज़िंदगी की इमारत खड़ी होती है।
वो हर दर्द छुपा लेते हैं, पर हमें एक मुस्कान देना नहीं भूलते।
उनकी मेहनत ही हमारी उड़ान की असली ताकत है।
पिता केवल शब्द नहीं, एक पूरी दुनिया होते हैं। 🙏❤️"

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आपके साथ रहकर मैंने
जीने के पीछे के संघर्ष को जाना
शब्द भी असमर्थ है
तुम्हारी कीर्ति गाने में
जीवन मे जो कुछ पाया
उसे सहर्ष स्वीकारा है
रहे आदर्श की प्रतिमूर्ति सदा

तुम हो वही शिल्पी
जिसने गढ़ा मेरा व्यक्तित्व
पिता दो आशीष
साकार हों अधूरे सपने
जला सकूँ सैकड़ों दिलों में
आशा और संघर्ष की आग

बना सकूँ
एक बेहतर दुनिया कल के लिए।

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.......और एक दिन सबको बिना बताये निकल जाना है!

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अब पुरुष भी
विवाह से इंकार करने लगे हैं;
उनके हृदय में भी भय है...

परंतु, यह कोई जीत नहीं है एक स्त्री की,

अपितु एक लांछन है,
जिसकी छींटों का शिकार
वे स्त्रियाँ भी हुईं,
जिन्होंने अपना संपूर्ण जीवन
अपने साथी को समर्पित किया ।

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कभी कभी सोचता हूँ कि सुंदरता के
सारे वर्णन सिर्फ स्त्री के लिए क्यों हैं ...?

पुरुष भी सुंदर है अपनी नींद भरी आवाज में,
बिखरे बालों में, अपनी शर्मीली मुस्कान में,
व्हाइट शर्ट और अपनी फेवरेट ब्लू जीन्स में,
अपनी पसंदीदा स्त्री के प्रेम में। 💞

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एक उम्मीद का दीया थामे कदमों को रौशन कर रहा है,
दूसरा उसी उम्मीद मे आगे बढ़ने को जुगनू होना चाहता है!

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हजारो की भीड़ में उभर कर आऊंगा
मुझमे 'काबिलियत' है, मैं करके दिखाऊंगा !

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जब साथ हो सच्चा कोई यार,
हर राह लगे गुलज़ार।
ना हो ज़रूरत अल्फ़ाज़ों की,
बस समझ ले दिल की पुकार।

संग उसके हर दुख भी हँसी बन जाए,
अंधेरों में भी एक रोशनी जगाए।
वो थामे हाथ जब सब छोड़ जाएँ,
सच्ची दोस्ती ऐसी ही तो छाए।

ना हो कोई स्वार्थ, ना हो कोई सौदा,
बस हो दिल से दिल का नाता प्यारा।
हर मोड़ पर हो वो साथ मेरे,
जैसे चाँद रात में, जैसे सागर किनारे।

चलो दोस्त, यूँ ही साथ निभाएँ,
हर लम्हा हँसी में बिताएँ।
ये दोस्ती रहे सदा यूँही जवाँ,
जैसे बहता रहे अमन का कारवाँ!

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शहर की भीड़ में एक बूढ़ा आदमी रोज़ स्टेशन के उसी बेंच पर बैठा दिखता था। उसका नाम था मिस्टर मेहरा। चुपचाप, आंखों में एक इंतज़ार।

एक दिन, कॉलेज से लौटती हुई मीरा ने पूछ ही लिया, “आप हर दिन यहीं बैठते हैं… किसी का इंतज़ार है?”

वो मुस्कुराए, “हां… मेरी हमसफ़र का।“

मीरा हैरान हुई, “लेकिन कोई आता नहीं…”

वो बोले, “पचास साल साथ बिताए। फिर एक दिन वो चली गई… पर वादा किया था, जब भी बारिश होगी, वो यहीं मिलेगी।"

उसी वक़्त आसमान से बूँदें गिरने लगीं। बूढ़े मेहरा जी ने आंखें बंद कीं।

मीरा चुप रही, पर उसे यकीन था—कभी-कभी हमसफ़र शरीर से नहीं, यादों से साथ चलते हैं!

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